।। श्रीहरिः ।।

                                                                                         


आजकी शुभ तिथि–
     आषाढ़ कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७८ रविवार

                 तू-ही-तू

सत्‌ भी भगवान्‌का स्वरूप है, असत्‌ भी भगवान्‌का स्वरूप है । सुन्दर पुष्प खिले हों, सुगन्ध आ रही हो तो वह भी भगवान्‌का स्वरूप है और मांस, हड्डियाँ, मैला पड़ा हो, दुर्गन्ध आ रही हो तो वह भी भगवान्‌का स्वरूप है । भगवान्‌ने राम, कृष्ण आदि रूप भी धारण किये और मत्स्य, कच्छप, वराह आदि रूप भी धारण किये । वे कोई भी रूप धारण करें, हैं तो भगवान्‌ ही ! वे चाहे किसी भी रूपमें आयें, उनकी मरजी है । वे जैसा रूप धारण करते हैं, वैसी ही लीला करते हैं । वराह (सूअर)-का रूप धारण करके वे वराहकी तरह लीला करते हैं, मनुष्यका रूप धारण करके वे मनुष्यकी तरह लीला करते हैं । नरसिंहरूपसे वे प्रह्लादजीको चाटते हैं !

भगवान्‌ उत्तंक ऋषिसे कहते हैं‒

धर्मसंरक्षणार्थाय     धर्मसंस्थापनाय च ।

तैस्तैर्वेषैश्‍च रूपैश्‍च त्रिषु लोकेषु भार्गव ॥

(महाभारत, आश्व ५४/१३-१४)

‘मैं धर्मकी रक्षा और स्थापनाके लिये तीनों लोकोंमें बहुत-सी योनियोंमें अवतार धारण करके उन-उन रूपों और वेषोंद्वारा तदनुरूप बर्ताव करता हूँ ।’

भगवान्‌ सत्ययुगमें सत्ययुगकी लीला करते हैं, कलियुगमें कलियुगकी लीला करते हैं । कोई पाप, अन्याय करता हुआ दीखे तो समझना चाहिये कि भगवान्‌ कलियुगकी लीला कर रहे हैं । वे कोई भी रूप धारण करके कैसी ही लीला करें, हमारी दृष्टि उनको छोड़कर कहीं जानी ही नहीं चाहिये । भगवान्‌ कहते हैं‒

यो मां पश्यति सर्वत्र  सर्वं च मयि पश्यति ।

तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥

(गीता ६/३०)

‘जो सबमें मुझे देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’

जैसे सब जगह बर्फ-ही-बर्फ पड़ी हो तो बर्फ कैसे छिपेगी ? बर्फके पीछे बर्फ रखनेपर भी बर्फ ही दीखेगी ! ऐसे ही जब सब रूपोंमें भगवान्‌ ही हों तो भगवान्‌ कैसे छिपेंगे ? कहाँ छिपेंगे ? किसके पीछे छिपेंगे ? तात्पर्य है कि एक परमात्मा-ही-परमात्मा परिपूर्ण हैं । उस परमात्मामें न मैं है, न तू है, न यह है, न वह है । न भूत है, न भविष्य है, न वर्तमान है । न सर्ग-महासर्ग है, न प्रलय-महाप्रलय है । न देवता है, न मनुष्य है, न राक्षस है । न पशु है, न पक्षी है । न प्रेत है, न पिशाच है । न जड़ है, न चेतन है । न स्थावर है, न जंगम है । एक परमात्माके सिवाय कुछ भी नहीं है । वे एक ही अनेक रूपोंमें बने हुए हैं । वे एक ही अनन्त रूपोंमें भासित हो रहे हैं ।