।। श्रीहरिः ।।

                                                                                               




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७७, मंगलवा
गीता और रामायणके क्रियात्मक
प्रचारकी आवश्यकता


परम कृपालु प्रभुकी अनुकम्पासे मनुष्यशरीर प्राप्त हुआ है । इस शरीरकी महिमा ऋषि-महर्षि सभी बड़े हर्षसे गाते हैं; क्योंकि इससे बहुत बडे़ प्रयोजनकी सिद्धि हो सकती है ।

श्रीमद्भगवद्गीतामें कहा है कि जिस लाभसे बढ़कर कोई लाभ नहीं और जिसमें स्थित होनेपर बड़ा भारी दुःख कभी भी विचलित नहीं कर सकता–

यं लब्ध्वा  चापरं लाभं  मन्यते  नाधिकं  ततः ।

यस्मिन् स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥

(६/२२)

–ऐसा अनुपम लाभ अभी इसी शरीरमें और हर एक मनुष्यको हो सकता है । मूर्ख-से-मूर्ख एवं पापी-से-पापी मनुष्य भी थोडे़-से-थोडे़ समयमें दुर्लभ परमपद परमात्माको प्राप्त कर सकता है । भगवद्गीतामें श्रीभगवान्‌ने कहा है–

तेषां सततयुक्तानां  भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।

ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥

(१०/१०)

भगवान्‌ स्वयं जब बुद्धियोग प्रदान करेंगे, तब मूर्खसे भी मूर्ख क्यों न हो, उसे उनकी प्राप्तिमें कौन-सी अड़चन रहेगी । भगवान्‌ने यहाँतक कह दिया कि ‘अपि चेत्सुदुराचारः’ सुष्ठुदुराचारी अर्थात् सांगोपांग पापी भी अनन्यभाक् होकर भजन करे तो उसको भी साधु मानना चाहिये; क्योंकि उसने निश्चय बहुत ही अच्छा कर लिया है । इससे वह क्षिप्र–बहुत ही शीघ्र धर्मात्मा बन जायगा और शाश्वती शान्तिको प्राप्त हो जायगा । अधिक समयकी भी आवश्यकता भगवान्‌ नहीं बताते–

अन्तकाले च मामेव   स्मरन् मुक्त्वा कलेवरम् ।

यः प्रयाति स मद्भावं  याति  नास्त्यत्र संशयः ॥

(८/५)

इस श्लोकमें ‘च’ अव्यय ‘अपि’ के अर्थमें प्रयुक्त हुआ है । इसका अर्थ होता है कि ‘अन्तकालमें भी मुझको याद करता हुआ शरीर छोड़कर जाता है, तो भी मुझको प्राप्त हो जाता है–इसमें सन्देह नहीं ।’ तब, जो सब समय भगवान्‌का चिन्तन करे, उसके कल्याणमें तो कहना ही क्या है । गीता आदि ग्रन्थोंके विचार करनेपर यह बात समझमें आती है कि प्रभुकी प्राप्ति वास्तवमें कठिन नहीं तथा उसके लिये अधिक समयकी भी आवश्यकता नहीं, आवश्यकता है–अपनी हार्दिक लगनकी तथा परमात्माकी प्राप्तिके मार्ग–तरीके जाननेकी ।

मार्गको जानने और बतानेवाले हैं–सच्‍चे महात्मा एवं शास्त्र, वेद, स्मृति, पुराण, इतिहास आदि ग्रन्थ । इनमें महात्माओंको तो हरेक मनुष्य पहचान ही नहीं सकता, तब वह उनसे कैसे लाभ उठाये और वेदादि ग्रन्थोंका सम्यक् रीतिसे अध्ययन करके विचारपूर्वक यथाधिकार साधन चुन लेना साधारण बात नहीं । शास्त्रका पारावार नहीं, ऐसी हालतमें हमें सुगमतासे सरल और सुखमय मार्गका बोध करा देनेवाले छोटे तथा सरल ग्रन्थ हों तो हम अनायास ही अपने जीवनको सफल बना सकते हैं और इसके लिये मेरी साधारण बुद्धिके अनुसार श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीतुलसीकृत मानस-रामायण–ये दो ग्रन्थ बहुत ही उपादेय हैं ।