।। श्रीहरिः ।।

                             


आजकी शुभ तिथि–
   कार्तिक कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७८,  मंगलवार
                             
            सत्संग सुननेकी विद्या


सत्संग सुननेकी भी एक विद्या है । यदि उस विद्याको काममें लिया जाय तो सत्संगसे बहुत लाभ उठाया जा सकता है । अगर किसीको सत्संग सुननेकी विद्या आ जाय तो वह बहुत बड़ा विद्वान्‌ बन जाय ! पढ़ाई करके कोई इतना विद्वान्‌ नहीं बनता, जितना सत्संगसे बनता है । सत्संगमें जैसी पढ़ाई होती है, वैसी पढ़ाई ग्रन्थ पढ़नेसे नहीं होती । ग्रन्थ पढ़नेसे तो एक विषयका ज्ञान होता है, पर सत्संगसे पारमार्थिक और व्यावहारिक सब तरहका ज्ञान होता है, सत्संग करनेवाला भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, लययोग, राजयोग, अष्टांगयोग, हठयोग आदि अनेक विषयोंसे परिचित हो जाता है । इतना ही नहीं, जिस विषयको सत्संगमें सुना ही नहीं, उस विषयमें भी उसकी बुद्धि काम करने लगती है । जैसे सत्संगमें विवाहकी चर्चा सुनी ही न हो, पर उसमें भी सत्संग करनेवालेकी बुद्धि काम करेगी । मेरी तो ऐसी धारणा है कि कोई ठीक तरहसे सत्संग सुनेगा अथवा गीताका ठीक तरहसे अध्ययन करेगा, उसकी बुद्धि किसी विषयमें प्रवेश न करे‒यह नहीं हो सकता । वह जिस विषयमें चाहे, उसीमें उसकी बुद्धि प्रविष्ट हो जायगी । इसलिये मन लगाकर सत्संग सुनना चाहिये ।

जो प्रत्येक काम मन लगाकर करता है, वही मन लगाकर सत्संग सुन सकेगा । इसलिये जो भी काम करें, मन लगाकर करें । रसोई बनायें तो मन लगाकर बनायें, भोजन करें तो मन लगाकर करें, शौच-स्नान आदि करें तो मन लगाकर करें । ऐसा करनेसे प्रत्येक काम मन लगाकर करनेका स्वभाव पड़ जायेगा । वह स्वभाव पारमार्थिक मार्गमें भी काम आयेगा, जिससे सत्संग, भजन, ध्यान आदिमें मन लगने लगेगा । इसलिये ऐसा न समझें कि केवल भजन-ध्यान ही मन लगाकर करने हैं, दूसरे काम मन लगाकर नहीं करने हैं । प्रत्येक काम मन लगाकर करना है, जिससे काम भी बढ़िया होगा और स्वभाव भी सुधरेगा । वास्तवमें काम सुधरनेसे इतना लाभ नहीं है, जितना स्वभाव सुधरनेसे लाभ है । स्वभावमें सुधार होनेसे प्रत्येक काममें बुद्धि प्रवेश करेगी, प्रत्येक काम करनेकी विद्या आ जायगी ।

यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि जिस कामको लोग़ वर्षोंसे प्रतिदिन करते आ रहें हैं, उसको भी वे ठीक तरहसे नहीं करते । जैसे, स्त्रियाँ उम्रभर बालकोंको पालते-पालते बूढ़ी हो जाती हैं, पर बालकोंको भोजन कराना प्रायः नहीं आता ! बालकको एक साथ ज्यादा परोस दें तो वह थोड़ा खाकर छोड़ देगा, पर थोड़ा-थोड़ा करके परोसें तो वह ज्यादा खा लेगा । इसी तरह वक्तको प्रायः कहना नहीं आता और श्रोताको प्रायः सुनना नहीं आता । इसका कारण यह है कि प्रत्येक काम मन लगाकर करनेका स्वभाव नहीं है ।