Listen प्रभुणा
सह सम्बन्धो जीवानां योग उच्यते । प्रकृत्या कृतसम्बन्धः प्राणिनां भोग उच्यते ॥ जीवका परमात्माके साथ जो स्वतःसिद्ध सम्बन्ध है, वह
‘योग’
है और वस्तु, व्यक्ति, क्रिया, पदार्थ, घटना, परिस्थिति आदि प्राकृत वस्तुओंके साथ जो माना हुआ सम्बन्ध है,
वह ‘भोग’ है । संसारके रागका त्याग होनेसे ‘योग’ होता है और संसारमें राग होनेसे
‘भोग’
होता है । योग नित्य और भोग अनित्य है । भोजन केवल निर्वाहबुद्धिसे किया जाय;
भोजनके पदार्थोंमें राग न हो, खिंचाव न हो, तो ऐसे भोजनसे भी ‘योग’ हो जाता है । परन्तु शरीर पुष्ट हो जाय,
बल अधिक हो जाय‒इस दृष्टिसे तथा स्वादकी दृष्टिसे भोजन करनेसे,
भोजनका रस लेनेसे ‘भोग’ होता है । तात्पर्य है कि राग-रहित होकर,
निर्लिप्ततापूर्वक भोजन करनेसे पुराना राग मिट जाता है और स्वादबुद्धि,
सुखबुद्धि न होनेसे नया राग पैदा नहीं होता,
जिससे ‘योग’ हो जाता है । रागपूर्वक भोजन करनेसे पुराना राग पुष्ट होता रहता
है और स्वादबुद्धि, सुखबुद्धि होनेसे नया राग पैदा होता रहता है,
जिससे ‘भोग’ होता है । सांसारिक वस्तु, पदार्थ आदिके रागके त्यागसे जो सुख होता है,
उससे योग होता है (१२ । १२) और भोगमें जो तात्कालिक सुख होता
है,
उससे बन्धन होता है ( १८ । ३८) । एक कहावत है‒‘एक गुणा दान, सहस्रगुणा पुण्य’
। फलकी इच्छासे एक रुपया दान किया जाय तो हजारगुणा पुण्य होता
है अर्थात् हजार रुपयोंके साथ सम्बन्ध जुड़ता है । अतः ऐसा दान सम्बन्धजन्य भोग पैदा
करता है । तात्पर्य है कि सकामभावपूर्वक दिये हुए दानसे वर्तमानमें वस्तु आदिका तात्कालिक
सम्बन्ध-विच्छेद दीखनेपर भी परिणाममें वस्तु आदिका सम्बन्ध बना रहता है (२ । ४२‒४४) । दान देना कर्तव्य है‒इस भावसे,
प्रत्युपकारकी भावनासे रहित होकर अर्थात् निष्कामभावपूर्वक दान
दिया जाय तो वस्तु आदिसे सम्बन्ध-विच्छेद होता है (१७ । २०) क्योंकि यह त्याग है ।
त्यागका अनन्तगुणा पुण्य होता है । त्यागसे महान् पवित्रता आती है । त्यागसे तत्काल
योग होता है (६ । २३) । योगमें संसारका वियोग है (६ । २३) और भोगमें संसारका योग है
(५ । २२) ।
दूसरोंको निष्कामभावसे सुख पहुँचानेके लिये,
उनका हित करनेके लिये ही उनके साथ जो सम्बन्ध जोड़ा जाता है,
उससे ‘योग’ होता है; क्योंकि उससे अपने राग, सुख, आराम आदिका त्याग होता है । परन्तु किसी वस्तु, व्यक्तिसे सुख
लेनेके लिये उसके साथ जो सम्बन्ध जोड़ा जाता है, उससे ‘भोग’ होता है । वस्तु, व्यक्तिसे रागपूर्वक सम्बन्ध जोड़नेसे परमात्माके नित्य-सम्बन्धका
अनुभव नहीं होता । |