Listen भगवान्के छः सौ बीस श्लोक इस प्रकार गीताकी प्रचलित प्रतिमें भगवान्द्वारा कहे हुए पाँच सौ चौहत्तर श्लोकोंके साथ अट्ठाईस ‘श्रीभगवानुवाच’-रूप श्लोक, सत्रह भगवत्प्रेरित ‘अर्जुन उवाच’-रूप श्लोक और एक अठारहवें अध्यायका ‘अर्जुन उवाच’-सहित तिहत्तरवाँ श्लोक और जोड़ देनेपर भगवान्के छः सौ बीस (५७४+२८+१७+९=६२०) श्लोक हो जाते हैं । अतः महाभारतोक्त गीता-परिमाणका यह वचन प्रमाणित हो जाता है‒‘षट्शतानि सविंशानि श्लोकानां प्राह केशवः’ । अर्जुनके सत्तावन श्लोक प्रचलित गीतामें अर्जुनके चौरासी श्लोक और इक्कीस उवाच हैं;
किंतु महाभारतोक्त गीता-परिमाणमें अर्जुनके सत्तावन श्लोक
ही बताये गये हैं । जैसा कि पहले बताया जा चुका है, भगवत्-शरणागतिके बाद सत्रह ‘अर्जुन उवाच’-रूप श्लोक और एक अठारहवें अध्यायका ‘अर्जुन
उवाच’-सहित तिहत्तरवाँ श्लोक भगवान्के श्लोकोंमें सम्मिलित किया गया है तथा भगवत्-शरणागति
(२ । ७)-से पहले आये तीन ‘अर्जुन उवाच’ को परिमाणमें अलगसे न लेकर ‘संजय उवाच’ के ही अन्तर्गत लिया गया है । गीताकी यह शैली भी है कि एकके कहे हुए वचन दूसरेके वचनोंके अन्तर्गत
आ जाते हैं; जैसे‒पहले अध्यायमें तीसरेसे ग्यारहवें श्लोकतक कहे गये दुर्योधनके वचन संजयके
वचनोंके अन्तर्गत आये हैं और तीसरे अध्यायमें दसवेंसे बारहवें श्लोकके पूर्वार्धतक
कहे गये प्रजापति ब्रह्माजीके वचन भगवान्के वचनोंके अन्तर्गत आये हैं । ऐसे ही अर्जुनके
वचन ‘न योत्स्ये’ (२ ।
९) संजयके वचनोंके अन्तर्गत आये
हैं तथा साधकके वचन ‘तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये’ (१५ ।
४) भगवान्के वचनोंके अन्तर्गत
आये हैं । इसी तरह गीता-परिमाणमें पहले अध्यायके इक्कीसवें श्लोकके उत्तरार्धसे तेईसवें
श्लोकतक तथा अट्ठाईसवें श्लोकके उत्तरार्धसे छियालीसवें श्लोकतक और दूसरे अध्यायके
चौथे श्लोकसे आठवें श्लोकतक आये अर्जुनके वचनों (कुल छ्ब्बीस श्लोकों)-को संजयके
ही वचनोंके अन्तर्गत लिया गया है । इस विषयमें पहले ही बताया जा चुका है कि धृतराष्ट्रको
श्रीकृष्णार्जुनसंवादरूप गीता-शास्त्र सुनाते हुए संजय ‘इदमाह
महीपते’ (१ । २१) आदि पदोंसे कह रहे हैं कि ‘राजन् ! युद्धस्थलमें अर्जुनने ऐसा-ऐसा कहा ।’
अतः ये छ्ब्बीस श्लोक संजयके श्लोकोंकी गणनामें ही सम्मिलित
करने चाहिये, न कि अर्जुनके श्लोकोंकी गणनामें । इस प्रकार गीताकी प्रचलित प्रतिमें आये अर्जुनके चौरासी श्लोकोंमेंसे
उपर्युक्त छ्ब्बीस श्लोक और अठारहवें अध्यायका तिहत्तरवाँ
श्लोक घटा देनेपर अर्जुनके सत्तावन (८४-२७=५७) श्लोक रह जाते
हैं । अतः महाभारतोक्त गीता-परिमाणका यह वचन प्रमाणित हो जाता है‒‘अर्जुनः
सप्त पञ्चाशत्’ । संजयके सड़सठ श्लोक गीताकी प्रचलित प्रतिके अनुसार संजयके इकतालीस ही श्लोक हैं
और नौ ‘संजय
उवाच’ हैं;
किंतु गीता-परिमाणमें संजयके सड़सठ श्लोक बताये गये हैं । गीता-परिमाणमें
‘संजय
उवाच’ को अलग श्लोक न मानकर संजयके
श्लोकोंमें ही लिया गया है । कारण कि गीतामें केवल श्रीकृष्णार्जुनसंवाद होनेसे ‘श्रीभगवानुवाच’
और भगवत्प्रेरित ‘अर्जुन उवाच’
को ही अलग श्लोकरूपसे माना गया है । दूसरी बात, धृतराष्ट्र और संजयका संवाद हस्तिनापुरमें हुआ था,
न कि भगवान्के सामने । जिनका संवाद भगवान्के सामने नहीं हुआ,
उनके ‘उवाच’ को श्लोकरूप नहीं माना गया और ‘अर्जुन
उवाच’ को इसलिये श्लोकरूप माना गया कि वे भगवान्के सामने बोल रहे थे । इसीलिये पुष्पिकामें
गीताको ‘श्रीकृष्णार्जुनसंवाद’ कहा गया है, न कि ‘धृतराष्ट्र-संजय-संवाद’
।
यह तो पहले ही बताया जा चुका है कि पहले और दूसरे अध्यायमें
आये अर्जुनके छब्बीस श्लोकोंको संजयके ही श्लोक मानने चाहिये । इन छब्बीस श्लोकोंको
संजयके इकतालीस श्लोकोंके साथ जोड़नेपर संजयके सड़सठ (२६+४१=६७) श्लोक हो जाते हैं
। अतः महाभारतोक्त गीता-परिमाणका यह वचन प्रमाणित हो जाता है‒‘सप्तषष्टिं तु संजयः ।’ |