।। श्रीहरिः ।।

                                        


आजकी शुभ तिथि–
     वैशाख शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७८ रविवार

          गुरु-विषयक प्रश्नोत्तर


प्रश्न–गुरुके बिना उद्धार कैसे होगा; क्योंकि रामायणमें आया है–‘गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई’ (मानस, उत्तर१३।३) ?

उत्तर–उसी रामायणमें यह भी आया है–

गुरु सिष बधिर अंध का लेखा । एक न सुनइ एक नहीं देखा ॥

हरइ सिष्य धन सोक न हरई । सो गुरु घोर नरक महुँ परई ॥

(मानस, उत्तर११।३-४)

तात्पर्य हुआ कि बनावटी गुरुसे उद्धार नहीं होगा । बनाया हुआ गुरु कुछ काम नहीं करेगा । किसी-न-किसी सन्तकी बात मानेंगे, तभी उद्धार होगा और जिसकी बात माननेसे उद्धार होगा, वही हमारा गुरु होगा । श्रीमद्भागवतके  एकादश स्कन्धमें दत्तात्रेयजीने अपने चौबीस गुरुओंका वर्णन किया है । तात्पर्य है कि मनुष्य किसीसे भी शिक्षा लेकर अपना उद्धार कर सकता है । अतः गुरु बनानेकी जरूरत नहीं है, प्रत्युत शिक्षा लेनेकी जरूरत है । जिसकी शिक्षा लेनेसे, जिसकी बात माननेसे हमारा उद्धार हो जाय, वह बिना गुरु बनाये ही गुरु हो गया । अगर बात न माने तो गुरु बनानेपर भी कल्याण नहीं होगा, उलटे पाप होगा, अपराध होगा ।

आजकल एक साथ कई लोगोंको दीक्षा दे देते हैं और सामूहिक रूपसे सबको अपना चेला बना लेते हैं । न तो गुरुमें चेलोंके कल्याणकी चिन्ता होती है और न तो चेलोंमें अपनी कल्याणकी लगन होती है । गुरु चेलोंका कल्याण कर सकता नहीं और चेले दूसरी जगह जा सकते नहीं । अतः चेले बनाकर उलटे उन लोगोंके कल्याणमें बाधा लगा दी !

प्रश्न–यह बात प्रचलित है कि निगुरेका कल्याण नहीं होता । अतः गुरु बनाना आवश्यक हुआ ?

उत्तर‒जिसको अच्छाई-बुराईका ज्ञान है, वह निगुरा कैसे हुआ ? अच्छाई-बुराईका ज्ञान (विवेक) सबमें है । भगवान्‌का नाम लेना चाहिये, उनका स्मरण करना चाहिये, किसीको भी दुःख नहीं देना चाहिये आदि बातें सब जानते हैं । इन बातोंका ज्ञान उनको जिससे हुआ, वह गुरु हो गया, चाहे उसको जानें या न जानें, मानें या न मानें ।

जिसने गुरु तो बना लिया, पर उनकी बात नहीं मानी, वही निगुरा होता है । उसको अपराध लगता है । जिसने गुरु बनाया ही नहीं, उसको अपराध कैसे लगेगा ?