एक सच्ची घटना है । दक्षिणमें मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े
विद्वान् थे । उनको विद्याका बहुत अभिमान था । वे अपने समान किसीको विद्वान् मानते
ही नहीं थे और सबको नीचा दिखाते थे । एक दिनकी बात है,
दोपहरके समय वे अपने घरसे स्नान करनेके लिये नदीपर जा रहे थे
। मार्गमें एक पेड़पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे । वे आपसमें बातचीत कर रहे थे ।
एक ब्रह्मराक्षस बोला‒हम दोनों तो इस पेड़की दो डालियोंपर बैठे हैं,
पर यह तीसरी डाली खाली है; इसपर कौन आयेगा बैठनेके लिये ?
दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला‒यह जो नीचेसे जा रहा है न ?
यह आकर यहाँ बैठेगा; क्योंकि इसको अपनी विद्वत्ताका बहुत अभिमान है । उन दोनोंके
संवादको मोरोजी पन्तने सुना तो वे वहीं रुक गये और विचार करने लगे कि अरे ! विद्याके
अभिमानके कारण मेरेको ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा, प्रेतयोनियोंमें जाना पड़ेगा ! अपनी
दुर्गतिसे वे घबरा गये और मन-ही-मन सन्त ज्ञानेश्वरजीके शरणमें गये कि मैं आपके शरणमें
हूँ, आपके सिवाय मेरेको इस दुर्गतिसे बचानेवाला कोई नहीं है । ऐसा विचार करके वे वहींसे
आलन्दीके लिये चल पड़े, जहाँ संत ज्ञानेश्वरजी जीवित समाधि ले चुके थे । फिर वे जीवनभर
वहीं रहे,
घर आये ही नहीं । सन्तकी शरणमें जानेसे
उनका विद्याका अभिमान चला गया और सन्त-कृपासे वे भी सन्त बन गये ! जो स्त्री पर-पुरुषका चिन्तन करती रहती है तथा जिसकी
पुरुषमें बहुत ज्यादा आसक्ति होती है, वह मरनेके बाद ‘चुड़ैल’ बन
जाती है । भूत-प्रेतोंका
प्रायः यह नियम रहता है कि पुरुष भूत-प्रेत पुरुषोंको ही पकड़ते है और स्त्री भूत-प्रेत
स्त्रियोंको ही पकड़ते हैं; परन्तु चुड़ैल केवल पुरुषोंको ही पकड़ती है । चुड़ैल दो प्रकारकी
होती है‒एक तो पुरुषका शोषण करती रहती है अर्थात् उसका खून चूसती रहती है,
उसकी शक्ति क्षीण करती है; और दूसरी पुरुषका पोषण करती है,
उसको सुख-आराम देती है । ये दोनों ही प्रकारकी चुड़ैलें पुरुषको
अपने वशमें रखती हैं ।
एक सिपाही था । वह रातके समय कहींसे अपने घर आ रहा था । रास्तेमें
उसने चन्द्रमाके प्रकाशमें एक वृक्षके नीचे एक सुन्दर स्त्री देखी । उसने उस स्त्रीसे
बातचीत की तो उस स्त्रीने कहा‒मैं आ जाऊँ क्या ? सिपाहीने कहा‒हाँ, आ जा । सिपाहीके ऐसा कहनेपर वह स्त्री जो
चुड़ैल थी,
उसके पीछे आ गयी । अब वह रोज रातमें उस सिपाहीके पास आती,
उसके साथ सोती, उसका संग करती और सबेरे चली जाती । इस तरह वह उस सिपाहीका शोषण
करने लगी । एक बार रातमें वे दोनों लेट गये, पर बत्ती जलती रह गयी तो सिपाहीने उससे कहा कि तू बत्ती बन्द
कर दे । उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ लम्बा करके बत्ती बन्द कर दी । अब सिपाहीको पता
लगा कि यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है, यह तो चुड़ैल है ! वह बहुत घबराया । चुड़ैलने उसको धमकी दी कि
अगर तू किसीको मेरे बारेमें बतायेगा तो मैं तेरेको मार डालूँगी । इस तरह वह रोज रातमें
आती और सबेरे चली जाती । सिपाहीका शरीर दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था । लोग उससे पूछते
कि भैया ! तुम इतने क्यों सूखते जा रहे हो ? क्या बात है, बताओ तो सही । परन्तु चुड़ैलके डरके मारे वह किसीको कुछ बताता
नहीं था । एक दिन वह दूकानसे दवाई लाने गया । दूकानदारने दवाईकी पुड़िया बाँधकर दे दी
। सिपाही उस पुड़ियाको जेबमें डालकर घर चला आया । रातके समय जब वह चुड़ैल आयी,
तब वह दूरसे ही खड़े-खड़े बोली कि तेरी जेबमें जो पुड़िया है,
उसको निकालकर फेंक दे । सिपाहीको विश्वास हो गया कि इस पुड़ियामें
जरूर कुछ करामात है, तभी तो आज यह चुड़ैल मेरे पास नहीं आ रही है ! सिपाहीने उससे
कहा कि मैं पुड़िया नहीं फेकूँगा । चुड़ैलने बहुत कहा, पर सिपाहीने उसकी बात मानी नहीं । जब चुड़ैलका उसपर वश नहीं चला,
तब वह चली गयी । सिपाहीने जेबमेंसे
पुड़ियाको निकालकर देखा तो वह गीताका फटा हुआ पन्ना था ! इस तरह गीताका प्रभाव देखकर
वह सिपाही हर समय अपनी जेबमें गीता रखने लगा । वह चुड़ैल फिर कभी उसके पास नहीं आयी
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