पारमार्थिक बात बतानेवाले भी हर समय तैयार हैं ।
दत्तात्रेयजी महाराजने चौबीस गुरु बनाये तो पारमार्थिक बात बतानेवालोंको ही गुरु
बनाया, नहीं बतानेवालोंको वे गुरु कैसे बनाते ? गुरुका कभी अभाव होता ही नहीं । बालकपनमें खिलौनोंकी कामना होती है, पर आज खिलौनोंकी कामना
होती है क्या ? इससे सिद्ध हुआ कि कामना छूटती है । यह आपके अनुभवकी बात है । सांसारिक कामना टिक नहीं सकती । एक कामना छूटती है तो आप दूसरी
कामना पकड़ लेते हैं । इस तरह आप नयी-नयी कामना पकड़ते रहते हैं । अगर पकड़ना छोड़ दें
तो निहाल हो जायँ ! परमात्मप्राप्तिकी कामना तो कभी किसीकी नहीं मिटती, केवल दब
जाती है । जो कामना टिकती नहीं, उसको तो पकड़ते रहते हैं और जो कामना मिटती नहीं,
उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देते—यह हमारी वस्तुस्थिति है । परमात्मप्राप्तिकी कामना पूरी करनेमें आप सब सबल हैं,
निर्बल नहीं हैं, परन्तु सांसारिक कामना पूरी करनेमें आप सब निर्बल हैं, कोई सबल
नहीं । श्रोता—संसारकी इच्छा और परमात्माकी इच्छा—दोनों बिलकुल विपरीत होते हुए भी एक ही जगह रहती हैं क्या ? स्वामीजी—दोनों इच्छाएँ एक ही जगह होती हैं । जहाँ भोगकी इच्छा है, वहाँ मोक्षकी इच्छा है । भोगकी इच्छा
निवृत्त होगी और परमात्माकी इच्छा जाग्रत् हो जायगी । संसारकी इच्छाको मिटा दो तो
परमात्माकी इच्छा आप-से-आप पूरी हो जायगी । संसारकी इच्छा कभी पूरी नहीं
होगी । लाखों, करोड़ों, अरबों जन्म हो जायँगे तो भी पूरी नहीं होगी, प्रत्युत
नयी-नयी पैदा होती रहेगी—‘जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई ।’ श्रोता—दोनों विपरीत इच्छाएँ एक ही जगह कैसे रहती हैं ? स्वामीजी—एक इच्छाको तो आपने पकड़ा और एक इच्छा आपमें स्वतः है । संसारकी इच्छाको तो आपने पकड़ा है और परमात्माकी इच्छा आपमें
खुदमें है । मैं सदा जीता रहूँ, मेरेमें और कोई अज्ञान न रहें, मैं सदा सुखी रहूँ—यह आपकी खुदकी इच्छा है । भोगोंकी इच्छा आपकी
खुदकी नहीं है ।
इच्छाके प्रेरक आप खुद ही हैं । अगर आप खुद सांसारिक
इच्छाको छोड़ दें तो वह टिक सकती नहीं । जिसकी पूर्ति होनी असम्भव है, उसको छोड़ ही
देना चाहिये । सांसारिक इच्छा इसलिये पूरी नहीं होती है
कि संसार ‘नहीं’ है और परमात्माकी इच्छा इसलिये पूरी होती है कि परमात्मा ‘है’ ।
सांसारिक वस्तुएँ कभी सदा नहीं रहती, मिट जाती है, पर परमात्मा सदा ही रहते हैं । |