।। श्रीहरिः ।।

                                                                   




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७७, मंगलवा
भगवान्‌से अपनापन



     ‘सब मम प्रिय सब मम उपजाए (मानस, उत्तर ८६/४)

     ‘ईश्वर अंस जीव अबिनासी (मानस, उत्तर ११७/ २)

     ‘ममैवांशो जीवलोक (गीता १५/७)

इस प्रकार भगवान् और सन्त सब कहते हैं कि यह जीव परमात्माका अंश है यद्यपि हम परमात्माके हैं ही, तथापि हम परमात्माके हैंऐसा जबतक नहीं मानेंगे, तबतक परमात्माके होते हुए भी लाभ नहीं ले सकेंगे । जबतक हम परमात्मासे विमुख रहेंगे, तबतक हमें शान्ति, प्रसन्नता नहीं मिलेगी, आनंद नहीं मिलेगा ।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।

जन्म कोटी अघ नासहिं तबहीं ॥

भगवान्‌के सम्मुख होते ही करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जायँगे । अतः सज्जनो ! आप कृपा करके यह बात मान लो कि हम भगवान्‌के हैं, हम और किसीके नहीं हैं । यहाँ शंका हो सकती है कि हम और किसीके नहीं होंगे तो दुनियाका पालन-पोषण कैसे होगा ? माताएँ अपने बालकोंका पालन-पोषण कैसे करेंगी ? इसका समाधान है कि अपना मानकर पालन करनेकी महिमा नहीं है । अपने बालकका पालन तो हरेक माता करती है, पर इसमें कोई बहादुरी नहीं है । दूसरा कोई ऐसा बालक है, जिससे हमारा न्याति-जातिका कोई सम्बन्ध नहीं है, जिस बेचारेके माँ-बाप नहीं रहे, उसका पालन करनेवाली माईके लिये लोग कहते हैं कि धन्य है यह ! अपना नहीं होनेपर भी अपने बालककी तरह उसका पालन किया जाय तो महिमा होगी और शान्ति मिलेगी तथा बालकपर भी बड़ा असर पड़ेगा ।

कल्याण के एक मासिक अंकमें बहुत पहले एक घटना छपी थी । एक गाँवकी बात है । वहाँ एक मुसलमानके घर बालक हुआ, पर बालककी माँ मर गयी । वह बेचारा बड़ा दुःखी हुआ । एक तो स्त्री मरनेका दुःख और दूसरा नन्हें-से बालकका पालन कैसे करूँइसका दुःख ! पासमें ही एक अहीर रहता था । उसका भी दो-चार दिनका बालक था । उसकी स्त्रीको पता लगा तो उसने अपने पतिसे कहा कि उस बालकको ले आओ, मैं पालन करूँगी । अहीर उस मुसलमान बालकको ले आया । अहीरकी स्त्रीने दोनों बालकोंका पालन किया । उनको अपना दूध पिलाती, स्नेहसे रखती, प्यार करती । उसके मनमें द्वैधीभाव नहीं था कि यह मेरा बालक है और यह दूसरेका बालक है । जब बालक बड़ा हो गया, कुछ पढ़नेलायक हो गया, तो उसने उस मुसलमानको बुलाकर कहा कि अब तुम अपने बच्‍चेको ले जाओ और पढ़ाओ-लिखाओ, जैसी मर्जी आये, वैसा करो । वह उस बालकको ले गया और उसको पढ़ाया-लिखाया । पढ़-लिखकर वह एक अस्पतालमें कम्पाउण्डर बन गया । उधर संयोगवश अहीरकी स्त्रीकी छाती कुछ कमजोर हो गयी और उसके भीतर घाव हो गया । इलाज करवानेके लिये वे अस्पतालमें डॉक्टरके पास पहुँचे ।