।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७९, शनिवार

सभी परमात्मप्राप्ति कर सकते हैं


पारमार्थिक बात बतानेवाले भी हर समय तैयार हैं । दत्तात्रेयजी महाराजने चौबीस गुरु बनाये तो पारमार्थिक बात बतानेवालोंको ही गुरु बनाया, नहीं बतानेवालोंको वे गुरु कैसे बनाते ? गुरुका कभी अभाव होता ही नहीं ।

बालकपनमें खिलौनोंकी कामना होती है, पर आज खिलौनोंकी कामना होती है क्या ? इससे सिद्ध हुआ कि कामना छूटती है । यह आपके अनुभवकी बात है । सांसारिक कामना टिक नहीं सकती । एक कामना छूटती है तो आप दूसरी कामना पकड़ लेते हैं । इस तरह आप नयी-नयी कामना पकड़ते रहते हैं । अगर पकड़ना छोड़ दें तो निहाल हो जायँ ! परमात्मप्राप्तिकी कामना तो कभी किसीकी नहीं मिटती, केवल दब जाती है । जो कामना टिकती नहीं, उसको तो पकड़ते रहते हैं और जो कामना मिटती नहीं, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देतेयह हमारी वस्तुस्थिति है । परमात्मप्राप्तिकी कामना पूरी करनेमें आप सब सबल हैं, निर्बल नहीं हैं, परन्तु सांसारिक कामना पूरी करनेमें आप सब निर्बल हैं, कोई सबल नहीं ।

श्रोतासंसारकी इच्छा और परमात्माकी इच्छादोनों बिलकुल विपरीत होते हुए भी एक ही जगह रहती हैं क्या ?

स्वामीजीदोनों इच्छाएँ एक ही जगह होती हैं । जहाँ भोगकी इच्छा है, वहाँ मोक्षकी इच्छा है । भोगकी इच्छा निवृत्त होगी और परमात्माकी इच्छा जाग्रत् हो जायगी । संसारकी इच्छाको मिटा दो तो परमात्माकी इच्छा आप-से-आप पूरी हो जायगी । संसारकी इच्छा कभी पूरी नहीं होगी । लाखों, करोड़ों, अरबों जन्म हो जायँगे तो भी पूरी नहीं होगी, प्रत्युत नयी-नयी पैदा होती रहेगी‘जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई ।’

श्रोतादोनों विपरीत इच्छाएँ एक ही जगह कैसे रहती हैं ?

स्वामीजीएक इच्छाको तो आपने पकड़ा और एक इच्छा आपमें स्वतः है । संसारकी इच्छाको तो आपने पकड़ा है और परमात्माकी इच्छा आपमें खुदमें है । मैं सदा जीता रहूँ, मेरेमें और कोई अज्ञान न रहें, मैं सदा सुखी रहूँयह आपकी खुदकी इच्छा है । भोगोंकी इच्छा आपकी खुदकी नहीं है ।

इच्छाके प्रेरक आप खुद ही हैं । अगर आप खुद सांसारिक इच्छाको छोड़ दें तो वह टिक सकती नहीं । जिसकी पूर्ति होनी असम्भव है, उसको छोड़ ही देना चाहिये । सांसारिक इच्छा इसलिये पूरी नहीं होती है कि संसार ‘नहीं’ है और परमात्माकी इच्छा इसलिये पूरी होती है कि परमात्मा ‘है’ । सांसारिक वस्तुएँ कभी सदा नहीं रहती, मिट जाती है, पर परमात्मा सदा ही रहते हैं ।