।। श्रीहरिः ।।

                                                                                              




           आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, वि.सं.२०७७, सोमवा
भगवत्प्राप्ति


जिसने भगवान्‌को प्राप्त नहीं किया, उसने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं किया, कुछ नहीं किया !

❇❇❇   ❇❇❇

भगवत्प्राप्तिमें सबसे बड़ी बाधा है‒भोग और संग्रहकी रुचि । दूसरोंके सुखसे सुखी होनेपर ‘भोग’ की रुचि और दूसरोंके दुःखसे दुःखी होनेपर ‘संग्रह’ की रुचि मिट जाती है ।

❇❇❇   ❇❇❇

जो निरन्तर बदल रहा है, उस संसारपर विश्वास करना, उसको सच्चा मानना ही भगवत्प्राप्तिमें मुख्य बाधा है ।

❇❇❇   ❇❇❇

संयोगजन्य सुखकी लोलुपता ही नित्यप्राप्त भगवान्‌के अनुभवमें प्रधान बाधक है ।

❇❇❇   ❇❇❇

भगवत्प्राप्तिमें आड़ वस्तुओंसे नहीं, प्रत्युत वस्तुओंके महत्त्वने लगायी है ।

❇❇❇   ❇❇❇

अपने लिये कर्म करनेसे एवं जड़ता (शरीरादि) के साथ अपना सम्बन्ध माननेसे सर्वव्यापी परमात्माकी प्राप्तिमें बाधा (आड़) लग जाती है ।

❇❇❇   ❇❇❇

परमात्मा सब देश, काल आदिमें परिपूर्ण हैं । संसारकी सत्यता माननेसे ही मनुष्य परमात्मासे दूरीका अनुभव करता है ।

❇❇❇   ❇❇❇

कोई भी परिस्थिति परमात्माकी प्राप्तिका कारण नहीं है और कोई भी परिस्थिति परमात्माकी प्राप्तिमें बाधक नहीं है; क्योंकि परमात्मा सम्पूर्ण परिस्थितियोंसे अतीत हैं ।

❇❇❇   ❇❇❇

परमात्मा दूर नहीं हैं, केवल उनको पानेकी लगनकी कमी है ।

❇❇❇   ❇❇❇

संसार है, अभी है और अपना है‒ऐसा माननेसे ही परमात्मा है, अभी है और अपना है‒इसका अनुभव नहीं होता ।

❇❇❇   ❇❇❇

साधक ‘परमात्मा है’ यह तो मान लेता है, पर ‘संसार नहीं है’ यह नहीं मानता, इसीसे परमात्मप्राप्तिमें बाधा लग रही है ।

❇❇❇   ❇❇❇

किसी एक मार्गका आग्रह रखनेसे तथा दूसरे मार्गोंका विरोध करनेसे पूर्णताकी प्राप्तिमें बाधा लगती है ।

❇❇❇   ❇❇❇

हमारे हृदयमें परमात्माके सिवाय दूसरेकी महत्ता है‒यही परमात्मप्राप्तिमें बाधक है ।

❇❇❇   ❇❇❇

भगवान्‌का विश्वास भगवान्‌से भी बड़ा है; क्योंकि जो भगवान्‌ सदा सब जगह रहते हुए भी नहीं मिलते, वे विश्वाससे मिल जाते हैं ।

❇❇❇   ❇❇❇

परमात्मतत्त्व अनुभवस्वरूप है । केवल हमारी दृष्टि उधर नहीं है ।

❇❇❇   ❇❇❇

कुछ करेंगे, तभी तत्त्व मिलेगा‒यह भाव देहाभिमानको पुष्ट करनेवाला है । करनेसे जो मिलेगा, वह अनित्य होगा ।

❇❇❇   ❇❇❇

संसारके त्यागमें ‘विवेक’ काम आता है और भगवान्‌की प्राप्तिमें ‘विश्वास’ काम आता है ।

❇❇❇   ❇❇❇

वास्तवमें भगवान्‌ भी विद्यमान हैं, गुरु भी विद्यमान है, तत्त्वज्ञान भी विद्यमान है और अपनेमें योग्यता, सामर्थ्य भी विद्यमान है । केवल नाशवान्‌ सुखकी आसक्तिसे ही उनके प्रकट होनेमें बाधा लग रही है !

❇❇❇   ❇❇❇

शरीरसे संसारका काम (व्यवहार) अथवा सेवा तो हो सकती है, पर परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो सकती । परमात्माकी प्राप्ति तो शरीरसे असंग होनेपर अपने-आपसे होती है और अपने-आप ही होती है ।

❇❇❇   ❇❇❇

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे