।। श्रीहरिः ।।

                                                  


आजकी शुभ तिथि–
  कार्तिक शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
               दृढ़ निश्चयकी महिमा


परमात्माको मान लें और संसारको जान लें । परमात्माको कैसे मानें ? कि परमात्मा तो हैं; और संसारको कैसे जानें ? कि संसार नहीं है । संसारको ठीक जान लेनेपर परमात्मा प्रकट हो जाते हैं । ‘यह बात ठीक दीखती है, तो फिर जँचती क्यों नहीं ?’ इसमें कारण यह है कि संसारसे सुख लेते हो । जबतक सांसारिक सुखका लोभ रहेगा, तबतक ‘यह संसार नाशवान् है, असत्य है’‒ऐसा कहनेपर भी दीखेगा नहीं ।

काला भौंरा बाँसमें छेद करके रहता है । बाँस कितना कड़ा होता है, पर भौरेके दाँत इतने कठोर होते हैं कि उसमें भी गोल-गोल छेद कर देता है ! परन्तु वह कमलके भीतर बैठता है, तब रातमें कमलके बन्द होनेपर भी वह उसे काटकर बाहर नहीं आता । वह सोचता है कि रात चली जायेगी, प्रभात हो जायगा, सूर्यका उदय हो जायगा, तब कमल खिल जायगा और उस समय मैं उड़ जाऊँगा । वह बाँसमें छेद कर देता है, पर कमलकी पंखुड़ी उससे नहीं कटती । क्या वह इतना कमजोर है ? वह उस कमलसे सुख लेता है, इसलिये कमजोर हो जाता है ! ऐसे ही मनुष्य संसारसे सुख लेता है, इसलिये कमजोर हो जाता है । बीकानेरकी बोलीमें एक बात आती है‒‘रांडरा काचा’ अर्थात् स्त्रीके आगे बिलकुल कच्चा, स्त्रीका गुलाम । इस संसाररूपी स्त्रीके आगे यह मनुष्य कच्चा, कमजोर हो जाता है । कच्चापन क्या है ? संसारसे सुख लेता है, यही कच्चापन है । इस कच्चापनको दूर करना है ।

‘परमात्मा है’‒यह तो मान्यता है और ‘संसार नाशवान् है’‒यह प्रत्यक्ष है । संसारको ठीक जान लो तो परमात्मा प्रकट हो जायँगे, इतनी-सी बात है । थोड़ी देर बैठकर इस बातको जमा लो कि बाहर-भीतर, ऊपर-नीचे सब जगह परमात्मा ही हैं । जैसे समुद्रमें गोता लगानेपर चारों तरफ जल-ही-जल है, ऐसे ही सब जगह परमात्मा-ही-परमात्मा हैं । संसार तो बेचारा यों ही नष्ट हो रहा है !

श्रोता‒संसारका सुख लेना कैसे मिटे ?

स्वामीजी‒इसको अपनी कच्चाई समझें तो यह मिट जायगा । इसको तो आप मिटायेंगे, तभी मिटेगा । दूसरा नहीं मिटा सकता । अतः आप अपना पूरा बल लगायें । फिर भी न मिटे तो ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ कहकर भगवान्‌को पुकारें । यह नियम है कि जब आदमी निर्बल हो जाता है, तब वह सबलका सहारा लेता ही है । एक तो सांसारिक सुखासक्तिको मिटानेकी चाहना नहीं है और एक हम उसको मिटाते नहीं हैं, ये दो बाधाएँ हैं । ये दोनों बाधाएँ हट जायँ, फिर भी सुखाक्ति न मिटे तो उस समय आप स्वतः परमात्माको पुकार उठोगे । बालककी भी मनचाही नहीं होती तो वह रो पड़ता है और रोनेसे सब काम हो जाता है । ऐसे ही सज्जनो ! उस प्रभुके आगे रो पड़ो तो सब काम हो जायगा । वे प्रभु सर्वथा सबल हैं । उनके रहते हम दुःख क्यों पायें ? भगवान्‌ हमारे हैं । बालक कहता है कि माँ मेरी है, तो माँको उसे गोदमें लेना पड़ेगा । वह तो केवल एक जन्मकी माँ है; परन्तु वे प्रभु सदाकी और सबकी माँ है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे