।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                            




           आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल दशमी वि.सं.२०७७, सोमवा

वास्तविक आरोग्य


सात्त्विक मनुष्य तो श्रेष्ठ तो है ही, उससे भी श्रेष्ठ वह भगवद्भक्त है, जो भोजनके पदार्थोंको पहले भगवान्‌के अर्पण करके फिर उनको प्रसादरूपसे ग्रहण करता है । इसलिये गीतामें भगवान्‌ कहते हैं‒

यत्करोषि यदाश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।

यत्तपस्यसि कौन्तेय    तत्कुरुष्व  मदर्पणम् ॥

शुभाशुभफलैरेवं      मोक्ष्यसे   कर्मबन्धनैः ।

संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥

(९/२७-२८)

‘हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे । इस प्रकार मेरे अर्पण करनेसे तू कर्मबन्धनसे और शुभ (विहित) तथा अशुभ (निषिद्ध) सम्पूर्ण कर्मोंके फलोंसे मुक्त हो जायगा । ऐसे अपनेसहित सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला और सबसे सर्वथा मुक्त हुआ तू मुझे प्राप्त हो जायगा ।’

सब कुछ भगवान्‌के अर्पण करनेका परिणाम यह होगा कि मनुष्यका जन्म-मरणरूप महान्‌ रोग मिट जायगा । जन्म-मरणरूप रोग मिटनेसे ही मनुष्यको वास्तविक आरोग्यकी प्राप्ति होगी । इस आरोग्यको प्राप्त करना ही मानव-जीवनका लक्ष्य है ।

‒ ‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे

साधकको चाहिये कि वह किसीको बुरा न समझे, किसकी बुराई न करे, किसीकी बुराई न सोचे, किसीमें बुराई न देखे, किसीकी बुराई न सुने और किसीकी बुराई न कहे । इन छः बातोंका दृढ़तापूर्वक पालन करनेसे साधक बुराई-रहित हो जायगा ।

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कोई बुरा करे तो बदलेमें उसका बुरा न चाहकर यह समझो कि अपने ही दाँतोंसे अपनी जीभ कट गयी !

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भलाई करनेकी उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी बुराईका त्याग करनेकी आवश्यकता है । बुराईका त्याग करनेसे भलाई अपने-आप होगी, करनी नहीं पड़ेगी ।

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जिसको हम अच्छा समझते हैं, उसका पूरा-का-पूरा पालन करनेकी जिम्मेवारी हमपर नहीं है । परन्तु जिसको हम बुरा समझते हैं, उसका पूरा-का-पूरा त्याग करनेकी जिम्मेवारी हमपर है और उसके त्यागका बल, योग्यता, ज्ञान, सामर्थ्य भी भगवान्‌ने हमें दिया है ।

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वीरता भलाई करनेमें नहीं है, प्रत्युत किसीकी भी बुराई न करनेमें है ।

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जो अपना कल्याण चाहता है, उसे किसीके ही प्रति बुरी भावना नहीं करनी चाहिये ।

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दूसरोंके प्रति हमारी बुरी भावना होनेसे उनका बुरा होगा या नहीं होगा‒यह तो निश्चित नहीं है, पर हमारा अन्तःकरण तो मैला हो ही जायगा ।

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याद राखो, किसीका भी बुरा करोगे तो उसका बुरा होनेवाला ही होगा, पर आपका नया पाप हो ही जायगा ।

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भलाई करनेसे सीमित भलाई होती है, पर बुराई छोड़नेसे असीम भलाई होती है ।

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भला बनानेके लिये हमें कुछ करनेकी जरूरत नहीं है । केवल बुराई सर्वथा छोड़ दें तो हम भले हो जायँगे ।

    नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे