।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   मार्गशीर्ष कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीतामें संवाद



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संजयस्याम्बिकेयस्य  श्रीकृष्णस्यार्जुनस्य च ।

द्विधैव मुख्यसंवादो  गीतया मन्यते स्वयम् ॥

गीतामें दो संवाद है‒धृतराष्ट्र और संजयका संवाद तथा श्रीकृष्ण और अर्जुनका संवाद ।

गीताके पहले अध्यायके पहले श्‍लोकमें ही धृतराष्ट्र बोले हैं, उसके बाद अठारह अध्यायतक धृतराष्ट्र बोले ही नहीं । संजय बीच-बीचमें कई बार बोले हैं ।

पहले अध्यायने हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह’ (१ । २१), उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान् कुरूनिति’ (१ । २५) आदि वचनोंके रूपमें श्रीकृष्ण और अर्जुनका संवाद तो आया है, पर यह आया है संजयके वचनोंके अन्तर्गत ही । श्रीकृष्ण और अर्जुनका संवाद दूसरे अध्यायके दूसरे श्‍लोकसे आरम्भ होता है ।

उपयुक्त दोनों संवादोंके अतिरिक्त दुर्योधन और प्रजापति ब्रह्माजीके वचन भी गीतामें आते हैं, जैसे‒पहले अध्यायके तीसरे श्‍लोकसे ग्यारहवें श्‍लोकतक (कुल नौ श्‍लोकोंमें) दुर्योधनके वचन हैं; और तीसरे अध्यायके दसवें श्‍लोकके उत्तरार्धसे बारहवें श्‍लोकके पूर्वार्धतक ब्रह्माजीके वचन हैं । इनमेसे दुर्योधनके वचन तो संजयके वचनोंके अन्तर्गत हैं और ब्रह्माजीके वचन भगवान्‌के वचनोंके अन्तर्गत हैं । इसीलिये यहाँ दुर्योधन उवाच’ और प्रजापतिरुवाच’ नहीं दिया गया ।

दूसरी बात सम्पूर्ण महाभारत वैशम्पायन और जनमेजयका संवाद है । उसके अन्तर्गत गीताने धृतराष्ट्र और संजयका संवाद है[*] जिसमें संजय श्रीकृष्ण और अर्जुनका संवाद सुना रहे है न कि दुर्योधन आदिका । प्रत्येक अध्यायके अन्तमें जो पुष्पिका दी गयी है, उसमें भी श्रीकृष्णार्जुनसंवादे’ पद दिया गया है । अतः गीतामें दो ही संवाद हैं ।

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !



[*] महाभारतके वक्ता वैशम्पायन ऋपि हैं और श्रोता राजा जनमेजय हैं । महाभारतमें कुल अठारह पर्व हैं । उनमेंसे भीष्मपर्वके आरम्भमें राजा जनमेजय वैशम्पायनजीसे प्रश्‍न करते हैं कि कौरवों और पाण्डवोंने युद्ध कैसे किया ? इसके उत्तरमें वैशम्पायनजीने दोनों सेनाओंके हर्षोल्लास आदिकी बातें बतायीं । फिर वेदव्यासजी धृतराष्ट्रके पास आये और उन्होंने धृतराष्ट्रको अवश्यम्भावी युद्धके विषयमें बहुत-सी बातें कहीं तथा संजयको दिव्यदृष्टि दी; जिससे वे धृतराष्ट्रको युद्ध आदिकी सभी बातें सुनाते रहें । वेदव्यासजीके चले जानेपर धृतराष्ट्रने संजयसे कहा कि जिस भूमिके लिये मेरे और पाण्डुके पुत्र लडनेके लिये तैयार हो रहे हैं, उसका मुझे विस्तारसे वर्णन सुनाइये । इसपर संजयने भारतवर्षकी भूमिका; द्वीपों, नदियों, पहाड़ों आदिका वर्णन किया । फिर श्रीमद्भगवद्‌गीतापर्वके आरम्भमें (जो कि भीष्मपर्वका तेरहवाँ अध्याय है) वैशम्पायनजीने राजा जनमेजयसे कहा कि एक दिनकी बात है, संजयने युद्धभूमिसे लौटकर धृतराष्ट्रको भीष्म पितामहको शरशय्यापर गिरा दिये जानेका समाचार दिया । इसको लेकर धृतराष्ट्र और संजयके बीच दोनों सेनाओंकी बहुत-सी बात होती रहीं । अन्तमें भीष्मपर्वके पचीसवें अध्यायके आरम्भमें (जो कि गीताका पहला अध्याय है) धृतराष्ट्रने युद्धका क्रमशः विस्तारपूर्वक वर्णन सुनानेके लिये संजयसे प्रश्‍न किया ।