।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०८०, शुक्रवार

मेरे तो गिरधर गोपाल



Listen




मानवशरीर भगवान्‌की कृपासे मिला है और केवल भगवान्‌की प्राप्‍तिके लिये मिला है । इसलिये सब काम छोड़कर भगवान्‌में लग जाना चाहिये । जिनकी उम्र ज्यादा हो गयी है, उनको तो भगवान्‌में लगना ही है, जिनकी उम्र छोटी है, उनको भी सच्‍चे हृदयसे भगवान्‌में लगना है । संसारका सब काम कर देना है, पर अपना असली ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य केवल परमात्माकी प्राप्‍ति ही रखना है ।

वास्तवमें सत्ता एक परमात्माकी ही है । संसारकी तरफ आप ध्यान दें तो यह सब मिटनेवाला है और निरन्तर मिट रहा है । आप अपनी तरफ देखें कि जब आप अपनी माँके पेटसे पैदा हुये, उस समय शरीरकी कैसी अवस्था थी और आज कैसी अवस्था है । संसार निरन्तर बदलनेवाला है और परमात्मा निरन्तर रहनेवाले हैं । संसार रहनेवाला है ही नहीं और परमात्मा बदलनेवाले हैं ही नहीं । वे परमात्मा हमारे हैं और हम परमात्माके हैं‒इसमें दृढ़ता होनी चाहिये । जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है । उससे कोई पूछे कि माँ तेरी क्यों है, तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है । उसके मनमें यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है ? माँ मेरी है, बस, इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता । इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढ़तासे मान लो कि भगवान्‌ मेरे हैं । भगवान्‌के सिवाय और कोई मेरा नहीं है; क्योंकि वह सब छूटनेवाला है । जिनके प्रति आप बहुत सावधान रहते हैं, वे रुपये, जमीन, मकान आदि सब छूट जायँगे । उनकी यादतक नहीं रहेगी । अगर याद रहनेकी रीति हो तो बतायें कि इस जन्मसे पहले आप कहाँ थे ? आपके माँ-बाप, स्‍त्री-पुत्र कौन थे ? आपका घर कौन-सा था ? जैसे पहले जन्मकी याद नहीं है, ऐसे ही इस जन्मकी भी याद नहीं रहेगी । जिसकी यादतक नहीं रहेगी, उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो ! यह सबके अनुभवकी बात है कि हमारा कोई नहीं है । सब मिले हैं और बिछुड़ जायँगे । इसलिये ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’‒ऐसा मानकर मस्त हो जाओ । संसारका काम बिगड़ रहा है तो बिगड़ने दो । वह तो बिगड़नेवाला ही है । सुधर जाय तो भी बिगड़ेगा । उसकी चिन्ता मत करो । आरम्भमें थोड़ा-सा बिगड़ेगा, परन्तु पीछे बहुत बढ़िया हो जायगा । दुनिया सब-की-सब चली जाय तो परवाह नहीं है । मैं और भगवान्‌‒इन दोके सिवाय और कोई नहीं है । मैं केवल भगवान्‌का हूँ और केवल भगवान्‌ मेरे हैं‒इसके सिवाय और किसी बातकी तरफ देखो ही मत, विचार ही मत करो ।

एक परमात्मा ही सब जगह परिपूर्ण हैं । उनके सिवाय और कोई है नहीं, कोई हुआ नहीं, कोई होगा नहीं, कोई हो सकता नहीं । वे परमात्मा ही मेरे हैं‒ऐसा मानकर मस्त हो जाओ, प्रसन्‍न हो जाओ । हम अच्छे हैं कि मन्दे हैं, इसकी फिक्र मत करो । जैसे भरतजी महाराज चित्रकूट जाते हुए माँ कैकेयीकी तरफ देखते हैं तो उनके पैर पीछे पड़ते हैं, और अपनी तरफ देखते हैं तो खड़े रहते हैं, पर जब रघुनाथजी महाराजकी तरफ देखते हैं तो दौड़ पड़ते हैं‒

जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ ।

तब पथ परत  उताइल पाऊ ॥

(मानस, अयोध्या २३४ । ३)

ऐसे ही आप अपनी करनीकी तरफ मत देखो, अपने पापोंकी तरफ मत देखो, केवल भगवान्‌की तरफ देखो । जैसे विदुरानी भगवान्‌को छिलका देती हैं तो भगवान्‌ छिलका ही खाते हैं । छिलका खानेमें भगवान्‌को जो आनन्द आता है, वैसा आनन्द गिरी खानेमें नहीं आता । कारण कि विदुरानीके मनमें यह भाव है कि भगवान्‌ मेरे हैं । जैसे बच्‍चेको भूखा देखकर माँ जिस भावसे उसको खिलाती है, उससे भी विशेष भाव विदुरानीमें है । ऐसे ही आप भगवान्‌को अपना मान लो । जीने-मरने आदि किसीकी भी परवाह मत करो । किसीसे डरो मत । किसीकी भी गर्ज करनेकी जरूरत नहीं । बस, एक ही विचार रखो कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ । अगर यह विचार कर लोगे तो निहाल हो जाओगे । परन्तु बहुत धन कमा लो, बहुत सैर-शौकीनी कर लो, बहुत मान-बड़ाई प्राप्‍त कर लो तो यह सब कुछ काम नहीं आयेगा‒

सपना-सा हो जावसी,  सुत कुटुम्ब धन धाम,

हो सचेत बलदेव नींदसे, जप ईश्‍वरका नाम ।

मनुष्य तन फिर फिर नहिं होई,

किया   शुभ   कर्म   नहीं   कोई,

उम्र     सब   गफलतमें     खोई ।

अब आजसे भगवान्‌के होकर रहो । कोई क्या कर रहा है, भगवान्‌ जानें । हमें मतलब नहीं है । सब संसार नाराज हो जाय तो परवाह नहीं, पर भगवान्‌ मेरे हैं‒इस बातको छोड़ो मत । मीराबाईको जँच गयी कि अब मैं भगवान्‌से दूर होकर नहीं रह सकती‒‘मिल बिछुड़न मत कीजै’ तो उनका डेढ़-दो मनका थैला शरीर भी नहीं मिला, भगवान्‌में समा गया ! एक ठाकुरजीके सिवाय किसीसे कोई मतलब नहीं है ।

अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर ! तू न तजै अबही ते ।

(विनयपत्रिका १९८)

अन्तमें तुझे सब छोड़ देंगे, कोई तुम्हारा नहीं रहेगा तो फिर पहलेसे ही छोड़ दे ।

साधु विचारकर भली समझ्‌या, दिवी जगत को पूठ ।

पीछे     देखी   बिगड़ती,    पहले     बैठा     रूठ ॥

पीछे तो सब बिगड़ेगी ही, फिर अपना काम बिगाड़कर बात बिगड़े तो क्या लाभ ? अपने तो अभी-अभी भगवान्‌के हो जाओ । तुम तुम्हारे, हम हमारे । हमारा कोई नहीं, हम किसीके नहीं, केवल भगवान्‌ हमारे हैं, हम भगवान्‌के हैं । भगवान्‌के चरणोंकी शरण होकर मस्त हो जाओ । कौन राजी है, कौन नाराज; कौन मेरा है, कौन पराया, इसकी परवाह मत करो । वे निन्दा करें या प्रशंसा करें; तिरस्कार करें या सत्कार करें, उनकी मरजी । हमें निन्दा-प्रशंसा, तिरस्कार-सत्कारसे कोई मतलब नहीं । सब राजी हो जायँ तो हमें क्या मतलब और सब नाराज हो जायँ तो हमें क्या मतलब ?