एक बधिकने वनमें एक मृगको मारा और उसको उठाकर चला ।
रास्तेमें प्यास और थकावटसे व्याकुल होकर वह एक पेड़की छायामें आकर बैठ गया । उस
वृक्षपर एक पालतू तोता बैठा हुआ था, जो पिंजड़ेसे निकलकर भाग आया था । इतनेमें एक
साँप निकला और उसने बधिकको काट लिया । वहाँ उस तोतेने दो बार ‘राम-राम’ कहा, बधिकने भगवान्का नाम सुना तो उसके मुखसे
भी दो बार ‘राम-राम’ निकला और वह मर गया । मरनेपर
उसे ले जानेके लिये यमराजके दूत आये, पर उधरसे उसे वैकुण्ठमें ले जानेके लिये
भगवान्के पार्षद भी आ गये । यमदूतोंने उनको रोका और कहा कि इसको कैसे ले जाते हो
? इसने तो बहुत जीवोंको मारा है, बहुत पाप किये हैं । इसलिये यह नरकोंमें जायगा । भगवान्के पार्षदोंने कहा कि इसने अन्तसमयमें भगवान्का नाम
लिया है, इसलिये इसका कल्याण होगा । दोनोंमें विवाद छिड़ गया । फैसला करनेके
लिये सम्पूर्ण पापोंको और नामको तौला गया तो नाम बड़ा वजनदार निकला । अतः बधिकको
निर्भय धाम मिल गया‒ व्याध एक मारियो मिरग, व्याल डस्यो तरु छाँय । तृषा मरत शुक सुनि गिरा,
नाम प्रगट उर माँय ॥ उभय वार श्रवणां सुणे,
उभय वार मुख
गाय । अन्तकाल ऐसो भयो,
ततछिन भए सहाय ॥ जमकिंकर बंधे महा, बंध
छुड़ाई ताय । हरिपुरवासी आय के, लेखै
न्याव चुकाय ॥ एके चेलै अघ
सबै, एके चेलै
नाम । ऐसी विधि भव
तारणा, निर्भय दीधो
धाम ॥ (करुणासागर ६७‒७०) भगवान्का नाम अपार, अनन्त शक्ति रखता है । उसके
सामने पाप कितने हैं‒ऐसी गणना नहीं हो सकती । जैसे, सेरभर रूईको जलानेके लिये एक दियासलाई होनी चाहिये तो
मनभर रूईको जलानेके लिये चालीस दियासलाई होनी चाहिये ? नहीं । एक ही दियासलाई सबको
जला देगी । वहाँ यह माप-तौल नहीं होता कि जितनी रूई है, उसको जलानेके लिये अग्नि
भी उतनी ही हो । इसी तरह पाप कितने हैं और भगवान्का नाम कितना है‒यह गिनती नहीं
होती । मकानमें ठसाठस अँधेरा भरा हो तो एक दीपककी लौ करते ही सब (अँधेरा) भाग जाता
है । संसार क्षणभंगुर है, नश्वर है, जा रहा है, नष्ट हो
रहा है । परन्तु भगवान्, भगवान्का नाम, भगवान्की महिमा, भगवान्का प्रभाव
नित्य-निरन्तर रहनेवाला है । उस रहनेवालेके
सामने यह बहनेवाला कुछ ताकत नहीं रखता ।
शरीर, इन्द्रियाँ आदि नाशवान् हैं, परिवर्तनशील
है और स्वयं (जीवात्मा) अविनाशी है, अपरिवर्तनशील है । इन दोनोंका ठीक तरहसे ज्ञान
हो जाय अथवा नाशवान्का आश्रय लेना, उसको अपना मानना बहुत बड़ी गलती है । रुपयोंसे मेरा काम हो जायगा, कुटुम्बियोंसे काम हो जायगा,
शरीरसे ऐसे हो जायगा; मेरेमें बड़ी भारी योग्यता है, मेरेमें बड़ी विद्या है, मेरेको
बड़ा पद मिला हुआ है, मैं बड़ा अधिकारी हूँ‒ये सब
बदलनेवाले और मिटनेवाले हैं । अगर इन सबका सहारा छोड़कर केवल भगवान्का सहारा ले
लिया जाय तो निहाल हो जायँ ! |