सत्संगके समय श्रोताको चाहिये कि वह
अपनी दृष्टि वक्ताके मुखपर रखे । वक्ताके मुखकी तरफ देखते हुए ध्यानपूर्वक सुननेसे उसकी
बातें हृदयमें धारण हो जाती हैं । जो कभी
इधर और कभी उधर देखते हुए सुनते हैं , उनको सुनना नहीं आता । सुनते समय तत्परतासे
मन लगाकर सुनना चाहिये कि वक्ताने किस विषयपर बोलना प्रारम्भ किया और उसमें कौन-सा
दृष्टान्त दिया, कौन-सी युक्ति दी, कौन-सा दोहा या श्लोक कहा आदि-आदि । इस प्रकार मन लगाकर सुननेसे श्रोताको पहले ही यह पता चला जाता
है कि अब वक्ता आगे क्या कहेगा ? कौन-सा विषय कहेगा ? सत्संगके समय जब वक्ता दुर्गुण-दुराचारके त्यागकी बात कहता
है, तब श्रोता दूसरे व्यक्तियोंमें दुर्गुण-दुराचारका चिन्तन करता है और जब वक्ता
सद्गुण-सदाचारको ग्रहण करनेकी बात कहता है, तब श्रोता अपनेमें सद्गुण-सदाचारका
चिन्तन करने लगता है‒इन बातोंसे सत्संगके समय कुसंग होने
लगता है ! कारण कि दूसरे व्यक्तिमें अवगुणोंका चिन्तन करनेसे उन अवगुणोंसे
तादात्मय हो जाता है और तादात्मय होनेसे वे अवगुण अपनेमें स्वतः-स्वभाविक आने लगते
हैं तथा दूसरोंमें
दोषदृष्टि करनेका स्वभाव बन जाता है, जो अवगुणोंका मूल है । अतः अवगुणोंकी
बात सुननेपर श्रोताको यह देखना चाहिये कि मेरेमें कौनसे-कौनसे अवगुण हैं और मेरेको
किन-किन अवगुणोंका त्याग करना है ? सद्गुणोंकी बात सुननेसे श्रोताको यह विचार करना
चाहिये कि दैवी अर्थात् भगवान्की सम्पत्ति होनेसे सभी
सद्गुण भगवान्के हैं और उनकी कृपासे ही अपनेमें आते हैं और आये हैं । ऐसा विचार
करते हुए श्रोता भगवान्में तल्लीन हो जाय । भगवान्में तल्लीन होनेसे वे
सद्गुण अपनेमें स्वतः-स्वाभाविक आने लगते हैं । अनुभवी पुरुष यदि किसी विषयका विवेचन करता है तो उसका विवेचन और तरहका (विलक्षण) होता है और जो शास्त्रकी दृष्टिसे विवेचन करता है, उसका विवेचन और तरहका होता है । दोनोंमें बड़ा फर्क होता है । शास्त्रकी दृष्टिसे विवेचन करनेसे वे विषय श्रोतको याद हो जाते हैं । इससे वह श्रोता वक्ता तो बन सकता है, पर उसका जीवन नहीं बदल सकता । परन्तु अनुभवी पुरुषके द्वारा विवेचन करनेसे श्रोताका जीवन बदल जाता है । गीता, रामायण, भागवत आदि सुननेसे, भगवान्की लीलाएँ सुननेसे भी असर पड़ता है । परन्तु वे भी यदि अनुभवी पुरुषके द्वारा, प्रेमी भक्तके द्वारा सुना जाय तो उसमें बड़ी विलक्षणता होती है । भगवान्के भक्तोंके चरित्र पढ़ने, सुनने, कहनेसे स्वाभाविक ही अन्तःकरण निर्मल होता है । इसलिये मैं भाई-बहनोंसे बहुत बार कहता हूँ कि आप भक्तोंके चरित्र पढ़ो और बालकोंको भी पढ़ाओ तथा उसको सुनो । बालक उनको कहानीके रूपमें शौकसे पढ़ेंगे तो उनपर भगवद्भावोंका असर पड़ेगा । भगवान् और उनके भक्तोंके चरित्रोंमें एक विलक्षण शक्ति है । उनको यदि मन लगाकर सुना जाय तो हृदय गद्गद हो जायगा, नेत्रोंमें आँसू आ जायँगे, गला भर जायगा, एक मस्ती आ जायगी ! |