।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७७, बुधवा
गीता और रामायणके क्रियात्मक
प्रचारकी आवश्यकता


श्रीगीतोपदेशके समय अर्जुनकी जो दशा थी, वही किंकर्तव्य-विमूढ़ दशा आज भारतवर्षकी है और इधर राज्यव्यवस्थाको देखते रामायणकी अर्थात् रामराज्यकी अत्यधिक आवश्यकता प्रतीत होती है । जीवनमें रामजीका आदर्श बर्ताव नितान्त प्रयोजनीय है और इसके लिये रामायण और गीताका श्रद्धापूर्वक पाठ करना, उसका अर्थ समझना और उसीके अनुसार जीवन बनाना परम आवश्यक है और यह सब तभी सम्भव है, जब कि हम गीता और रामायणको अच्छी तरह समझकर तदनुकूल आचरण करें–उनको अपने जीवनमें उतारें । इसलिये गीता और रामायणका स्वयं पठन-पाठन करना चाहिये और दूसरोंसे करवाना चाहिये । उन श्रीगीतोपदेशके समय अर्जुनकी जो दशा थी, वही किंकर्तव्य-विमूढ़ दशा आज भारतवर्षकी है और इधर राज्यव्यवस्थाको देखते रामायणकी अर्थात् रामराज्यकी अत्यधिक आवश्यकता प्रतीत होती है । जीवनमें रामजीका आदर्श बर्ताव नितान्त प्रयोजनीय है और इसके लिये रामायण और गीताका श्रद्धापूर्वक पाठ करना, उसका अर्थ समझना और उसीके अनुसार जीवन बनाना परम आवश्यक है और यह सब तभी सम्भव है, जब कि हम गीता और रामायणको अच्छी तरह समझकर तदनुकूल आचरण करें–उनको अपने जीवनमें उतारें । इसलिये गीता और रामायणका स्वयं पठन-पाठन करना चाहिये और दूसरोंसे करवाना चाहिये । उन बालकोंको जो आधुनिक समयानुसार धर्मरहित शिक्षा पाये हुए हैं[*], उन्हें विशेषरूपसे सच्‍ची धार्मिक शिक्षाकी आवश्यकता है । हमारे शास्त्रोंका तो कहना है–‘धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः’यह पशुवृत्ति बडे़ जोरोंसे हमारे देशमें फैल रही है और घर कर रही है । अतः इसे निकालनेके लिये उनकी शरण लेनी चाहिये जो स्वार्थ-त्यागी और हमारे यथार्थ हितैषी हैं । ऐसे हैं–भगवान्‌ और उनके प्यारे भक्त–

सुर नर  मुनि  सब  कै यह रीती ।

स्वारथ लागि  करहिं सब प्रीती ॥

स्वारथ मीत  सकल  जग  माहीं ।

सपनेहुँ   प्रभु  परमारथ   नाहीं ॥

हेतु   रहित जग  जुग  उपकारी ।

तुम्ह   तुम्हार  सेवक   असुरारी ॥

संतन मिलि निरनै कियो मथि पुरान इतिहास ।

भजिबे को दोई  सुघर,  कै  हरि,  कै  हरिदास ॥

इन दोनोंके ही साक्षात् वचनामृतरूप ये दो पवित्र ग्रन्थरत्न हैं–श्रीभगवान्‌के श्रीमुखकी वाणी गीता और भक्तराज तुलसीकी मधुर वाणी श्रीरामायण । भाषाएँ अनेक हैं, पर उनमें सर्वश्रेष्ठ है–देवभाषा संस्कृत और दूसरी राष्ट्रभाषा हिन्दी । गीता संस्कृतमें है और रामायण हिन्दीमें । हमारे अवतार भी दो ही मुख्य माने जाते हैं–एक श्रीराम और दूसरे श्रीकृष्ण । उक्त दोनों ग्रन्थ भी इन दोनोंकी महिमा हैं । उपदेश देनेके तरीके भी दो ही हैं–एक मुखसे कहकर और एक आचरण करके ।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत् तदेवेतरो जनः ।

स यत्प्रमाणं कुरुते   लोकस्तदनुवर्तते ॥

(३/२१)

वही श्रीगीतामें श्रीभगवान्‌ने कहकर उपदेश दिया और भगवान्‌ श्रीरामजीने श्रीरामायणमें उसीको करके दिखलाया । काव्य भी दो ही तरहके होते हैं–एक दृश्य और दूसरा श्रव्य । रामायण दृश्य और गीता श्रव्य है ।

श्रीमद्भगवद्गीता संक्षिप्त उपदेशसे और रामायण विषद उदाहरणों और लीला-कथाओंसे हमें समझा रही है । इसलिये इन दोनों ग्रन्थरत्नोंका अच्छी तरहसे अध्ययन करके अनुसरण करना चाहिये ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

–‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे



[*] धर्मरहित राज्य, ब्राह्मणरहित धर्मविधान क्षत्रियरहित शासन, वैश्यरहित व्यापार, शूद्ररहित सेवा, अन्त्यजरहित स्वच्छता–सफाई, वृक्षरहित उद्यान, फलरहित वृक्ष, सुगन्धरहित पुष्प, गोरस-घृतरहित मिष्टान्न-भोजन, धृतरहित हवन, अनुभव और आचरणरहित उपदेश, त्यागरहित प्रेम, गुण और धर्मरहित शिक्षा, आदररहित आतिथ्य, श्रद्धारहित साधन, योग्यतारहित अधिकार, भजनरहित जीवन, कर्तव्यरहित क्रिया, गो-महिष रहित धृत, अश्व-गजरहित सवारी, ईश्वररहित जनसमुदाय, न्यायरहित निर्णय, स्त्रीरहित गृहस्थी, पुरुषरहित सेना, साहसरहित उद्योग, समत्वरहित ज्ञान, अनुरागरहित भक्ति, कुशलतारहित कर्म, पूर्ण निर्भरतारहित शरणागति, पूर्ण समर्पणरहित आत्मनिवेदन, गुरुओं (अध्यापकों और आचार्यों) पर शिष्योंका (विद्यार्थीओंका) शासन, माता-पितापर पुत्रका शासन, धार्मिकोंपर अधार्मिकोंका शासन, न्यायशील राजापर प्रजाका शासन और पुरुषोंपर स्त्रियोंका शासन आदि ऐसी चीजें हैं कि जिससे समाज और राष्ट्रका सर्वनाश हो जाता है ।