।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार
                निर्जला एकादशी व्रत (स्मार्त)
                 वैष्णव एकादशी व्रत कल है

गीतामें फलसहित विविध

उपासनाओंका वर्णन


प्रश्न‒भूत आदि योनि न मिले, इसके लिये मनुष्यको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒मनुष्यशरीर केवल परमात्मप्राप्तिके लिये ही मिला है । अतः मनुष्यको सांसारिक भोग और संग्रहकी आसक्तिमें न फँसकर परमात्माके शरण हो जाना चाहिये; इसीसे वह अधोगतिसे, भूत-प्रेतकी योनिसे बच सकता है ।

प्रश्न‒भूत-प्रेत और पितरमें क्या अन्तर है ?

उत्तर‒ऐसे तो भूत, प्रेत, पिशाच, पितर आदि सभी देवयोनि कहलाते हैं[*] , पर उनमें भी कई भेद होते हैं । भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः वे हरेकको नहीं दीखते । हाँ, अगर वे स्वयं किसीको अपना रूप दिखाना चाहें तो दिखा सकते हैं । उनको मल-मूत्र आदि अशुद्ध चीजें खानी पड़ती हैं । वे शुद्ध अन्न-जल नहीं खा सकते, परन्तु कोई उनके नामसे शुद्ध पदार्थ दे तो वे खा सकते हैं । भूत-प्रेतोंके शरीरोंसे दुर्गन्ध आती है ।

पितर भूत-प्रेतोंसे ऊँचे माने जाते हैं । पितर प्रायः अपने कुटुम्बके साथ ही सम्बन्ध रखते हैं और उसकी रक्षा, सहायता करते हैं । वे कुटुम्बियोंको व्यापार आदिकी बात बता देते हैं, उनको अच्छी सम्मति देते हैं, अगर घरवाले बँटवारा करना चाहें तो उनका बँटवारा कर देते हैं, आदि । पितर गायके दूधसे बनी गरम-गरम खीर खाते हैं, गंगाजल जैसा ठंडा जल पीते हैं, शुद्ध पदार्थ ग्रहण करते हैं । कई पितर घरवालोंको दुःख भी देते हैं, तंग भी करते हैं, तो यह उनके स्वभावका भेद है ।

जैसे मनुष्योंमें चारों वर्णोंका, ऊँच-नीचका, स्वभावका भेद रहता है, ऐसे ही पितर, भूत, प्रेत, पिशाच आदिमें भी वर्ण, जाति आदिका भेद रहता है ।

प्रश्न‒कौन-से मनुष्य मरनेके बाद भूत-प्रेत बनते है ?

उत्तर‒जिन मनुष्योंका खान-पान अशुद्ध होता है, जिनके आचरण खराब होते हैं, जो दुर्गुण-दुराचारोंमें लगे रहते हैं, जिनका दूसरोंको दुःख देनेका स्वभाव है, जो केवल अपनी ही जिद रखते हैं, ऐसे मनुष्य मरनेके बाद क्रूर स्वभाववाले भूत-प्रेत बनते हैं । ये जिनमें प्रविष्ट होते हैं, उनको बहुत दुःख देते हैं और मन्त्र आदिसे भी जल्दी नहीं निकलते ।

जिन मनुष्योंका स्वभाव सौम्य है, दूसरोंको दुःख देनेका नहीं है; परन्तु सांसारिक वस्तु, स्त्री, पुत्र, धन, जमीन आदिमें जिनकी ममता-आसक्ति रहती है, ऐसे मनुष्य मरनेके बाद सौम्य स्वभाववाले भूत-प्रेत बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते और अपनी गतिका उपाय भी बता देते हैं ।

जिनको विद्या आदिका बहुत अभिमान, मद होता है; उस अभिमानके कारण जो दूसरोंको नीचा दिखाते हैं, दूसरोंका अपमान-तिरस्कार करते हैं, दूसरोंको कुछ भी नहीं समझते, ऐसे मनुष्य मरकर ब्रह्मराक्षस’ (जिन्न) बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं, किसीको पकड़ लेते हैं तो बिना अपनी इच्छाके उसको छोड़ते नहीं । इनपर कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं चलता । दूसरा कोई इनपर मन्त्रोंका प्रयोग करता है तो उन मन्त्रोंको ये स्वयं बोल देते हैं ।



[*]  विद्याधराऽप्सरोयक्षरक्षोगन्धर्वकिन्नराः       ।

        पिशाचो गुह्यकः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः ॥

(अमरकोष १ । १ । ११)