Listen वस्तु,
व्यक्तिसे सम्बन्ध-विच्छेद होनेपर एक सुख होता है । अगर साधक उस सुखका
भोग न करे तो ‘योग’ हो जायगा । अगर वह उस सुखका भोग करेगा,
उस सुखमें राजी हो जायगा तो योग नहीं होगा, प्रस्तुत ‘भोग’ हो जायगा । अगर
साधक भोगबुद्धिका सर्वथा त्याग कर दे तो सभी साधनोंसे ‘योग’ (परमात्माके नित्य-सम्बन्धका अनुभव) हो जाता है
। जैसे‒कर्मयोगमें केवल सृष्टिचक्रकी मर्यादाको सुरक्षित रखनेके लिये, केवल कर्तव्य-परम्पराकी
रक्षाके लिये ही निष्कामभावपूर्वक कर्तव्य-कर्म करनेसे कर्मोंका प्रवाह केवल संसारकी
तरफ हो जाता है और स्वयंका कर्मोंसे सम्बन्ध-विच्छेद होकर, भोगका त्याग होकर परमात्माके
साथ योग हो जाता है (४ । २३) । ज्ञानयोगमें
सत्-असत्के विवेक-विचारसे वस्तु, व्यक्ति, क्रिया आदि परिवर्तनशीलसे सम्बन्ध-विच्छेद
होता है, जिससे परमात्माके साथ योग हो जाता है अर्थात् परमात्माके साथ अपनी स्वतःसिद्ध
अभिन्नताका अनुभव हो जाता है (१३ । २३,३४) । भक्तियोगमें
सम्पूर्ण क्रिया, पदार्थ आदिको भगवान्का
ही समझकर भगवान्को अर्पित किया जाता है, जिससे उन क्रिया, पदार्थ आदिसे सम्बन्ध-विच्छेद
होकर भगवान्के साथ योग हो जाता है अर्थात् भगवान्में आत्मीयता हो जाती है (९ । २७-२८)
। ध्यानयोगमें
निरन्तर परमात्मामें मन लगाते-लगाते जब मन संसारसे सर्वथा उपराम हो जाता है,
केवल ध्येय वस्तु रह जाती है, तब परमात्माके साथ
योग हो जाता है, अपने स्वरूपका अनुभव हो जाता है (६ । २०,२८)
। अष्टाङ्गयोगमें
क्रमशः यम, नियम आदि आठों अङ्गोंका
निष्कामभावपूर्वक पालन किया जाय तो उससे संसारके सम्बन्धका त्याग हो जाता है और परमात्माके
साथ योग हो जाता है (५ । २७-२८) । परन्तु उसमें साधकको विशेष सावधानी रखनी चाहिये कि
कहीं वह सिद्धियोंमें न फँस जाय । अगर वह सिद्धियोंमें फँस जायगा तो भोग होगा,
योग नहीं होगा । तात्पर्य
यह है कि किसी भी मार्गसे चलनेवाले साधकको व्यवहार-अवस्थामें अथवा साधन-अवस्थामें हरदम
सावधान रहना चाहिये । उसको किसी भी अवस्थामें वस्तु, व्यक्ति, क्रिया, पदार्थ,
योग्यता, स्थिरता आदिका सुख नहीं लेना चाहिये;
क्योंकि सुख लेनेसे भोग हो जायगा, योग नहीं होगा
(१४ । ६) । सात्त्विक
सुख सङ्गसे,
राजस सुख कर्मोंकी आसक्तिसे और तामस सुख, निद्रा, आलस्य एवं प्रमादसे बाँधता है (१४ । ६-८) । अतः साधक सावधानीपूर्वक सात्त्विक,
राजस और तामस सुखसे बँधे नहीं, उसका सङ्ग
न करे,
तो फिर उसका परमात्माके साथ योग हो जायगा ।
नारायण
! नारायण ! नारायण ! |