।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल सप्तमी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

सभी परमात्मप्राप्ति कर सकते हैं


एक ऐसी बात है, जिसकी महिमा मैं कह नहीं सकता । अगर आप ध्यान दें तो सदाके लिये निहाल हो जायँ । वह यह हैऐसा कोई पारमार्थिक साधन है ही नहीं, जिसके लिये हम कह सकें कि इसको हम नहीं कर सकते और ऐसा कोई सांसारिक कार्य नहीं है, जिसको सब कर सकते हों । कारण कि परमात्मप्राप्तिकी योग्यता, सामर्थ्य सभी मनुष्योंमें है, परन्तु सांसारिक वस्तुओंको प्राप्त करनेकी योग्यता, सामर्थ्य सभी मनुष्योंमें नहीं है । जैसे कामनाकी पूर्ति करना और कामनाका त्याग करनाये दो बातें हैं । कामनाकी पूर्ति कभी कोई कर ही नहीं सकता । हम इन्द्र बन जायँ, महाराजा बन जायँ, बड़े धनी बन जायँ, कितनी ही सम्पत्ति इकठ्ठी कर लें, तो भी कामनाकी पूर्ति कभी हो ही नहीं सकती । परन्तु कामनाका त्याग हो सकता है । सांसारिक पूर्ति कोई कभी कर ही नहीं सकता और परमात्माकी प्राप्ति सभी कर सकते हैं । इसमें कोई अयोग्य है ही नहीं; क्योंकि परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही मनुष्य-शरीर मिला है । जिस कामके लिये शरीर मिला है, वही काम यदि नहीं कर सकता तो फिर क्या कर सकेगा वह ? सांसारिक पूर्तिके लिये शरीर मिला ही नहीं है तो फिर उसकी पूर्ति कैसे कर सकता है ? कर ही नहीं सकता ।

परमात्माकी प्राप्ति करनेमें, सांसारिक कामनाका त्याग करनेमें सब-के-सब स्वाधीन हैं और सांसारिक कामनाकी पूर्ति करनेमें सब-के-सब पराधीन हैं । यहाँ इतने लोग बैठे हैं, कोई सांसारिक कामना पूरी करनेमें समर्थ हो तो बताये ! कभी कोई समर्थ है ही नहीं । परन्तु कामनाका त्याग करनेमें, परमात्माकी प्राप्ति करनेमें सब-के-सब समर्थ हैं, कोई असमर्थ नहीं है । सब-के-सब पात्र हैं; कोई अपात्र नहीं है, सब-के-सब योग्य हैं, कोई अयोग्य नहीं है । सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्ति दो मनुष्योंको भी एक समान नहीं होती, पर परमात्माकी प्राप्ति सबको एक समान होती है । पहले नारद, व्यास, शुकदेव आदि महात्माओंको जिस तत्त्वकी प्राप्ति हुई है, उसी तत्त्वकी प्राप्ति आज भी कोई करना चाहे तो कर सकता है । ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो अथवा शूद्र हो; ब्रह्मचारी हो, गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो अथवा संन्यासी हो; बीमार हो अथवा स्वस्थ हो, अनपढ़ हो अथवा पढ़ा-लिखा हो; निर्धन हो अथवा धनवान् होसब-के-सब परमात्माकी प्राप्तिके अधिकारी हैं । इसमें आप खूब शंका करें; शंका टिकेगी नहीं ! सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्तिमें कोई भी स्वतन्त्र नहीं है; क्योंकि उनकी प्राप्ति दूसरोंके अधीन है । दूसरेकी अधीनता स्वीकार किये बिना, दूसरेकी सहायता लिये बिना अकेला कोई सांसारिक भोगोंको भोग ही नहीं सकता । परन्तु परमात्माकी प्राप्ति अकेला ही कर सकता है, क्योंकि परमात्माकी प्राप्तिमें किसीकी सहायताकी किंचिन्मात्र भी आवश्यकता नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिमें सब-के-सब स्वतन्त्र हैं ।