।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                              




           आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल द्वादशी वि.सं.२०७७, बुधवा

सदुपयोगसे कल्याण


सन्त-महात्माओंने मैं-मेरीका त्याग करनेके लिये कहा है । वस्तुओंका त्याग तो स्वतः ही हो रहा है । संसारकी मात्र वस्तुएँ प्रतिक्षण आपसे विमुक्त हो रही हैं । यह बात बहुत खयाल करनेकी, जाननेकी, समझनेकी है । मेरे मनमें तो ऐसी बात आती है कि रोजाना ही इस बातको कह लें, सुन लें और रोजाना विचार करें । यह दृश्यमात्र अदृश्य होनेवाला है । यह दर्शन अदर्शनमें भर्ती हो रहा है । सब-का-सब संसार मौतकी तरफ जा रहा है । सम्पूर्ण सृष्टि महाप्रलयकी तरफ जा रही है । जितने दिन व्यतीत होते हैं, उतने ही हम मौतके नजदीक जाते हैं । एक दिन कुछ भी नहीं रहेगा और वह दिन भी नजदीक आ रहा है ! जितने भी शरीर हैं, सब-के-सब प्रतिक्षण मरनेकी तरफ जा रहे हैं । दूसरा कोई काम होगा कि नहीं होगा‒इसमें सन्देह है, पर मरना होगा कि नहीं होगा‒इसमें कोई सन्देह, विकल्प नहीं है । भविष्यकी बात कोई नहीं कह सकता कि क्या होगा, कैसे होगा, होगा कि नहीं होगा; परन्तु ‘मरना होगा’‒यह बात बिलकुल निःशंक, निधड़क होकर कही जा सकती है ।

बन्धन क्या है ? न बदलनेवालेने बदलनेवालेके साथ एकता मान ली‒यही बन्धन है । अगर कोई विवेकी पुरुष बदलनेवाले और न बदलनेवालेको अलग-अलग देख ले अर्थात् बदलनेवाला मेरा स्वरूप नहीं हैं, मेरा स्वरूप तो न बदलनेवाला है‒ऐसा अनुभव कर ले तो आज ही मुक्त हो जाय । इस बातका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिये । केवल सीखना नहीं है । पुस्तकोंसे हम सीख सकते हैं, सीखकर पण्डित कहला सकते हैं, पर वास्तवमें सीखनेवाला पण्डित नहीं होता, ठीक-ठीक जाननेवाला ही पण्डित होता है । सीखनेसे काम नहीं बनेगा । सीखनेवाला तोतेकी तरह होता है । तोतेको सीखा दो तो वह ‘राधेकृष्ण-गोपीकृष्ण’ बोलना सीख जायगा और जब बुलवाओगे, तब बोल देगा । परन्तु जब कोई बिल्ली मारने आयेगी, तब वह ‘टें-टें’ करने लगेगा । अरे, अब तो ‘राधेकृष्ण-गोपीकृष्ण’ बोल, अन्तसमयमें भगवान्‌का नाम ले, जिससे उद्धार हो जाय ! पर वह समझता ही नहीं कि भगवान्‌का नाम क्या होता है ?

सीखा हुआ भी भगवान्‌का नाम आ जाय तो कल्याण हो जाता है । ऐसी कथाएँ पुराणोंमें आती हैं । ‘गोविन्दनामग्रहणशेषाधरं विदुः’‒किसी कारणसे अन्तसमयमें भगवान्‌का नाम आ जाय तो सब पाप नष्ट हो जाते हैं । एक वेश्या अपने तोतेको ‘राधेकृष्ण-गोपीकृष्ण’ बोलना सीखा रही थी कि अचानक साँपने काट लिया । वह ‘राधेकृष्ण-गोपीकृष्ण’ कहती रही और उसका उद्धार हो गया । सन्तोंकी वाणीमें भी ऐसी कई कथाएँ आती हैं । एक बार एक बधिक पशु-पक्षियोंको मारनेके लिये धनुष-बाण लेकर जंगलमें घूम रहा था । एक पेड़पर पपीहा बैठा था । इधर तो बधिक उसके ऊपर बाणका निशाना लगाता है और उधर एक बाज उसी पपीहेको मारनेके लिये धावा बोलता है । ऐसे संकटमें पपीहेने भगवान्‌को याद किया । पूर्वजन्मके संस्कारसे पशु-पक्षियोंमें भी ऐसी बात आ जाती है, जो मनुष्योंमें भी नहीं आती । कबके संस्कार न जाने कब जाग्रत्‌ हो जायँ‒इसका पता नहीं चलता । अचानक उस वृक्षमेंसे एक साँप निकला और उसने बधिकको काट लिया । साँपके काटते ही बधिकका हाथ हिला और बाण छूट गया । वह बाण जाकर बाजको लगा । बधिक और बाज‒दोनों मर गये और पपीहेकी रक्षा हो गयी ।

चातक तरु ठाणे शिर अरि जाणे पारधि वाणे दिसताणे ।

जाकूँ  अहि  हाणे शर  छूटाणे    जाय  लगाणे  सीचाणे ॥

पप्पीह तु प्राण टल विधनाणे हरिहि पिछाणे निजहेतम् ।

ब्रह्म हो अविनाशी आनंदराशी   दोषविनाशी सुखदेतम् ॥

(करुणानिधान १५)