।। श्रीहरिः ।।

 


  आजकी शुभ तिथि–
     माघ शुक्ल चतुर्दशी , वि.सं.-२०७९, शनिवार

सत्यकी स्वीकृतिसे कल्याण



Listen



प्रश्न‒सामने कोई चीज देखते हैं तो उसका असर पड़ता है; ऐसी स्थितिमें क्या करें ?

उत्तर‒असरको इतना आदर मत दो । कोई वस्तु देखते हैं तो वह हमारेको अच्छी लगती है, प्यारी लगती है, उसको प्राप्त करनेकी इच्छा होती है तो ऐसा असर पड़नेपर भी भीतरसे यह भाव होना चाहिये कि यह वस्तु हमारी नहीं है । वस्तुके असरका आदर न करके सच्‍ची बातका आदर करो । असरको महत्त्व देकर आप असली चीज खो रहे हो ! आजसे हृदयमें पक्‍का विचार कर लो कि अब हम असरको नहीं मानेंगे, प्रत्युत सच्‍ची बातको मानेंगे । असर कभी-कभी पड़ता है, हरदम नहीं पड़ता, पर आप इसको स्थायी मान लेते हो । यह भूल है । वास्तवमें आप शरीर नहीं हो । बालकपनमें जो आपका शरीर था, वह आज नहीं है, पर आप वे-के-वे ही हो । इसलिए कृपा करके आप असरको महत्त्व मत दो । सच्‍ची बातका असर पड़ना चाहिये । झूठी बातका असर पड़ जाय तो उसको आदर मत दो । सच्‍ची बात यह है कि हम शरीर नहीं हैं, शरीर हमारा नहीं है ।

मुक्ति प्राप्त करनेमें, भगवान्‌की तरफ चलनेमें स्थूल, सूक्ष्म या कारण, कोई भी शरीर काम नहीं आता । शरीर कुटुम्बके लिये, समाजके लिये और संसारके लिये काम आता है, हमारे लिये काम आता ही नहीं । इसलिये शरीरको कुटुम्ब, समाज और संसारकी सेवामें लगा दो । यह बड़ी भारी दामी बात है । इसको मान लो तो आप सदाके लिये सुखी हो जाओगे । शरीरसे हमारेको लाभ हो जायगा‒यह कोरा वहम है ।

स्थूल, सूक्ष्म और कारण‒कोई भी शरीर हमारे काम नहीं आता‒इस बातको समझ लेनेसे बहुत लाभ होता है । स्थूलशरीरसे क्रिया होती है, सूक्ष्मशरीरसे चिन्तन होता है और कारणशरीरसे स्थिरता तथा समाधि होती है । क्रिया, चिन्तन, स्थिरता और समाधि आपके लिये नहीं है । इनके भरोसे मत रहना । आपके काम आनेवाली चीज है‒कुछ भी चिन्तन न करना । ग्रन्थोंमें समाधिकी बड़ी महिमा आती है, पर वह भी आपके काम नहीं आयेगी । आपके काम न क्रिया आयेगी, न चिन्तन आयेगा, न स्थिरता आयेगी, न समाधि आयेगी । इसी तरह प्राणायाम, कुण्डलिनी-जागरण, एकाग्रता आदि कोई कामके नहीं हैं । ये सब प्राकृत चीजें हैं, जबकि आप परमात्माके अंश हो । ये आपकी जातिकी चीजें नहीं हैं । आप इन सबसे अलग हो । आपकी एकता परमात्माके साथ है । आप चाहे अद्वैत मानो, चाहे द्वैत मानो; चाहे ज्ञान मानो, चाहे भक्ति मानो, कम-से-कम इतनी बात तो स्वीकार कर ही लो कि शरीर हमारे कामका नहीं है, इसके साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है ।

अगर संसारका असर पड़ जाय तो उसकी परवाह मत करो, उसको स्वीकार मत करो, फिर वह मिट जायगा । असरको महत्त्व देकर आप बड़े भारी लाभसे वंचित हो रहे हो । इसलिये असर पड़ता है तो पड़ने दो, पर मनमें समझो कि यह सच्‍ची बात नहीं है । झूठी चीजका असर भी झूठा ही होगा, सच्‍चा कैसे होगा ? आपसे कोई पैसा ठगता है तो आपको उसकी बात ठीक दीखती है, आप उससे मोहित हो जाते हो, तभी तो ठगाईमें आते हो । ऐसे ही संसारका असर पड़ना बिलकुल ठगाई है, मूर्खता है ।

एक मार्मिक बात है कि असर शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिपर पड़ता है, आपपर नहीं । जिस जातिकी वस्तु है, उसी जातिपर उसका असर पड़ता है, आपपर नहीं पड़ता, क्योंकि आपकी जाति अलग है । शरीर-संसार जड़ हैं, आप चेतन हो । जड़का असर चेतनपर कैसे पड़ेगा ? जड़का असर तो जड़ (शरीर)-पर ही पड़ेगा । यह सच्‍ची बात है । इसको अभी मान लो तो अभी काम हो गया ! आँखोंके कारण देखनेका असर पड़ता है । कानोंके कारण सुननेका असर पड़ता है । तात्पर्य है कि असर सजातीय वस्तुपर पड़ता है । अतः कितना ही असर पड़े, उसको आप सच्‍चा मत मानो । आपके स्वरूपपर असर नहीं पड़ता । स्वरूप बिलकुल निर्लेप है–‘असंगो ह्ययं पुरुषः’ (बृहदारण्यक ४ । ३ । १५) । मन-बुद्धि़पर असर पड़ता है तो पड़ता रहे । मन-बुद्धि हमारे नहीं हैं । ये उसी धातुके हैं, जिस धातुकी वस्तुका असर पड़ता है ।