।। श्रीहरिः ।।

                                                                                          


आजकी शुभ तिथि–
     आषाढ़ कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७८ सोमवार

योगीनी एकादशी-व्रत

                 तू-ही-तू

(४)

सब कुछ भगवान्‌ ही हैं‒यह बात हमें दीखे चाहे न दीखे, हमारे जाननेमें आये चाहे न आये, हमारे अनुभवमें आये चाहे न आये, पर हम दृढ़तासे इस बातको स्वीकार कर लें कि वास्तवमें बात यही सच्ची है । कमी है तो हमारे माननेमें कमी है, वास्तविकतामें कमी नहीं है । सब कुछ भगवान्‌ ही हैं‒ऐसा अनुभव करनेके लिये क्रिया और पदार्थकी आवश्यकता नहीं है, प्रत्युत केवल भावकी आवश्यकता है । हमें केवल अपनी भावना बदलनी है । जब साधककी अन्तर्वृत्ति हो, तब एक भगवान्‌के सिवाय कुछ नहीं है और जब साधककी बाह्यवृति हो, तब जो कुछ दीखे, वह भगवान्‌की ही लीला है !

भगवान्‌की अपरा प्रकृतिके सम्मुख होनेसे ही हमारी भगवान्‌से विमुखता हो गयी है । अगर हम अपरासे विमुख हो जायँ और जिसकी अपरा प्रकृति है, उसके (भगवान्‌के) सम्मुख हो जायँ तो वास्तविकताका अनुभव हो जायगा‒‘मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते’ (गीता ७/१४)

भगवान्‌ कहते हैं‒

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये ।

मत्त एवेति तान्विद्धि    त्वहं  तेषु  ते मयि ॥

(गीता ७/१२)

‘जितने भी सात्त्विक भाव हैं और जितने भी राजस तथा तामस भाव हैं, वे सब मुझमें ही रहते हैं‒ऐसा समझो । परन्तु मैं उनमें और वे मुझमें नहीं हैं ।

‘न त्वहं तेषु ते मयि’ कहनेका तात्पर्य है कि तुम गुणोंमें उलझो मत । भगवान्‌ तो सबमें ही हैं । वे गुणोंमें भी हैं । पर गुणोंमें उलझनेसे हम उनसे दूर हो जाते हैं । यदि हम भगवान्‌को सत्ता और महत्ता न देकर गुणोंको सत्ता और महत्ता देंगे तो हम जन्म-मरणमें चले जायँगे‒‘कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु’ (गीता १३/२१) जैसे, गेहूँके खेतमें गेहूँ ही मुख्य होता है, पत्ती-डंठल नहीं । गेहूँके पौधेमें जड़ तामस है, डंठल राजस है, सिट्टा सात्त्विक है और गेहूँ (दाना) गुणातीत है । किसानका उद्देश्य केवल गेहूँको प्राप्त करनेका ही होता है । गेहूँको प्राप्त करनेके लिये ही वह सारी मेहनत करता है, खेतीमें जल-खाद आदि डालता है । गेहूँ प्राप्त करनेके बाद उसका पत्ती-डंठलसे कोई मतलब नहीं रहता; क्योंकि उसकी दृष्टिमें पत्ती-डंठलका कोई महत्त्व नहीं है । इसी तरह साधकका उद्देश्य भी केवल भगवान्‌ ही होता है, सात्त्विक-राजस-तामस तीनों गुणोंका नहीं । जैसे गेहूँसे पैदा होनेपर भी पत्ती-डंठलसे किसानका कोई प्रयोजन नहीं होता, ऐसे ही भगवान्‌से उत्पन्न होनेपर भी सात्त्विक-राजस-तामस भावोंसे साधकका कोई प्रयोजन नहीं होता ।