अपना जीवन अपने लिये नहीं है, प्रत्युत दूसरोंके हितके लिये है । ᇮ
ᇮ ᇮ दूसरेके दुःखसे दुःखी होना सेवाका मूल है । ᇮ
ᇮ ᇮ भलाई करनेसे समाजकी सेवा होती है । बुराई-रहित होनेसे विश्वमात्रकी
सेवा होती है । कामना-रहित होनेसे अपनी सेवा होती है । भगवान्से प्रेम (अपनापन) करनेसे
भगवान्की सेवा होती है । ᇮ
ᇮ ᇮ जो सच्चे हृदयसे भगवान्की तरफ चलता है, उसके द्वारा स्वतः-स्वाभाविक
दूसरोंका हित होता है । ᇮ
ᇮ ᇮ संसारसे मिली हुई वस्तु केवल संसारकी सेवा करनेके लिये है और
किसी कामकी नहीं । ᇮ
ᇮ ᇮ कोई वस्तु हमें अच्छी लगती है तो वह भोगनेके लिये नहीं है,
प्रत्युत सेवा करनेके लिये है । ᇮ
ᇮ ᇮ मनुष्यको वह काम करना चाहिये, जिससे उसका भी हित हो और दुनियाका भी हित हो,
अभी भी हित हो और परिणाममें भी हित हो । ᇮ
ᇮ ᇮ शरीरकी सेवा करोगे तो संसारके साथ सम्बन्ध जुड़ जायगा और (भगवान्के
लिये) संसारकी सेवा करोगे तो भगवान्के साथ सम्बन्ध जुड़ जायगा । ᇮ
ᇮ ᇮ जिसके हृदयमें सबके हितका भाव रहता है,
वह भगवान्के हृदयमें स्थान पाता है । ᇮ
ᇮ ᇮ परमार्थ नहीं बिगड़ा है,
प्रत्युत व्यवहार बिगड़ा है; अतः व्यवहारको ठीक करना है । व्यवहार ठीक होगा‒स्वार्थ और अभिमानका
त्याग करके दूसरोंकी सेवा करनेसे । ᇮ
ᇮ ᇮ दूसरोंके हितका भाव रखनेवाला जहाँ भी रहेगा,
वहीं भगवान्को प्राप्त कर लेगा । ᇮ
ᇮ ᇮ
भगवान्के सम्मुख होनेके लिये संसारसे विमुख होना है और संसारसे
विमुख होनेके लिये निष्कामभावसे दूसरोंकी सेवा करनी है । ☼ ☼ ☼ ☼ |