सातवाँ अध्याय सब कुछ वासुदेव ही है, भगवद्रूप ही है‒इसका मनुष्यको अनुभव कर लेना चाहिये
। सूतके मणियोंसे बनी हुई मालामें सूतकी तरह भगवान् ही सब संसारमें ओतप्रोत हैं ।
पृथ्वी, जल, तेज आदि तत्त्वोंमें; चन्द्र, सूर्य आदि रूपोंमें; सात्त्विक, राजस और तामस भाव, क्रिया आदिमें भगवान् ही
परिपूर्ण हैं । ब्रह्म, जीव, क्रिया, संसार, ब्रह्मा और विष्णुरूपसे भगवान् ही है । इस तरह तत्त्वसे
सब कुछ भगवान्-ही-भगवान् है । आठवाँ अध्याय अन्तकालीन चिन्तनके अनुसार ही जीवकी गति होती है, इसलिये मनुष्यको हरदम सावधान रहना चाहिये, जिससे अन्तकालमें भगवत्स्मृति बनी रहे
। अन्तसमयमें शरीर छूटते समय मनुष्य जिस वस्तु, व्यक्ति आदिका चिन्तन करता है, उसीके अनुसार उसको आगेका
शरीर मिलता है । जो अन्तसमयमें भगवान्का चिन्तन करता हुआ शरीर छोड़ता है, वह भगवान्को ही प्राप्त होता है । उसका फिर जन्म-मरण नहीं होता । अतः मनुष्यको सब समयमें, सभी अवस्थाओंमें और शास्त्रविहित सब काम करते हुए भगवान्को याद रखना चाहिये, जिससे अन्तसमयमें भगवान् ही याद आयें । जीवनभर रागपूर्वक
जो कुछ किया जाता है, प्रायः वही अन्तसमयमें याद आता है । नवाँ अध्याय सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, देश, वेश आदिके क्यों न हों । वे सभी भगवान्की
तरफ चल सकते हैं, भगवान्का आश्रय
लेकर भगवान्को प्राप्त कर सकते हैं । भगवान्को इस बातका दुःख है, खेद है, पश्चात्ताप है कि ये जीव मनुष्यशरीर पाकर, मेरी प्राप्तिका अधिकार पाकर भी मेरेको प्राप्त न करके, मेरे पास न आकर मौत (जन्म-मरण)-में जा रहे हैं । मेरेसे
विमुख होकर कोई तो मेरी अवहेलना करके, कोई आसुरी-सम्पत्तिका आश्रय लेकर और कोई सकामभावसे यज्ञ आदिका अनुष्ठान करके जन्म-मरणके चक्करमें जा रहे हैं । वे पापी-से-पापी हों, किसी नीच योनिमें पैदा हुए हों और किसी भी वर्ण, आश्रम, देश, वेश आदिके हों, वे सभी मेरा आश्रय लेकर
मेरी प्राप्ति कर सकते हैं । अतः इस मनुष्यशरीरको पाकर जीवको मेरा भजन करना चाहिये
। दसवाँ अध्याय मनुष्यके पास चिन्तन करनेकी जो शक्ति है, उसको भगवान्के चिन्तनमें ही लगाना
चाहिये ।
संसारमें जिस-किसीमें, जहाँ-कहीं विलक्षणता, विशेषता, महत्ता, अलौकिकता, सुन्दरता आदि दीखती है, उसमें मन खिंचता है, वह विलक्षणता आदि सब वास्तवमें भगवान्की
ही है । अतः वहाँ भगवान्का ही चिन्तन होना चाहिये, उस वस्तु, व्यक्ति आदिका नहीं । यही विभूतियोंके वर्णनका तात्पर्य है । |