।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                                                               




           आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं.२०७७, सोमवा

प्रतिकूल परिस्थितिसे लाभ


बालकको प्यार करनेमें और चपत जमानेमें भी माँका हृदय दो नहीं होता; माँकी अकृपा नहीं होती । अकृपा नहीं होती‒इतना ही नहीं, प्रत्युत ताड़ना देनेमें विशेष कृपा होती है । किसी माँको प्यार उमड़े तो वह खेलते हुए सब बच्चोंको लड्डू बाँट देगी; परन्तु उद्दण्डता करनेवाले सब बच्चोंको चपत नहीं जमायेगी । जो बच्चा अपना है, उसीको चपत जमायेगी । इस तरहसे भगवान्‌ अनुकूल परिस्थिति तो सबको दे देते हैं, पर प्रतिकूल परिस्थिति उन्हें देते हैं, जिनपर विशेष कृपा है, अपनापन है । अतः प्रतिकूल परिस्थितिमें भगवान्‌की विशेष कृपा होती है, हमारे पापोंका नाश होता है और हमारे जीवनमें विकास होता है । जितने भी अच्छे-अच्छे पुरुष हुए हैं, उनके जीवनमें प्रायः प्रतिकूल परिस्थितिसे विकास हुआ है । बहुत कम ऐसे सन्त मिलेंगे, जो अनुकूल परिस्थितिमें उन्नति कर सके हैं ।

देखो, प्रत्यक्ष बात बतायें । अभी कोई भी जीव-जन्तु या मनुष्य दुःख पाता है तो उसके साथ अच्छे आदमियोंका सहयोग रहता है कि इसका दुःख दूर कैसे हो ? परन्तु कोई भोगी व्यक्ति हो तो उसके साथ अच्छे लोगोंका सहयोग, सहानुभूति नहीं रहेगी, वह सबको अच्छा नहीं लगेगा । अच्छे सन्त तो सबको देखकर राजी हो जायँगे, पर हरेक आदमी उसको देखकर राजी नहीं होगा । मोटरपर चढ़े हुए भोगी व्यक्तिको देखकर पैदल चलनेवालोंका जी जलता है ! वे उसके सहयोगी नहीं होते, प्रत्युत विरोधी होते हैं । जैसे जनता उसके सुखमें सहयोग नहीं देती, ऐसे भगवान्‌में भी उसके प्रति थोड़ी उपेक्षा रहती है । जैसे, बच्चा सुखी है, मौज कर रहा है, खेल रहा है तो माँमें उसके प्रति थोड़ी उपेक्षा रहती है । बालक दुःखी हो जाता है तो उसपर माँकी विशेष निगाह रहती है । इसी तरह दुःखदायी परिस्थितिमें भगवान्‌की विशेष कृपा रहती है । जैसे आपका सहयोग दुःखीके साथ विशेष रहता है, ऐसे ही भगवान्‌का सहयोग भी दुःखीके साथ विशेष रहता है ।

दुःख आनेपर यदि साधक विशेष सावधानी रखे तो उसका विकास होगा; परन्तु दुःख पाकर रोने लगे तो विकास नहीं होगा । एक बालक पाँच-सात वर्षका था कि उसके माँ-बाप मर गये । अब वह तीस वर्षका हो गया । एक दूसरा बालक भी तीस वर्षका हुआ, जिसके माँ-बाप भी हैं, दादा-दादी भी हैं, बड़े भाई भी हैं । इन दोनोंमें कौन अधिक होशियार होगा ? जिसके माँ-बाप नहीं हैं, वह होगा । कारण कि दुःखमें हमारी जल्दी उन्नति होती है, उतनी अनुकूलतामें नहीं होती । दुःखमें नया विकास होता है । इससे सिद्ध क्या हुआ ? कि जो परिस्थिति भगवान्‌ने हमें दी है, वह हमारे कल्याणके लिये दी है, उद्धारके लिये दी है ।

भोग भोगते हैं तो बुद्धि मारी जाती है, विकसित नहीं होती । सुखमें गफलत होती है । ज्यादा आराम मिलनेसे नींद आती है । दुःखमें नींद नहीं आती, गफलत नहीं होती । प्रतिकूल परिस्थितिमें हम साधन करें तो हमारा साधन बहुत तेजीसे चलेगा, क्योंकि इससे हमारे पापोंका नाश होता है और प्रभुका, सन्त-महात्माओंका विशेषतासे सहयोग मिलता है ।