सेवाके लिये वस्तुकी कामना करना गलती है । जो वस्तु मिली हुई
है,
उसीसे सेवा करनेका अधिकार है । ᇮ
ᇮ ᇮ संसारमें दूसरोंके लिये जैसा करोगे,
परिणाममें वैसा ही अपने लिये हो जायगा । इसलिये दूसरोंके लिये
सदा अच्छा ही करो । ᇮ
ᇮ ᇮ जो अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके केवल दूसरोंके हितमें
लगा है,
उसका जीना ही वास्तवमें जीना है । ᇮ
ᇮ ᇮ जो सेवा लेना चाहते हैं, उनके लिये तो वर्तमान समय बहुत खराब है,
पर जो सेवा करना चाहते हैं, उनके लिये वर्तमान समय बहुत बढ़िया है । ᇮ
ᇮ ᇮ हमारी किसी भी क्रियासे किसीको किंचिन्मात्र भी दुःख न हो‒यह
भाव ‘सेवा’ है । ᇮ
ᇮ ᇮ निःस्वार्थभावसे दूसरोंकी सेवा करनेसे व्यवहार भी बढ़िया होता
है और ममता भी टूट जाती है । ᇮ
ᇮ ᇮ घरवालोंकी सेवा करनेसे मोह होता ही नहीं । मोह होता है कुछ-न-कुछ
लेनेकी इच्छासे । ᇮ
ᇮ ᇮ भगवान्को प्राप्त करके मनुष्य संसारका जितना उपकार कर सकता
है,
उतना किसी दान-पुण्यसे नहीं कर सकता । ᇮ
ᇮ ᇮ जो हमसे द्वेष रखता है, उसकी सेवा करनेसे अधिक लाभ होता है;
क्योंकि वहाँ सेवाका सुखभोग नहीं होता । ᇮ
ᇮ ᇮ कभी सेवाका मौका मिल जाय तो आनन्द मनाना चाहिये कि भाग्य खुल
गया ! ᇮ
ᇮ ᇮ
सम्पूर्ण प्राणियोंके हितसे अलग अपना हित माननेसे अहम् बना रहता
है, जो साधकके लिये आगे चलकर बाधक होता है । अतः साधकको प्रत्येक क्रिया संसारके हितके
लिये ही करनी चाहिये । ☼ ☼ ☼ ☼ |