Listen अब यह प्रश्न हो सकता है कि जब अर्जुनके श्लोकोंको इस प्रकार
संजयके श्लोकोंके अन्तर्गत मानते हैं, तो फिर ग्यारहवें अध्यायमें संजयद्वारा कहे गये ‘एवमुक्त्वा’ (११ । ९), ‘एतच्छ्रुत्वा’ (११ ।
३५) और ‘इत्यर्जुनम्’ (११ । ५०)‒इन पदोंसे पहले आये भगवान्के वचनोंको
तथा अठारहवें अध्यायमें संजयद्वारा कहे गये ‘इत्यहम्’ (१८
। ७४) पदसे पहले आये भगवत्स्वरूप अर्जुनके वचनको भी संजयके ही वचनोंके अन्तर्गत
क्यों नहीं मानते ? यद्यपि इस प्रश्नका उत्तर सामान्य रीतिसे दूसरी जगह भी दिया
जा चुका है, फिर भी यहाँ कहा जा सकता है कि भगवान्के श्लोक किसी प्रकार क्यों न आयें,
वे भगवान्के ही माने जा सकते हैं । दूसरी बात,
संजय वेदव्यासप्रदत्त दिव्यदृष्टिसे सम्पन्न हैं और अर्जुनको
भी भगवान्ने दिव्यदृष्टि दी है (११ । ८) । अतः ग्यारहवें अध्यायमें संजयकी दिव्यदृष्टि
भगवत्प्रदत्त दिव्यदृष्टिसे अभिन्न हो जाती है, जिससे संजय भगवान् और अर्जुनके वचन ही बोलते हैं,
न कि अपने वचन । एक बात और है कि संजय राजा धृतराष्ट्रको श्रीकृष्णार्जुनसंवादरूप
गीताशास्त्र सुना रहे हैं, जिसमें विवेचन करते हुए उन्होंने उपर्युक्त ‘एवमुक्त्वा’, ‘एतच्छ्रुत्वा’ आदि पदोंका प्रयोग किया है । संजय
भगवत्-वाणीरूप मन्त्रके द्रष्टामात्र हैं । अतः भगवान्द्वारा कहे गये श्लोक भगवान्के
ही मानने चाहिये । एक यह प्रश्न हो सकता है कि जैसे शरणागतिसे पहले आये अर्जुनके
श्लोकोंको संजयकथित माना गया, ऐसे ही शरणागतिसे पहले आये भगवान्के श्लोकों (२ । २-३)-को
भी संजयकथित क्यों नहीं माना गया ? कारण कि भगवान्का उपदेश तो दूसरे अध्यायके ग्यारहवें श्लोकसे
आरम्भ होता है । इसका उत्तर यह है कि दूसरे अध्यायका दूसरा और तीसरा‒दोनों ही श्लोक
गीताके मूल श्लोक हैं और इनमें भगवान्ने ‘अनार्यजुष्टम्’, ‘अस्वर्ग्यम्’, ‘अकीर्तिकरम्’ आदि पदोंसे स्वधर्मत्यागकी जिन हानियोंका संक्षेपसे उल्लेख
किया है,
उन्हींका विस्तृत व्याख्यारूपसे वर्णन दूसरे अध्यायके इकतीसवेंसे
अड़तीसवें श्लोकतक किया है । अतः ये दो श्लोक (२ । २-३) संजयके न मानकर भगवान्के
ही मानने चाहिये । इसके सिवाय इन श्लोकोंमें भगवान्ने कायरता छोड़कर युद्धके लिये
खड़े होनेकी जो आज्ञा दी है, उसीको भगवत्स्वरूप अर्जुनने उपदेशके अन्तमें शिरोधार्य किया
है‒‘करिष्ये
वचनं तव’ (१८ ।
७३) । अतः स्पष्ट है कि ये श्लोक
संजयके न मानकर भगवान्के ही माने जायँ ।
गहराईसे देखनेपर यह प्रतीत होता है कि भगवद्गीताको दो भागोंमें
बाँटा जा सकता है‒(१) ‘इतिहास-भाग’, जो पहले अध्यायके आरम्भसे दूसरे अध्यायके दसवें श्लोकतक है
और (२) ‘उपदेश-भाग’, जो दूसरे अध्यायके ग्यारहवें श्लोकसे अठारहवें अध्यायके अन्ततक
है । गीताका मूल इतिहास-भाग ही है, जिसके आधारपर उपदेश-भाग टिका हुआ है । इन दोनों भागोंमें इतिहास-भाग
संजय-कथनके अन्तर्गत है और उपदेश-भाग श्रीकृष्णार्जुनसंवादके अन्तर्गत है । इतिहास-भागमें
आया अर्जुन-कथन ही संजय-कथनमें लीन होगा, न कि भगवत्कथन । कारण कि भगवान्की महिमा कहीं भी कम नहीं होती,
चाहे इतिहास हो या उपदेश । |