।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी, वि.सं.-२०७९, बुधवार

गीतामें अर्जुनद्वारा 

स्तुति प्रार्थना और प्रश्‍न



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चौथे अध्यायके चौथे श्‍लोकमें आपने सूर्यको उपदेश कैसे दिया ?’‒इस तरह भगवान्‌के अवतारके विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्‍न है ।

पाँचवें अध्यायके पहले श्‍लोकमें संन्यास और योगके विषयमें अर्जुनका प्रार्थनापूर्वक प्रश्‍न है ।

छठे अध्यायके तैंतीसवें-चौंतीसवें श्‍लोकोंमें अर्जुनका मनके निग्रहके विषयमें (अपनी मान्यता प्रकट करते हुए) प्रश्‍न है । फिर सैंतीसवें-अड़तीसवें श्‍लोकोंमें योगभ्रष्टकी गतिके विषयमें अर्जुनका संदेहपूर्वक प्रश्‍न है । उन्तालीसवें श्‍लोकमें संदेहको दूर करनेके लिये अर्जुनने (भगवान्‌की महत्ताको समझते हुए) भगवान्‌से प्रार्थना की है ।

आठवें अध्यायके पहले-दूसरे श्‍लोकोंमें ब्रह्म, अध्यात्म आदिके विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्‍न है ।

दसवें अध्यायके बारहवेंसे पंद्रहवें श्‍लोकतक अर्जुनने भगवान्‌के प्रभावको लेकर उनकी स्तुति की है । फिर सोलहवेंसे अठारहवें श्‍लोकतक अर्जुनका प्रार्थनापूर्वक प्रश्‍न है (सोलहवें और अठारहवें श्‍लोकमें प्रार्थना है तथा सत्रहवें श्‍लोकमें प्रश्‍न है) ।

ग्यारहवें अध्यायके पहलेसे चौथे श्‍लोकतक विश्‍वरूप दिखानेके लिये अर्जुनकी भगवान्‌से नम्रतापूर्वक प्रार्थना है । पंद्रहवेंसे तीसवें श्‍लोकतक भगवान्‌के अलौकिक प्रभावको लेकर स्तुति है और इकतीसवें श्‍लोकमें प्रार्थनापूर्वक प्रश्‍न है । छत्तीसवेंसे चालीसवें श्‍लोकतक नमस्कारपूर्वक स्तुति है और इकतालीसवेंसे चौवालीसवें श्‍लोकतक पूर्वकृत तिरस्कारको क्षमा करनेके लिये प्रार्थना है । पैतालीसमें-छियालीसवें श्‍लोकोमें भगवान्‌ चतुर्भुजरूप दिखानेके लिये प्रार्थना है ।

बारहवें अध्यायके पहले श्‍लोकमें सगुण और निर्गुण उपासकोंमें कौन श्रेष्ठ है’इस विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्‍न है ।

चौदहवें अध्यायके इक्‍कीसवें श्‍लोकमें गुणातीतके विषयमें अर्जुनका प्रश्‍न है ।

सत्रहवें अध्यायके पहले श्‍लोकमें निष्ठाको लेकर अर्जुनका प्रश्‍न है ।

अठारहवें अध्यायके पहले श्‍लोकमें संन्यास और योगके विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्‍न है ।[*]

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !



[*]अर्जुनके प्रश्‍नके सिवाय गीतामें धृतराष्ट्र और भगवान्‌के भी प्रश्‍न हैं । पहले अध्यायके पहले श्‍लोकमें धृतराष्ट्रने संजयसे प्रश्‍न किया कि हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें युद्धकी इच्छासे इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया ?’ और अठारहवें अध्यायके बहत्तरवें श्‍लोकमें भगवान्‌ने (पूरी गीता सुनानेके बाद) अर्जनसे प्रश्‍न किया कि हे धनंजय ! क्या तुमने एकाग्रचितसे गीता सुनी ? और क्या तुम्हारा अज्ञानसे उत्पन्‍न हुआ मोह नष्ट हुआ ?’