Listen चौथे अध्यायके चौथे श्लोकमें
‘आपने सूर्यको उपदेश कैसे दिया ?’‒इस तरह भगवान्के अवतारके विषयमें अर्जुनका
जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है । पाँचवें अध्यायके पहले श्लोकमें
संन्यास और योगके विषयमें अर्जुनका प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है । छठे अध्यायके तैंतीसवें-चौंतीसवें
श्लोकोंमें अर्जुनका मनके निग्रहके विषयमें (अपनी मान्यता प्रकट करते हुए) प्रश्न
है । फिर सैंतीसवें-अड़तीसवें श्लोकोंमें योगभ्रष्टकी गतिके विषयमें अर्जुनका संदेहपूर्वक
प्रश्न है । उन्तालीसवें श्लोकमें संदेहको दूर करनेके लिये अर्जुनने (भगवान्की महत्ताको
समझते हुए) भगवान्से प्रार्थना की है । आठवें अध्यायके पहले-दूसरे
श्लोकोंमें ब्रह्म,
अध्यात्म आदिके विषयमें अर्जुनका
जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है । दसवें अध्यायके बारहवेंसे
पंद्रहवें श्लोकतक अर्जुनने भगवान्के प्रभावको लेकर उनकी स्तुति की है । फिर सोलहवेंसे
अठारहवें श्लोकतक अर्जुनका प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है (सोलहवें और अठारहवें श्लोकमें
प्रार्थना है तथा सत्रहवें श्लोकमें प्रश्न है) । ग्यारहवें अध्यायके पहलेसे
चौथे श्लोकतक विश्वरूप दिखानेके लिये अर्जुनकी भगवान्से नम्रतापूर्वक प्रार्थना
है । पंद्रहवेंसे तीसवें श्लोकतक भगवान्के अलौकिक प्रभावको लेकर स्तुति है और इकतीसवें
श्लोकमें प्रार्थनापूर्वक प्रश्न है । छत्तीसवेंसे चालीसवें श्लोकतक नमस्कारपूर्वक
स्तुति है और इकतालीसवेंसे चौवालीसवें श्लोकतक पूर्वकृत तिरस्कारको क्षमा करनेके लिये
प्रार्थना है । पैतालीसमें-छियालीसवें श्लोकोमें भगवान् चतुर्भुजरूप दिखानेके लिये
प्रार्थना है । बारहवें अध्यायके पहले श्लोकमें
‘सगुण और निर्गुण उपासकोंमें कौन श्रेष्ठ
है’‒इस विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्न
है । चौदहवें अध्यायके इक्कीसवें
श्लोकमें गुणातीतके विषयमें अर्जुनका प्रश्न है । सत्रहवें अध्यायके पहले श्लोकमें
निष्ठाको लेकर अर्जुनका प्रश्न है । अठारहवें अध्यायके पहले श्लोकमें
संन्यास और योगके विषयमें अर्जुनका जिज्ञासापूर्वक प्रश्न है ।[*] नारायण ! नारायण ! नारायण
! नारायण !
[*]अर्जुनके प्रश्नके सिवाय
गीतामें धृतराष्ट्र और भगवान्के भी प्रश्न हैं । पहले अध्यायके पहले श्लोकमें धृतराष्ट्रने
संजयसे प्रश्न किया कि ‘हे संजय ! धर्मभूमि कुरुक्षेत्रमें
युद्धकी इच्छासे इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डुके पुत्रोंने क्या किया ?’ और अठारहवें अध्यायके बहत्तरवें श्लोकमें
भगवान्ने (पूरी गीता सुनानेके बाद) अर्जनसे प्रश्न किया कि ‘हे धनंजय ! क्या तुमने एकाग्रचितसे गीता
सुनी ? और क्या तुम्हारा अज्ञानसे उत्पन्न हुआ
मोह नष्ट हुआ ?’ |