एक सज्जन मिले ।
वे कहते थे कि तीर्थोंका माहात्मय बहुत है । गंगाजी अच्छी हैं, यमुनाजी अच्छी हैं,
प्रयागराज बड़ा अच्छा है‒ऐसा लोग कहते तो हैं, परन्तु किराया तो देते नहीं । किराया
दें तो वहाँ जायें । सत्संगमें बढ़िया-बढ़िया बात सुनते हैं और परमात्माके धाम
जानेके किराया भी मिलता है । सत्संगमें ज्ञान मिलता है,
प्रेम मिलता है, भगवान्की भक्ति मिलती है । भगवान् शबरीसे कहते हैं‒‘प्रथम भगति संतन्ह कर संगा ।’ दण्डक वन था, उसमें वृक्ष
आदि सब सूखे हुए थे । उसमें शबरी रहती थी । यहाँ शबरीको सत्संग मिल गया, यह भगवान्की
कृपा है । मतंग ऋषि थे, बड़े वृद्ध सन्त, कृपाकी मूर्ति । उन्होंने शबरीको आश्वासन
दिया था कि बेटा, तू चिन्ता मत कर, यहाँ रह जा । ऋषि-मुनियोंने इसका बड़ा विरोध
किया, पर सन्तकी
कृपा बड़ी विचित्र होती है । धनी आदमी राजी हो
जाय तो धन दे दे, अपनी कुछ चीज दे दे, परन्तु सन्त कृपा
करें तो भगवान्को दे दें । उनके पास भगवान्रूपी धन होता है । वे सामान्य
धनके धनी नहीं होते हैं, असली धनके धनी होते है, मालामाल होते हैं और वह माल ऐसा
विलक्षण है कि ‘दानेन वर्धते नित्यम्’,
ज्यों-ज्यों देते हैं, त्यों-त्यों बढ़ता है । ऐसा अपूर्व धन है । अतः खुला खर्च
करते हैं । खुला भंडार पड़ा हुआ है, अपार,
असीम, अनन्त है; जिसका कोई अन्त ही नहीं है । भगवान्का ऐसा अनन्त अपार
खजाना है । फिर भी मनुष्य मुफ्तमें दुःख पा रहे हैं । इसलिये सज्जनो, बड़े
आश्चर्यकी बात है ! पानीमें
मीन पियासी, मोहि
देखत आवै हाँसी । जल बिच मीन, मीन बिच जल है, निश दिन रहत पियासी ॥ भगवान्में सब
संसार है और सबके भीतर भगवान् हैं । उन भगवान्से विमुख होते हैं तो सन्त-महात्मा
जीवको परमात्माके सम्मुख कर देते हैं । ‘सनमुख होइ जीव
मोहि जबहीं ।’ अरे भाई ! परमात्मा तो सम्मुख है ही, हमारा प्यारा
माता-पिता, भाई-बन्धु, कुटुम्बी, सम्बन्धी‒वह सब तरहसे अपना है । वे प्रभु हमारे
हैं । सन्त ऐसी बात बता दें और हम वह बात सुनकर पकड़ लें तो बड़ा भारी लाभ होता है ।
स्वयं हम पकड़ें और किसी सन्त-महात्माके कहनेसे हृदयसे
पकड़ें तो उसमें बड़ा अन्तर होता है । सन्त-महात्मा
जो कहते हैं, उनके वचनोंका आदर करो । जमानत भी ली जाती है तो इज्जतदार
आदमीकी । हर एककी जमानत नहीं होती है । ऐसे ही भगवान्के
दरबारमें सन्त-महात्माओंकी और भक्तोंकी बड़ी इज्जत है, तभी तो गोस्वामीजीने
कह दिया‒ सत्य बचन आधीनता पर तिय मातु समान । इतने
पै हरि ना मिले तो तुलसीदास जमान ॥ तुलसीदासजीकी
जमानत है । सन्त लोग जमानत दे देते हैं और वह भगवान्के यहाँ चलती है । सन्तोंके
यहाँ परमात्माका बड़ा खजाना रहता है । मुफ्तमें धन मिलता है, मुफ्तमें कमाया हुआ,
तैयार किया हुआ, सत्संगसे यह सब मिल सकता है । प्रश्न‒कुछ लोगोंको सत्संग करना सुहाता ही नहीं ।
इसका क्या कारण है ? उत्तर‒पापीका यह
स्वाभाव है कि उसे सत्संग सुहाता नहीं । पापवंत कर सहज सुभाऊ । भजनु मोर तेहि भाव न काऊ ॥ (मानस ५/४३/२) |