एक ऐसी बात है, जिसकी महिमा मैं कह नहीं सकता ।
अगर आप ध्यान दें तो सदाके लिये निहाल हो जायँ । वह यह है—ऐसा कोई पारमार्थिक साधन है ही नहीं, जिसके लिये
हम कह सकें कि इसको हम नहीं कर सकते और ऐसा कोई सांसारिक कार्य नहीं है, जिसको सब
कर सकते हों । कारण कि
परमात्मप्राप्तिकी योग्यता, सामर्थ्य सभी मनुष्योंमें है, परन्तु सांसारिक
वस्तुओंको प्राप्त करनेकी योग्यता, सामर्थ्य सभी मनुष्योंमें नहीं है । जैसे
कामनाकी पूर्ति करना और कामनाका त्याग करना—ये दो बातें हैं । कामनाकी पूर्ति कभी कोई कर ही
नहीं सकता । हम इन्द्र बन जायँ, महाराजा बन जायँ, बड़े धनी बन जायँ, कितनी
ही सम्पत्ति इकठ्ठी कर लें, तो भी कामनाकी पूर्ति कभी हो ही नहीं सकती । परन्तु
कामनाका त्याग हो सकता है । सांसारिक पूर्ति कोई कभी कर
ही नहीं सकता और परमात्माकी प्राप्ति सभी कर सकते हैं । इसमें कोई अयोग्य है ही
नहीं; क्योंकि परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही मनुष्य-शरीर मिला है । जिस
कामके लिये शरीर मिला है, वही काम यदि नहीं कर सकता तो फिर क्या कर सकेगा वह ?
सांसारिक पूर्तिके लिये शरीर मिला ही नहीं है तो फिर उसकी पूर्ति कैसे कर सकता है
? कर ही नहीं सकता ।
परमात्माकी प्राप्ति करनेमें, सांसारिक कामनाका त्याग
करनेमें सब-के-सब स्वाधीन हैं और सांसारिक कामनाकी पूर्ति करनेमें सब-के-सब पराधीन
हैं । यहाँ इतने लोग बैठे हैं, कोई सांसारिक कामना पूरी करनेमें समर्थ हो तो बताये
! कभी कोई समर्थ है ही नहीं । परन्तु कामनाका त्याग करनेमें, परमात्माकी प्राप्ति
करनेमें सब-के-सब समर्थ हैं, कोई असमर्थ नहीं है । सब-के-सब पात्र हैं; कोई अपात्र
नहीं है, सब-के-सब योग्य हैं, कोई अयोग्य नहीं है । सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्ति
दो मनुष्योंको भी एक समान नहीं होती, पर परमात्माकी प्राप्ति सबको एक समान होती है
। पहले नारद, व्यास, शुकदेव आदि महात्माओंको जिस तत्त्वकी प्राप्ति हुई है, उसी
तत्त्वकी प्राप्ति आज भी कोई करना चाहे तो कर सकता है । ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो,
वैश्य हो अथवा शूद्र हो; ब्रह्मचारी हो, गृहस्थ हो, वानप्रस्थ हो अथवा संन्यासी
हो; बीमार हो अथवा स्वस्थ हो, अनपढ़ हो अथवा पढ़ा-लिखा हो; निर्धन हो अथवा धनवान् हो—सब-के-सब परमात्माकी प्राप्तिके अधिकारी हैं । इसमें आप खूब
शंका करें; शंका टिकेगी नहीं ! सांसारिक वस्तुओंकी
प्राप्तिमें कोई भी स्वतन्त्र नहीं है; क्योंकि उनकी प्राप्ति दूसरोंके अधीन है ।
दूसरेकी अधीनता स्वीकार किये बिना, दूसरेकी सहायता लिये बिना अकेला कोई सांसारिक
भोगोंको भोग ही नहीं सकता । परन्तु परमात्माकी प्राप्ति अकेला ही कर सकता है,
क्योंकि परमात्माकी प्राप्तिमें किसीकी सहायताकी किंचिन्मात्र भी आवश्यकता नहीं है
। परमात्माकी प्राप्तिमें सब-के-सब स्वतन्त्र हैं । |