जीवानां
गतयो बह्व्यो गीतया तु त्रिधा मता । द्विधोर्ध्वा हि द्विधा चाधो मध्यमैकेति पञ्चधा ॥ भगवान्ने गीतामें जीवकी मुख्यरूपसे तीन गतियोंका वर्णन किया
है‒उर्ध्वगति, अधोगति और मध्यगति । जैसे‒सत्त्वगुणकी तात्कालिक वृत्तिके बढ़नेपर मरनेवाला और सत्त्वगुणमें
स्थित रहनेवाला मनुष्य ऊर्ध्वगतिमें जाता है (१४ । १४, १८) । तमोगुणकी तात्कालिक वृत्तिके बढ़नेपर मरनेवाला और तमोगुणमें
स्थित रहनेवाला मनुष्य अधोगतिमें जाता है (१४ । १५, १८) । रजोगुणकी तात्कालिक वृत्तिके
बढ़नेपर मरनेवाला और रजोगुणमें स्थित रहनेवाला मनुष्य मध्यगतिमें जाता है (१४ । १५,
१८) । इन तीनों गतियोंका विस्तारसे वर्णन इस प्रकार है‒ ऊर्ध्वगति ऊर्ध्वगतिमें दो प्रकारके जीव जाते हैं‒ (१) लौटकर न आनेवाले‒(क) जो जीव शुक्लमार्गसे ब्रह्माजीके लोकमें जाते हैं,
वे वहाँ रहकर महाप्रलयके समय ब्रह्माजीके साथ ही भगवान्में
लीन हो जाते हैं अर्थात् मुक्त हो जाते हैं (८ । २४) । (ख) जो तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त हो जाते हैं, वे यहाँ ही तत्त्वमें लीन हो जाते हैं,
उनके प्राणोंका उत्क्रमण नहीं होता (५ । १९, २४-२६) । (ग) जो भगवान्के भक्त होते हैं,
वे भगवान्के परमधाममें चले जाते हैं (८ । २१;
१५ । ६) । (घ) भगवान् दुष्टोंका नाश करनेके लिये अवतार लेते हैं (४ ।
८) । वे दुष्ट जब भगवान्के हाथसे मारे जाते हैं, तब वे यहाँ ही भगवान्के श्रीविग्रहमें लीन हो जाते हैं;
क्योंकि उनके सामने भगवान्का ही श्रीविग्रह रहता है और उसीका
चिन्तन करते हुए वे मरते हैं । भगवान्का यह नियम है कि जो
जीव अन्तकालमें मेरेको याद करता हुआ शरीर छोड़ता है, वह
निःसंदेह मेरेको ही प्राप्त हो जाता है ८ । ५) । (२) लौटकर आनेवाले‒(क) जो स्वर्गादिका सुख भोगनेके उद्देश्यसे सकाम कर्म करते हैं,
वे अपने पुण्योंके फलस्वरूप कृष्ण-मार्गसे स्वर्गादि लोकोंमें
जाते हैं और वहाँ अपने-अपने पुण्योंके अनुसार सुख भोगते हैं । पुण्य समाप्त होनेपर
वे फिर लौटकर मृत्युलोकमें आते हैं (८ । २५; ९ । २१) ।
(ख) जो परमात्मप्राप्तिके साधनमें लगे हुए हैं,
पर जिनकी सांसारिक वासना अभी सर्वथा नहीं मिटी है,
वे अन्तसमयमें किसी वासनाके कारण अपने साधनसे विचलित हो जाते
हैं तो वे स्वर्गादि ऊँचे लोकोंमें जाते हैं । ऐसे योगभ्रष्ट मनुष्य बहुत लम्बे समयतक
स्वर्गादि लोकोंमें रहते हैं । जब वहाँके भोगोंसे उनकी अरुचि हो जाती है,
तब वे लौटकर मृत्युलोकमें आते हैं और शुद्ध श्रीमानोंके घरमें
जन्म लेते हैं (६ । ४१) । |