।। श्रीहरिः ।।

                                    


आजकी शुभ तिथि–
  कार्तिक कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
                             
   भगवत्प्राप्तिके लिये भविष्यकी  
             अपेक्षा नहीं


एक बहुत मार्मिक बात है, जिसकी तरफ साधकोंका ध्यान बहुत कम है । यदि उसपर विशेष ध्यान दिया जाय तो जल्दी-से-जल्दी बहुत बड़ा लाभ हो सकता है ।

साधकोंके भीतर एक गलत धारणा दृढ़तासे जमी हुई है कि जैसे संसारका कोई काम करते-करते होता है, तत्काल नहीं होता; वैसे ही अर्थात्‌ उसी रीतिसे भगवान्‌की प्राप्ति भी साधन करते-करते होती है, तत्काल नहीं होती । ऐसी धारणा ही भगवत्प्राप्तिमें देर कर रही है । जैसे, यदि बालक माँके पीछे पड़ जाय कि मुझे तो अभी ही लड्डू दे तो लड्डू बना हुआ नहीं होनेपर माँ उसे तत्काल कैसे बनाकर दे देगी ? यद्यपि माँका बालकपर बड़ा स्नेह, बड़ा प्यार है; क्योंकि उसके लिये अपने बालकसे बढ़कर प्यारा और कौन है ? परन्तु फिर भी लड्डू बनानेमें समय तो लगेगा ही । ऐसे ही किसी स्थानपर जाना हो, किसी वस्तुका सुधार करना हो, किसी वस्तुको बदलना हो‒इन सबमें समयकी अपेक्षा है । तात्पर्य यह है कि सांसारिक वस्तुको प्राप्त करनेमें तो समय लगता है; परन्तु भगवान्‌को प्राप्त करनेमें समय नहीं लगता‒यह एक बहुत मार्मिक बात है ।

हम सब-के-सब परमात्मरूप कल्पवृक्षकी छायामें रहते हैं । इस कल्पवृक्षकी छायामें रहते हुए यदि हम ऐसा भाव रखते हैं कि बहुत साधन करनेपर भविष्यमें कभी भगवत्प्राप्ति होगी तो अपनी धारणाके अनुसार भगवान्‌ भविष्यमें ही कभी मिलेंगे । यदि हम ऐसा भाव बना लें कि भगवान्‌ तो अभी मिलेंगे तो वे अभी ही मिल जायँगे । भगवान्‌ने स्वयं कहा भी है‒

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।

(गीता ४/११)

‘जो मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ ।’

अतएव भगवान्‌की प्राप्तिमें भविष्य नहीं है । हमलोगोंकी भावनामें ही भविष्य है ।

इस विषयमें एक बात विशेष महत्त्वकी है कि संसारके जितने भी काम हैं, सब-के-सब बनने और बिगड़नेवाले हैं । बननेवाले काममें देर लगती है, परन्तु बने-बनाये (विद्यमान) काममें देर कैसे लग सकती है ? परमात्मा भी विद्यमान हैं और हम भी विद्यमान हैं । उनके और हमारे बीच देश-काल आदिका कोई भी व्यवधान नहीं है; फिर परमात्माकी प्राप्तिमें देर क्यों लगनी चाहिये ?

भगवान्‌ सब समयमें, सब देश (स्थान)-में, सब वस्तुओंमें तथा सब प्राणियोंमें विद्यमान हैं । समय, देश, वस्तु, प्राणी आदि सब-के-सब बदलनेवाले हैं अर्थात्‌ निरन्तर नहीं रहते । इसके विपरीत हम (स्वयं) भी निरन्तर रहनेवाले हैं और भगवान्‌ भी । ऐसे भगवान्‌को प्राप्त करनेके लिये हमने ऐसी धारणा बना ली है कि जब संसारका कोई साधारण काम भी शीघ्र नहीं होता, तब जो सबसे महान हैं, उन भगवान्‌की प्राप्तिका कार्य शीघ्र कैसे हो जायगा ? परन्तु वास्तवमें सबसे ऊँची वस्तु सबसे सहज-सुलभ भी होती है ! भगवान्‌ सबके लिये हैं और सबको प्राप्त हो सकते हैं ।