भगवान्ने गीतामें स्पष्ट कहा है‒ उद्धरेदात्मनात्मानं
नात्मनमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ (६/५) ‘अपने द्वारा अपना उद्धार करे, अपना पतन न
करे; क्योंकि आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है ।’ तात्पर्य है कि अपने उद्धार और पतनमें मनुष्य स्वयं ही कारण
है, दूसरा कोई नहीं । भगवान्ने मनुष्यशरीर दिया है तो
अपने कल्याणकी सामग्री भी पूरी दी है । इसलिये अपने कल्याणके लिये दूसरेकी जरूरत
नहीं है । गुरु, सन्त और भगवान् भी तभी उद्धार करते हैं,
जब मनुष्य स्वयं उनपर श्रद्धा-विश्वास करता है, उनको स्वीकार करता है, उनके सम्मुख
होता है, उनकी आज्ञाका पालन करता है । अगर मनुष्य उनको स्वीकार न करे तो वे कैसे उद्धार
करेंगे ? नहीं कर सकते । खुद
शिष्य न बने तो गुरु क्या करेगा ? जैसे, दूसरा व्यक्ति भोजन तो दे देगा, पर भूख
खुदकी चाहिये । खुदकी भूख न हो तो दूसरेके द्वारा दिया गया बढ़िया भोजन भी किस
कामका ? ऐसे ही खुदकी
लगन न हो तो गुरुका, सन्त-महात्माओंका उपदेश किस कामका ? गुरु, सन्त और भगवान्का कभी अभाव
नहीं होता । अनेक बड़े-बड़े
अवतार हो गये, पर अभीतक हमारा उद्धार नहीं हुआ है ! इससे सिद्ध होता है कि हमने ही
उनको स्वीकार नहीं किया । अतः अपने उद्धार और पतनमें हम ही हेतु हैं । जो अपने उद्धार और
पतनमें दूसरेको हेतु मानता है, उसका उद्धार कभी हो ही नहीं सकता । वास्तवमें मनुष्य आप ही अपना गुरु है‒‘आत्मनो गुरुरात्मैव पुरुषस्य विशेषतः’ (श्रीमद्भागवत ११/७/२०) । इसलिये उपदेश अपनेको ही दे । दूसरेमें कमी न देखकर अपनेमें ही कमी देखे और उसको दूर करनेकी चेष्टा करे । वह आप ही अपना गुरु बने, आप ही अपना नेता बने और आप ही अपना शासक बने । तात्पर्य हुआ कि वास्तवमें कल्याण न गुरुसे होता है और न ईश्वरसे ही होता है, प्रत्युत हमारी सच्ची लगनसे होता है । खुदकी लगनके बिना भगवान् भी कल्याण नहीं कर सकते । अगर कर देते तो हम आजतक कल्याणसे वंचित क्यों रहते ? न तो गुरुका अभाव है, न सन्त-महात्माओंका अभाव है और न भगवान्का ही अभाव है । अभाव हमारी लगनका है । कल्याणकी प्राप्ति न गुरुके अधीन है, न सन्त-महात्माओंके अधीन है । जब हमारी लगनके बिना सर्वशक्तिमान भगवान् भी हमारा कल्याण नहीं कर सकते, तो फिर मनुष्यमें कितनी शक्ति है कि हमारा कल्याण कर दे ? हमारी लगन नहीं होगी तो लाखों-करोड़ों गुरु बना लें तो भी कल्याण नहीं होगा । अगर हमारे हृदयकी सच्ची लगन होगी तो गुरु भी मिल जायगा, सन्त भी मिल जायँगे, भगवान् भी मिल जायँगे, अच्छी पुस्तकें भी मिल जायँगी, ज्ञान भी मिल जायगा । कैसे मिलेगा, किस तरहसे मिलेगा‒यह भगवान् जानें ! |