भगवान्में अनन्त गुण हैं, जिनका कोई पार नहीं पा सकता । आजतक भगवान्के
गुणोंका जितना शास्त्रोंमें वर्णन हुआ है, जितना महात्माओंने वर्णन किया है, वह
सब-का-सब मिलकर भी अधूरा है । भगवान्के परम भक्त गोस्वामीजी महाराज भी कहते हैं‒‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ (मानस, बालकाण्ड २६/४) । सन्तोंकी वाणीमें भी आया है कि अपनी शक्तिको खुद भगवान् भी
नहीं जानते ! ऐसे अनन्त गुणोंवाले भगवान्में कम-से-कम तीन गुण मुख्य
हैं‒सर्वज्ञता, सर्वसमर्थता और सर्वसुहृत्ता । तात्पर्य है कि भगवान्के समान कोई
सर्वज्ञ नहीं है, कोई सर्वसमर्थ नहीं है और
कोई सर्वसुहृद् (परम दयालु) नहीं है । ऐसे भगवान्के
रहते हुए भी आप दुःख पा रहे हैं, आपकी मुक्ति नहीं हो रही है तो क्या गुरु आपको
मुक्त कर देगा ? क्या गुरु भगवान्से भी अधिक सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और दयालु है ?
कोरी ठगाईके सिवाय कुछ नहीं होगा ! जबतक आपके भीतर अपने कल्याणकी लालसा जाग्रत
नहीं होगी, तबतक भगवान् भी आपका कल्याण नहीं कर सकते, फिर गुरु कैसे कर देगा ? आपको गुरुमें, सन्त-महात्मामें जो विशेषता दिखती
है, वह भी उनकी अपनी विशेषता नहीं है, प्रत्युत भगवान्से आयी हुई और आपकी मानी हुई है । जैसे कोई भी मिठाई बनायें, उसमें मिठास चीनीकी ही होती है,
ऐसे ही जहाँ भी विशेषता दीखती है, वह सब भगवान्की ही होती है । भगवान्ने गीतामें
कहा भी है‒ यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं
श्रीमदूर्जितमेव वा । तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् ॥ (१०/४१) ‘जो-जो ऐश्वर्ययुक्त, शोभायुक्त और बलयुक्त
प्राणी तथा पदार्थ है, उस-उसको तुम मेरे ही तेज (योग अर्थात् सामर्थ्य)-के अंशसे
उत्पन्न हुई समझो ।’ भगवान्का विरोध करनेवाले राक्षसोंको भी भगवान्से ही बल
मिलता है[*] तो क्या भगवान्का भजन करनेवालोंको भगवान्से बल नहीं
मिलेगा ? आप भगवान्के सम्मुख हो जाओ तो करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जायँगे[†], पर आप सम्मुख ही नहीं होंगे तो पाप कैसे नष्ट होंगे ?
भगवान् अपने शत्रुओंको भी शक्ति देते हैं, प्रेमियोंको भी शक्ति देते हैं और
उदासीनोंको भी शक्ति देते हैं । भगवान्की रची हुई पृथ्वी दुष्ट-सज्जन,
आस्तिक-नास्तिक, पापी-पुण्यात्मा सबको रहनेका स्थान देती है । उनका बनाया हुआ अन्न
सबकी भूख मिटाता है । उनका बनाया हुआ जल सबकी प्यास बुझाता है । उनका बनाया हुआ
पवन सबको श्वास देता है । दुष्ट-से-दुष्ट, पापी-से-पापीके लिये भी भगवान्की
दयालुता समान है । हम घरमें बिजलीका एक लट्टू भी लगाते हैं तो उसका किराया देना
पड़ता है, पर भगवान्के बनाये सूर्य और चन्द्रने कभी किराया माँगा है ? पानीका एक
नल लगा लें तो रुपया लगता है, पर भगवान्की बनायी नदियाँ रात-दिन बह रही हैं ।
क्या किसीने उसका रुपया माँगा है ? रहनेके लिये थोड़ी-सी जमीन भी लें तो उसका रुपया
देना पड़ता है, पर भगवान्ने रहनेके लिये इतनी बड़ी पृथ्वी दे दी । क्या उसका किराया
माँगा है ? अगर उसका किराया माँगा तो किसमें देनेकी ताकत है ? जिसकी बनायी हुई सृष्टि भी इतनी उदार है, वह खुद कितना उदार
होगा !
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