जिसने
भगवान्को प्राप्त नहीं किया, उसने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं किया, कुछ नहीं किया ! ❇❇❇ ❇❇❇ भगवत्प्राप्तिमें सबसे बड़ी बाधा है‒भोग और
संग्रहकी रुचि । दूसरोंके सुखसे सुखी होनेपर ‘भोग’ की रुचि और दूसरोंके दुःखसे दुःखी
होनेपर ‘संग्रह’ की रुचि मिट जाती है । ❇❇❇ ❇❇❇ जो निरन्तर बदल रहा है, उस संसारपर विश्वास
करना, उसको सच्चा मानना ही भगवत्प्राप्तिमें मुख्य बाधा है । ❇❇❇ ❇❇❇ संयोगजन्य सुखकी लोलुपता ही नित्यप्राप्त
भगवान्के अनुभवमें प्रधान बाधक है । ❇❇❇ ❇❇❇ भगवत्प्राप्तिमें आड़
वस्तुओंसे नहीं, प्रत्युत वस्तुओंके महत्त्वने लगायी है । ❇❇❇ ❇❇❇ अपने लिये कर्म करनेसे एवं जड़ता (शरीरादि) के
साथ अपना सम्बन्ध माननेसे सर्वव्यापी परमात्माकी प्राप्तिमें बाधा (आड़) लग जाती है
। ❇❇❇ ❇❇❇ परमात्मा सब देश, काल आदिमें परिपूर्ण हैं ।
संसारकी सत्यता माननेसे ही मनुष्य परमात्मासे दूरीका अनुभव करता है । ❇❇❇ ❇❇❇ कोई भी परिस्थिति परमात्माकी प्राप्तिका कारण
नहीं है और कोई भी परिस्थिति परमात्माकी प्राप्तिमें बाधक नहीं है; क्योंकि
परमात्मा सम्पूर्ण परिस्थितियोंसे अतीत हैं । ❇❇❇ ❇❇❇ परमात्मा दूर नहीं हैं, केवल उनको पानेकी
लगनकी कमी है । ❇❇❇ ❇❇❇ संसार है, अभी है और अपना है‒ऐसा माननेसे ही
परमात्मा है, अभी है और अपना है‒इसका अनुभव नहीं होता । ❇❇❇ ❇❇❇ साधक ‘परमात्मा है’ यह तो मान लेता है, पर
‘संसार नहीं है’ यह नहीं मानता, इसीसे परमात्मप्राप्तिमें बाधा लग रही है । ❇❇❇ ❇❇❇ किसी एक मार्गका आग्रह रखनेसे तथा दूसरे मार्गोंका
विरोध करनेसे पूर्णताकी प्राप्तिमें बाधा लगती है । ❇❇❇ ❇❇❇ हमारे हृदयमें परमात्माके सिवाय दूसरेकी
महत्ता है‒यही परमात्मप्राप्तिमें बाधक है । ❇❇❇ ❇❇❇ भगवान्का विश्वास भगवान्से भी बड़ा है; क्योंकि
जो भगवान् सदा सब जगह रहते हुए भी नहीं मिलते, वे विश्वाससे मिल जाते हैं । ❇❇❇ ❇❇❇ परमात्मतत्त्व अनुभवस्वरूप है । केवल हमारी
दृष्टि उधर नहीं है । ❇❇❇ ❇❇❇ कुछ करेंगे, तभी तत्त्व मिलेगा‒यह भाव
देहाभिमानको पुष्ट करनेवाला है । करनेसे जो मिलेगा, वह अनित्य होगा । ❇❇❇ ❇❇❇ संसारके त्यागमें ‘विवेक’ काम आता है और
भगवान्की प्राप्तिमें ‘विश्वास’ काम आता है । ❇❇❇ ❇❇❇ वास्तवमें भगवान् भी विद्यमान हैं, गुरु भी
विद्यमान है, तत्त्वज्ञान भी विद्यमान है और अपनेमें योग्यता, सामर्थ्य भी
विद्यमान है । केवल नाशवान् सुखकी आसक्तिसे ही उनके प्रकट होनेमें बाधा लग रही है
! ❇❇❇ ❇❇❇ शरीरसे संसारका काम (व्यवहार) अथवा सेवा तो
हो सकती है, पर परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो सकती । परमात्माकी प्राप्ति तो शरीरसे
असंग होनेपर अपने-आपसे होती है और अपने-आप ही होती है । ❇❇❇ ❇❇❇ नारायण ! नारायण
!! नारायण !!! ‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे |