।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७९, शनिवार

भगवान्‌ आज ही मिल सकते हैं



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आप केवल भगवान्‌की ही इच्छा करो, और कोई इच्छा मत करो । न जीनेकी इच्छा करो, न मरनेकी इच्छा करो । न मानकी इच्छा करो, न बड़ाईकी इच्छा करो । न भोगोंकी इच्छा करो, न रुपयोंकी इच्छा करो । केवल एक भगवान्‌की इच्छा करो तो वे मिल जायँगे । कम-से-कम मेरी बातकी परीक्षा तो करके देखो ! भगवान्‌ आपको मिलते नहीं; क्योंकि आप उनको चाहते नहीं । आपके भीतर रुपयोंकी चाहना हो तो भगवान्‌ बीचमें कूदकर क्यों पड़ेंगे ? संसारमें सबसे रद्दी वस्तु रुपया है । रुपयोंसे रद्दी चीज दूसरी कोई है ही नहीं । ऐसी रद्दी चीजमें आपका मन अटका हुआ हो तो भगवान्‌ कैसे मिलेंगे ? रुपये देकर आप भोजन, वस्‍त्र, सवारी आदि खरीद सकते हो, पर रुपया खुद न तो खानेके काम आता है, न पहननेके काम आता है, न सवारीके काम आता है । तात्पर्य है कि रुपये काम नहीं आते, प्रत्युत उनका खर्च काम आता है ।

परमात्मा इच्छामात्रसे मिलते हैं । उनको रोकनेकी ताकत किसीमें भी नहीं है । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ भी काम नहीं करता, उलटे काम करनेमें आपको बाधा लगाता है, पर जब वह रोने लगता है, तब सब घरवाले उसके पक्षमें हो जाते हैं । सास-ससुर, देवर-जेठ सभी कहते हैं कि बहू ! बालक रो रहा है, उसको उठा ले । माँको सब काम छोड़कर बालकको उठाना पड़ता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही हैबालानां रोदनं बलम् रोनेमें बड़ी ताकत है । आप सच्‍चे हृदयसे व्याकुल होकर भगवान्‌के लिये रोने लग जाओ तो जितने भगवान्‌के भक्त हुए हैं, सन्त-महात्मा हुए हैं, वे सब-के-सब आपके पक्षमें हो जायँगे और भगवान्‌को उलाहना देंगे कि आप मिलते क्यों नहीं ? वे ही भगवान्‌के सास-ससुर आदि हैं !

वास्तवमें भगवान्‌ मिले हुए ही हैं । आपकी सांसारिक इच्छा ही उनको रोक रही है । आप रुपयोंकी इच्छा करते हो, भोगोंकी इच्छा करते हो तो भगवान्‌ उनको जबर्दस्ती नहीं छुड़ाते । अगर आप सांसारिक इच्छाएँ छोड़कर केवल भगवान्‌को ही चाहो तो आपको कौन रोक सकता है ? आपको बाधा देनेकी किसीकी ताकत नहीं है । अगर आप भगवान्‌के लिये व्याकुल हो जाओ तो भगवान्‌ भी व्याकुल हो जायँगे । आप संसारके लिये व्याकुल हो जाओ तो संसार व्याकुल नहीं होगा । आप संसारके लिये रोओ तो संसार राजी नहीं होगा । पर भगवान्‌के लिये रोओ तो वे भी रो पड़ेंगे ।

बालक सच्‍चा रोता है या झूठा, यह माँ ही समझती है । बालकके आँसू तो आये नहीं, केवल ऊँ-ऊँ करता है तो माँ समझ लेती है कि यह ठगाई करता है ! अगर बालक सचाईसे रो पड़े, उसके साँस ऊँचे चढ़ जायँ तो माँ सब काम भूल जायगी और चट उसको उठा लेगी । अगर माँ उस बालकके पास न जाय तो उस माँको मर जाना चाहिये ! उसके जीनेका क्या लाभ ! ऐसे ही सच्‍चे हृदयसे चाहनेवालेको भगवान्‌ न मिलें तो भगवान्‌को मर जाना चाहिये !

एक साधु थे । उनके पास एक आदमी आया और उसने पूछा कि भगवान्‌ जल्दी कैसे मिलें ? साधुने कहा कि भगवान्‌ उत्कट चाहना होनेसे मिलेंगे । उसने पूछा कि उत्कट चाहना कैसी होती है ? साधुने कहा कि भगवान्‌के बिना रहा न जाय । वह आदमी ठीक समझा नहीं और बार-बार पूछता रहा कि उत्कट चाहना कैसी होती है ? एक दिन साधुने उस आदमीसे कहा कि आज तुम मेरे साथ नदीमें स्‍नान करने चलो । दोनों नदीमें गये और स्‍नान करने लगे । उस आदमीने जैसे ही नदीमें डुबकी लगायी, साधुने उसका गला पकड़कर नीचे दबा दिया । वह आदमी थोड़ी देर नदीके भीतर छटपटाया, फिर साधुने उसको छोड़ दिया । पानीसे ऊपर आनेपर वह बोला कि तुम साधु होकर ऐसा काम करते हो ! मैं तो आज मर जाता ! साधुने पूछा कि बता, तेरेको क्या याद आया ? माँ याद आयी, बाप याद आया, धन याद आया या स्‍त्री-पुत्र याद आये ? वह बोला कि महाराज, मेरे तो प्राण निकले जा रहे थे, याद किसकी आती ? साधु बोले कि तुम पूछते थे कि उत्कट अभिलाषा कैसी होती है, उसीका नमूना मैंने तेरेको बताया है । जब एक भगवान्‌के सिवाय कोई भी याद नहीं आयेगा और उनकी प्राप्‍तिके बिना रह नहीं सकोगे, तब भगवान्‌ मिल जायँगे । भगवान्‌की ताकत नहीं है कि मिले बिना रह जायँ ।

भगवान्‌ कर्मोंसे नहीं मिलते । कर्मोंसे मिलनेवाली चीज नाशवान् होती है । कर्मोंसे धन, मान, आदर, सत्कार मिलता है । परमात्मा अविनाशी हैं । वे कर्मोंका फल नहीं हैं, प्रत्युत आपकी चाहनाका फल है । परन्तु आपको परमात्माके मिलनेकी परवाह ही नहीं है, फिर वे कैसे मिलेंगे ? भगवान्‌ मानो कहते हैं कि मेरे बिना तेरा काम चलता है तो मेरा भी तेरे बिना काम चलता है । मेरे बिना तेरा काम अटकता है तो मेरा काम भी तेरे बिना अटकता है । तू मेरे बिना नहीं रह सकता तो मैं भी तेरे बिना नहीं रह सकता ।