।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
    कार्तिक कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीतामें गुणोंका वर्णन



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फलेच्छारहित मनुष्यके द्वारा विधिपूर्वक सात्त्विक यज्ञ, फलेच्छावाले मनुष्यके द्वारा विधिपूर्वक राजस यज्ञ और अविवेकी मनुष्यके द्वारा विधि, मन्त्र, अन्‍न, दक्षिणा एवं श्रद्धासे रहित तामस यज्ञ होता है (१७ । १११३) । फलेच्छारहित मनुष्य सात्त्विक तप करते हैं, आदर-सत्कार चाहनेवाले मनुष्य दम्भपूर्वक राजस तप करते हैं और मूढ़ मनुष्य खुद कष्ट उठाकर भी दूसरोंको दुःख देनेके लिये तामस तप करते हैं (१७ । १७१९) । देश, काल और पात्रके प्राप्त होनेपर प्रत्युपकारकी आशा न रखकर दिया हुआ दान सात्त्विक है, प्रत्युपकार और फलका उद्देश्य रखकर दिया हुआ दान राजस है तथा देश, काल और पात्रका विचार न करके अवज्ञापूर्वक दिया हुआ दान तामस है (१७ । २०२२) ।

मोहपूर्वक नियत कर्मोंको छोड़ देना तामस त्याग है, शारीरिक क्लेशके भयसे नियत कर्मोंको छोड़ देना राजस त्याग है, और आसक्‍ति एवं फलेच्छाको छोड़कर नियत कर्मोंको करना सात्त्विक त्याग है (१८ । ७९) ।

सम्पूर्ण विभक्त (अलग-अलग) प्राणियोंमें विभागरहित एक अविनाशी भावको देखना सात्त्विक ज्ञान है, सम्पूर्ण विभक्त प्राणियोंमें परमात्माको अलग-अलग देखना राजस ज्ञान है, और पाञ्चभौतिक शरीरको ही अपना स्वरूप मानना तामस ज्ञान है (१८ । २०२२) । फलेच्छारहित मनुष्यके द्वारा कर्तृत्वाभिमान और राग-द्वेषसे रहित होकर किया हुआ कर्म सात्त्विक है, फलेच्छावाले मनुष्यके द्वारा अहंकार अथवा परिश्रमपूर्वक किया हुआ कर्म राजस है और परिणाम, हानि, हिंसा तथा अपनी सामर्थ्यको न देखकर मोहपूर्वक किया हुआ कर्म तामस है (१८ । २३२५) । रागरहित, अहंकृतभावरहित, धृति और उत्साहसे युक्त तथा सिद्धि-असिद्धिमें निर्विकार रहनेवाला कर्ता सात्त्विक है; रागी, फलेच्छावाला, लोभी, हिंसात्मक, अपवित्र और हर्ष-शोकसे युक्त कर्ता राजस है और असावधान, अशिाक्षित, ऐंठ-अकड़वाला, जिद्दी, कृतघ्‍नी, आलसी, विषादी और दीर्घसूत्री कर्ता तामस है (१८ । २६२८) ।

प्रवृत्ति-निवृत्ति, कर्तव्य-अकर्तव्य, भय-अभय और बन्धन-मोक्षको ठीक जाननेवाली बुद्धि सात्त्विकी होती है; धर्म-अधर्म, कर्तव्य-अकर्तव्यको ठीक-ठीक न जाननेवाली बुद्धि राजसी होती है और अधर्मको धर्म तथा सम्पूर्ण बातोंको उल्टा माननेवाली बुद्धि तामसी होती है (१८ । ३०३२) । समतापूर्वक मन, प्राण और इन्द्रियोंकी क्रियाओंको धारण करनेवाली धृति सात्त्विक है, फलेच्छा और आसक्‍तिपूर्वक धर्म, काम (भोग) और अर्थको धारण करनेवाली धृति राजसी है और निद्रा, भय, शोक आदिको धारण करनेवाली धृति तामसी है (१८ । ३३३५) ।

परमात्मविषयक बुद्धिसे पैदा होनेवाला जो सुख सांसारिक आसक्‍तिके कारण पहले जहरकी तरह और परिणाममें अमृतकी तरह है, वह सुख सात्त्विक है । आरम्भमें अमृतकी तरह और परिणाममें जहरकी तरह विषयों और इन्द्रियोंके संयोगसे उत्पन्‍न हुआ सुख राजस है । आरम्भमें और परिणाममें मोहित करनेवाला, केवल निद्रा, आलस्य और प्रमादसे उत्पन्‍न सुख तामस है (१८ । ३७३९) ।