।। श्रीहरिः ।।

                       





आजकी शुभ तिथि–
  भाद्रपद कृष्ण एकादशी, वि.सं.-२०७८, शुक्रवार
                     अजा एकादशी-व्रत 
         भगवान्‌से सम्बन्ध


‘हरिश्शरणमित्येव येषां मुखे नित्यं वचः’ उनका वचन ही यह है ‘हरिः शरणम्’ शरण, आश्रय हमारा भगवान्‌का । तो वे क्या आश्रय लेंगे ? अब क्या लेना है उनको ? क्या मुक्ति करनी है ? क्या प्राप्त करना है ? ऐसा न होते हुए भी भगवान्‌में लगे रहते हैं । तो ऐसे सन्त-महापुरुष वे भगवान्‌की कथा सुनते हैं और सुनाते हैं । आपसमें कहते हैं तो उनके संगसे मात्र प्राणियोंका उद्धार होता है । जहाँ सत्संग-कथा होती है, वहाँ सब तीर्थ आ जाते हैं । जितने ऋषि-मुनि हैं वे सभी आ जाते हैं । गीताका पठन-पाठन होता है, वहाँ नारद, उद्धव आदि सब आ जाते हैं । तो उनके आनेसे वहाँका स्थल कितना पवित्र हो जाता है !

सतां प्रसङ्गान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हृत्कर्णरसायना कथाः ।

तज्जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि   श्रद्धा  रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥

श्रेष्ठ पुरुषोंके संगसे भगवान्‌के प्रभावको वर्णन करनेवाली, भगवान्‌के प्रभावका ज्ञान करानेवाली, भगवान्‌के प्रभावको स्पष्ट बतानेवाली ‘हृत्कर्णरसायना कथाः’ हृदय और कानोंको रस देनेवाली कथा मिलती है । मानो कानोंमें ही श्रवणपुटसे पीते हैं, और हृदयमें प्रफुल्लित होते हैं, मस्त होते हैं । ऐसी आनन्द देनेवाली कथा होती है जहाँ, वहाँ श्रेष्ठ पुरुषोंके संगमें व्यापार ही वही है । उनके कथा-कीर्तन ही विषय हैं, उनका काम ही यह है । तो ऐसे वे कथा करते रहते हैं । ‘सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदः, ‘भवन्ति हृत्कर्णरसायनाः कथाः । तज्जोषणात्’ उनके सेवन करनेसे ‘आशु अपवर्गवर्त्मनि’ परमात्माकी प्राप्तिका जो अपवर्ग रास्ता है उसमें श्रद्धा, रति, भक्ति, ‘अनुक्रमिष्यति’ सब हो जायगा । तो यह सब-का-सब हो जाता है । इस वास्ते भगवान् लीला करते हैं । वह लीला अवतार लिये बिना कैसे करे ? जिसको गा करके संसारके प्राणी अपना उद्धार कर सकें ।

वह लीला इसलिये करते हैं कि जिन सन्त-महात्माओंके लिये कुछ कहना-सुनना नहीं, वे भी कथा कहते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथानि सर्वाणि तीर्थानि निवसन्ति तत्र ।’ सब तीर्थ वहाँ निवास करते हैं । ‘यत्राच्युतोदारकथाप्रसंगः’ जहाँ भगवान्‌की उदार कथा होती है, वहाँ सब तीर्थ आ जाते हैं तो पवित्रताकी महान् पवित्रता हो जाती है वहाँ । ‘पवित्राणां पवित्रं यो मंगलाना च मंगलम्’ भगवान्‌को कहते हैं‒पवित्रोंका पवित्र, मंगलोंका मंगल । ऐसे भगवान्‌की कथा, उनके गुण, उनकी लीला, उनका स्वरूप, उनका तत्त्व इनका विवेचन जहाँ होता है, वहाँ वह प्रयागराज माना है । ‘सर्वाणि तीर्थानि निवसन्ति तत्र ।’