सत्संगमें
व्यापार एक ही चलता है, भगवान्की बात । उसीको कहना, सुनना, समझना, विचार करना,
चिन्तन करना । भगवान् जिसपर कृपा करते हैं, उसको सत्संग
देते हैं । सत्संग दिया तो समझो भगवान्के खोजनेकी बढ़िया चीज मिल गयी । जो
भगवान्के प्यारे होते हैं, वे भगवान्के भीतर रहते हैं । यह हृदयका धन है ।
माता-पिता जिस बालकपर ज्यादा स्नेह रखते हैं, उसको अपनी पूँजी बता देते हैं कि
बेटा, देखो यह धन है । ऐसे ही भगवान् जब बहुत कृपा करते
हैं तो अपने खजानेकी चीज (पूँजी) सन्त-महात्माओंको देते हैं‒लो बेटा, यह धन हमारे पास है । सत्संग
मिल जाय तो समझना चाहिये कि हमारा उद्धार करनेकी भगवान्के मनमें विशेषतासे आ गयी; नहीं तो सत्संग
क्यों दिया ? हम तो ऐसे ही जन्मते-मरते रहते, यह अडंगा क्यों लगाया ? तो यह कल्याण
करनेके लिये लगाया है । जिसे सत्संग मिल गया तो उसे यह समझना चाहिये कि भगवान्ने उसे निमन्त्रण दे दिया कि आ जाओ
। ठाकुरजी बुलाते हैं, अपने तो प्रेमसे सत्संग करो, भजन-स्मरण करो, जप करो ।
सत्संग करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । सत् परमात्मा सब जगह मौजूद है । वह परमात्मा मेरा है और मैं उसका हूँ‒ऐसा मानकर सत्संग करे तो
वह निहाल हो जाय । सत्संग कल्पद्रुम
है । सत्संग अनन्त जन्मोंके पापोंको नष्ट-भ्रष्ट कर देता है । जहाँ सत्की तरफ गया
कि असत् नष्ट हुआ । असत् तो बेचारा नष्ट ही होता है । जीवित रहता ही नहीं । इसने
पकड़ लिया असत्को । अगर यह सत्की तरफ जायगा तो असत् तो खत्म होगा ही । सत्संग
अज्ञानरूपी अन्धकारको दूर कर देता है । महान् परमानन्द-पदवीको दे देता है । यह
परमानन्द-पदवी दान करता है । कितनी विलक्षण बात है ! सत्संग क्या नहीं करता ?
सत्संग सब कुछ करता है । ‘प्रसूते सद्बुद्धिम् ।’ सत्संग श्रेष्ठ बुद्धि पैदा करता है । बुद्धि शुद्ध हो जाती है
। गोस्वामीजी महाराज लिखते हैं‒ मज्जन फल पखिय ततकाला । काक होहिं पिक बकउ मराला ॥ (मानस १/२/१) साधु-समाजरूपी
प्रयागमें डुबकी लगानेसे तत्काल फल मिलता है । कौआ कोयल बन जाता है, बगुला हंस बन
जाता है अर्थात् सत्संग करनेसे रंग नहीं बदलता, ढंग
बदला जाता है । जो वाणी कौआकी तरह है, वह कोयलकी तरह हो जाती है । जो बगुला
होता है, वह हंसकी तरह नीर-क्षीर विवेक करने लगता है । सत्संगसे
आचरण और विवेक तत्काल बदल जाते हैं । सत्संग मिल जाय तो ये बदल जाते हैं
अगर नहीं बदले तो, या तो सत्संग नहीं मिला या सत्संगमें आप नहीं गये । दोनोंके
मिलनेसे ही काम बनता है । पारस लोहेको सोना बना दे, अगर मिले तब तो, पर बीचमें
पत्ता रख दिया जाय तो फिर कुछ नहीं बननेका ।
भगवान्के प्रति व सन्त-महात्माओंके प्रति निष्काम-भावसे प्रेम
करो । भगवान् मीठे लगें, प्यारे लगें, अच्छे लगें । क्यों लगें ?
क्योंकि वे मेरे हैं । बच्चेको माँ अच्छी लगती है । क्यों अच्छी लगती है ? क्योंकि
मेरी माँ है । ऐसे ही भगवान्के साथ अपनापन रहे, तो यह सत्संग होता है । भगवान् हमारे हैं, हम भगवान्के हैं । कैसी बढ़िया
बात है । |