।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
    आश्विन कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीतामें योग और भोग



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प्रभुणा सह सम्बन्धो जीवानां योग उच्यते ।

प्रकृत्या कृतसम्बन्धः प्राणिनां भोग उच्यते ॥

जीवका परमात्माके साथ जो स्वतःसिद्ध सम्बन्ध है, वहयोग’ है और वस्तु, व्यक्ति, क्रिया, पदार्थ, घटना, परिस्थिति आदि प्राकृत वस्तुओंके साथ जो माना हुआ सम्बन्ध है, वहभोग’ है । संसारके रागका त्याग होनेसे योग’ होता है और संसारमें राग होनेसेभोग’ होता है । योग नित्य और भोग अनित्य है ।

भोजन केवल निर्वाहबुद्धिसे किया जाय; भोजनके पदार्थोंमें राग न हो, खिंचाव न हो, तो ऐसे भोजनसे भी योग’ हो जाता है । परन्तु शरीर पुष्ट हो जाय, बल अधिक हो जाय‒इस दृष्टिसे तथा स्वादकी दृष्टिसे भोजन करनेसे, भोजनका रस लेनेसेभोग’ होता है । तात्पर्य है कि राग-रहित होकर, निर्लिप्‍ततापूर्वक भोजन करनेसे पुराना राग मिट जाता है और स्वादबुद्धि, सुखबुद्धि न होनेसे नया राग पैदा नहीं होता, जिससेयोग’ हो जाता है । रागपूर्वक भोजन करनेसे पुराना राग पुष्ट होता रहता है और स्वादबुद्धि, सुखबुद्धि होनेसे नया राग पैदा होता रहता है, जिससेभोग’ होता है ।

सांसारिक वस्तु, पदार्थ आदिके रागके त्यागसे जो सुख होता है, उससे योग होता है (१२ । १२) और भोगमें जो तात्कालिक सुख होता है, उससे बन्धन होता है ( १८ । ३८) ।

एक कहावत है‒एक गुणा दान, सहस्रगुणा पुण्य’ । फलकी इच्छासे एक रुपया दान किया जाय तो हजारगुणा पुण्य होता है अर्थात् हजार रुपयोंके साथ सम्बन्ध जुड़ता है । अतः ऐसा दान सम्बन्धजन्य भोग पैदा करता है । तात्पर्य है कि सकामभावपूर्वक दिये हुए दानसे वर्तमानमें वस्तु आदिका तात्कालिक सम्बन्ध-विच्छेद दीखनेपर भी परिणाममें वस्तु आदिका सम्बन्ध बना रहता है (२ । ४२४४) । दान देना कर्तव्य है‒इस भावसे, प्रत्युपकारकी भावनासे रहित होकर अर्थात् निष्कामभावपूर्वक दान दिया जाय तो वस्तु आदिसे सम्बन्ध-विच्छेद होता है (१७ । २०) क्योंकि यह त्याग है । त्यागका अनन्तगुणा पुण्य होता है । त्यागसे महान् पवित्रता आती है । त्यागसे तत्काल योग होता है (६ । २३) । योगमें संसारका वियोग है (६ । २३) और भोगमें संसारका योग है (५ । २२) ।

दूसरोंको निष्कामभावसे सुख पहुँचानेके लिये, उनका हित करनेके लिये ही उनके साथ जो सम्बन्ध जोड़ा जाता है, उससेयोग’ होता है; क्योंकि उससे अपने राग, सुख, आराम आदिका त्याग होता है । परन्तु किसी वस्तु, व्यक्तिसे सुख लेनेके लिये उसके साथ जो सम्बन्ध जोड़ा जाता है, उससे भोग’ होता है । वस्तु, व्यक्तिसे रागपूर्वक सम्बन्ध जोड़नेसे परमात्माके नित्य-सम्बन्धका अनुभव नहीं होता ।