।। श्रीहरिः ।।

 


  आजकी शुभ तिथि–
    माघ कृष्ण त्रयोदशी , वि.सं.-२०७९, शुक्रवार

गीताका परिमाण

और पूर्ण शरणागति



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भगवत्स्वरूप अर्जुन

जिस प्रकार भगवत्-शरणागतिके बाद अर्जुनके भगवत्प्रेरित’ होनेसे श्‍लोकरूप अर्जुन उवाच’ भगवान्‌के ही श्‍लोक माने गये हैं, उसी प्रकार मोहनाशके बाद अर्जुनके भगवत्स्वरूपहोनेसे अठारहवें अध्यायका तिहत्तरवाँ श्‍लोक भी भगवान्‌का ही माना गया है ।

अठारहवे अध्यायके तिहत्तरवें श्‍लोकको भगवान्‌का माननेपर यह शंका हो सकती है कि भगवान्‌ स्वयं ही ‘नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादात्.......’ आदि पदोंको अपने प्रति कैसे कह सकते हैं ? ये शब्द तो साधक (अर्जुन)-के ही होने चाहिये । इसका समाधान यह है कि मोह सर्वथा नष्ट होनेसे अर्जुनकी भगवान्‌के साथ अभिन्‍नता हो गयी । अर्जुनका अपना कुछ नहीं रहा, वे सर्वथा भगवान्‌के हो गये । उनके द्वारा होनेवाली सभी क्रियाएँ भगवान्‌की ही हुईं । अतः जीव-भावसे मुक्‍त भगवत्-साधर्म्य-प्राप्‍त अर्जुनका यह श्‍लोक तात्त्विक दृष्टिसे भगवान्‌का ही कहा हुआ माना जा सकता है । कारण कि मोह सर्वथा नष्ट हो जानेपर भक्त और भगवान्‌में कोई भेद नहीं रहता‒‘तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्’ (नारदभक्तिसूत्र ४१) । स्वयं भगवान्‌ कहते हैं‒ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्’ (गीता ७ । १८) ज्ञानी (प्रेमी) भक्त तो मेरा स्वरूप ही है‒ऐसा मेरा मत है ।’ और मम साधर्म्यमागताः’ (गीता १४ । २) भक्त मेरे साधर्म्यको प्राप्‍त हुए हैं ।’ भगवत्-साधर्म्यको प्राप्‍त हुए भक्तके वचनको भगवान्‌का ही वचन मानना चाहिये ।

जब गुरुका शिष्यमें शक्‍तिपात होता है, तब शिष्यमें गुरुका अवतार हो जाता है अर्थात् शिष्य गुरुका ही स्वरूप हो जाता है । अद्वैतामृतवल्लरी’ नामक वेदान्तग्रन्थमें चार प्रकारसे शक्‍तिपात होनेकी बात आयी है‒

(१) स्पर्शसे‒जैसे‒मुर्गी अपने अंडेपर बैठी रहती है और इस प्रकार उसके स्पर्श (सम्बन्ध)-से अंडा पक जाता है ।

(२) शब्दसे‒जैसे‒कुररी आकाशमें शब्द करती हुई घूमती रहती है और इस प्रकार उसके शब्दसे अंडा पक जाता है ।

(३) दृष्टिसे‒जैसे‒मछली थोड़ी-थोड़ी देरमें अपने अंडेको देखती रहती है, जिससे अंडा पक जाता हैं ।

(४) स्मरणसे‒जैसे‒कछुई रेतीके भीतर अंडा देती है, पर खुद पानीके भीतर रहती हुई उस अंडेका निरन्तर स्मरण करती रहती है, जिससे अंडा पक जाता है ।[*]

भगवान्‌की तो स्फुरणामात्रसे ही जीवका कल्याण हो सकता है, पर गीताको देखनेसे पता चलता है कि भगवान्‌का अर्जुनमें उपर्युक्त चारों ही प्रकारसे शक्‍तिपात हुआ है । भगवान्‌ और अर्जुनका सम्बन्ध ही स्पर्शसे होनेवाला शक्‍तिपात है । दूसरे अध्यायके सातवें श्‍लोकमें अर्जुनने भगवान्‌से और अठारहवें अध्यायके तिहत्तरवें श्‍लोकमें भगवान्‌ने अर्जुनसे विशेष सम्बन्ध जोड़ा है । दूसरी बात, गीता श्रीकृष्णार्जुनसंवादहै और जहाँ संवाद होता है, वहाँ सम्बन्ध तो रहता ही है । भगवान्‌ने अर्जुनकी शंकाओंका समाधान किया‒यह शब्दसे होनेवाला शक्‍तिपात है । कृपा दृष्टिके द्वारा प्रकट होती है । भगवान्‌ अर्जुनको कृपापूर्वक देखते हैं‒यह दृष्टिसे होनेवाला शक्‍तिपात है । भगवान्‌ अर्जुनका कल्याण करना चाहते हैं‒यह मनसे होनेवाला शक्‍तिपात है ।



[*] उदयपुरमें पिचोला नामक एक प्रसिद्ध सरोवर है । एक बार एक संत वहाँ गये और वहाँके नाविकोंसे उन्होंने कछुईके याद करनेमात्रसे अंडोंका पोषण होनेकी सत्यताका पता लगाया । नाविकोंने इस बातकी पुष्टि की । वहाँ रेतीमें एक कछुईके अंडे दबे पड़े थे, जिसका पता नाविकोंको था । नाविकोंने पानीमें अपना जाल फैलाया । जब उस जालमें वह कछुई फँस गयी, तब उन संतने जाकर देखा कि उसके अंडे गल गये थे । इससे पता चलता है कि जालमें फँसनेसे जब घबराहटमें कछुईका स्मरण छूट गया, तब उसके अंडे गल गये ।