Listen केवल एक भगवान् मेरे हैं‒इससे बढ़कर न यज्ञ है,
न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है । इसलिये भगवान्को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो । न
जीनेकी इच्छा हो, न मरनेकी इच्छा हो । न जानेकी इच्छा हो, न रहनेकी इच्छा हो । एक
भगवान्से मतलब हो । एक भगवान्के सिवाय मेरा और कोई है
ही नहीं । अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश-जितनी अथवा तिनके-जितनी चीज भी अपनी नहीं है
। हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा कुछ था ही नहीं, हमारा कुछ होगा ही नहीं,
हमारा कुछ हो सकता ही नहीं । इसलिये एक भगवान्को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे ।
भगवान्के सिवाय किसीसे स्वप्नमें भी मतलब नहीं । किसीकी गुलामी करनेकी जरूरत
नहीं । हमें किसीसे क्या लेना है और क्या देना है ! हमारे जो सम्बन्धी हैं, उनका
कितने दिनका साथ है ! ‘सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन
धाम’ ! स्वप्न तो याद रहता है, पर उनकी याद भी नहीं रहेगी । जैसे स्वप्नको
नापसन्द कर देते हो तो उसको भूल जाते हो, ऐसे ही संसारको नापसन्द कर दो तो उसको
भूल जाओगे । संसारमें यह आदमी ठीक है, यह बेठीक है; ऐसा हो जाय, ऐसा नहीं हो‒यह
केवल मोह है । मोह सम्पूर्ण व्याधियोंका मूल है‒‘मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला’ (मानस, उत्तर॰ १२१ । १५) । ठीक हो या बेठीक, हमें क्या मतलब ? दूसरे ही हमारी गरज
करेंगे, हमें किसीकी क्या गरज ? संसारके आदमियोंसे हमें क्या मतलब ? बस, एक ही बात
याद रखो‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ । प्यास लगे तो पानी पी लिया, भूख लगे तो रोटी खा ली, ठण्ड
लगे तो कपड़ा ओढ़ लिया, नहीं मिले तो नहीं सही ! शरीर जाय तो अच्छी बात, रहे तो
अच्छी बात, अपना कोई मतलब नहीं । न शरीरके रहनेसे कोई मतलब, न शरीर जानेसे कोई
मतलब । हमारा मतलब केवल भगवान्से है । केवल भगवान् हमारे हैं, हम भगवान्के हैं‒ऐसा
सोचकर मस्त हो जाओ, आनन्दमें हो जाओ, नाच उठो कि आज हमें पता चल गया, आज तो मौज हो
गयी ! अब हम किसीकी गुलामी नहीं करेंगे । ऊपर-नीचे, बाहर-भीतर सब जगह एक परमात्मा ही हैं‒ बहिरन्तश्च
भूतानामचरं चरमेव च । (गीता १३ । १५) यच्च
किञ्चिज्जगत्यस्मिन्दृश्यते श्रूयऽतेपि वा । अन्तर्बहिश्च
तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ॥ (महानारायणोपनिषद् ११ । ६) वह परमात्मा नजदीक-से-नजदीक है, दूर-से-दूर है,
बाहर-से-बाहर है, भीतर-से-भीतर है । एक परमात्मा-ही-परमात्मा है और वह अपना है‒ऐसा
सोचकर मस्त हो जाओ । कोई आये तो परमात्मा है, कोई जाय तो परमात्मा है । कोई प्रेम
करे तो परमात्मा है, कोई वैर करे तो परमात्मा है । कोई कुछ करे,
परमात्मा-ही-परमात्मा है । उस परमात्माको पुकारो कि ‘हे
नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं ।’ आपका जन्म सफल हो जायगा ! यह कितनी
बढ़िया बात है ! कितनी ऊँची बात है ! कितनी सच्ची बात है ! कितनी निर्मल बात है !
कोई क्या करता है, यह आप मत देखो । हमें उससे क्या मतलब है ? तेरे
भावै कछु करौ, भलो बुरो
संसार । ‘नारायन’ तू बैठि के, अपनौ भवन बुहार ॥ हमारा मतलब केवल भगवान्से है । हम अच्छे हैं तो उनके हैं, बुरे हैं तो उनके हैं‒ जौ हम भले बुरे तौ तेरे । तुम्हैं हमारी
लाज-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे ॥ (सुरविनय॰ २३६) संसारमें तो एक तिनका भी हमारा नहीं रहेगा, नहीं रहेगा,
नहीं रहेगा । अपना है ही नहीं तो कैसे रहेगा ? संसारका प्रतिक्षण आपसे वियोग हो
रहा है । जन्म लेनेके बाद जितने वर्ष बीत गये, उतने वर्ष तो आप मर ही गये और बाकी
जो दिन बचे हैं वे भी जानेवाले हैं । एक भगवान्के सिवाय
अपना कुछ नहीं है । इसलिये भगवान्को पुकारो कि हे प्रभो ! हे मेरे प्रभो ! मेरा
कोई नहीं है, केवल आप ही मेरे हो, और कोई मेरा नहीं है । फिर मौज हो जायगी,
आनन्द हो जायगा ! मेरे तो भगवान् हैं‒इस बातको लेकर नाचने लग जाओ, कूदने लग जाओ
कि आज हमारा काम हो गया ! सब कुछ भगवान्के चरणोंमें
अर्पण कर दो । स्वप्नमें भी किसीकी गुलामी मत करो । हृदयसे गुलामी निकाल दो ।
नाचने लग जाओ कि बस, आज तो हम निहाल हो गये ! कोई पूछे कि अरे ! क्या मिल गया ? तो
कहो कि जो मिलना चाहिये था, वह मिल गया ! वह परमात्मा स्वतः सबको मिला हुआ
है, सबके भीतर विराजमान है । वह हमारा अपना है । और किसीसे हमें कोई गरज नहीं,
किसीकी आवश्यकता नहीं, किसीकी परवाह नहीं । कोई राजी रहे तो मौज, नाराज हो जाय तो
मौज ! हम किसीको दुःख नहीं देते, किसीके विरुद्ध कुछ करते नहीं, स्वप्नमें भी
किसीका अहित नहीं चाहते, फिर कोई राजी रहे या नाराज, यह उसकी मरजी । हमारा किसीसे
कोई मतलब नहीं । भगवान्
मेरे हैं‒इसके समान कोई बात है नहीं, होगी नहीं, हो सकती नहीं । इस बातका हमें पता लग गया तो अब मौज हो गयी ! इतने दिन
दूसरोंकी गुलामी करके मुफ्तमें दुःख पाया । अब हम सबको प्रणाम करते हैं ! सभी श्रेष्ठ
हैं, पर हमें उनसे मतलब नहीं । हमें केवल भगवान्से ही मतलब है । परन्तु भगवान्से
भी हमें कुछ लेना नहीं है, कोई गरज नहीं करनी है । ढूँढ़ा
सब जहाँ में, पाया पता तेरा नहीं । जब पता तेरा लगा, अब पता मेरा नहीं ॥ वास्तवमें मैं है ही नहीं, केवल तू-ही-तू है । छोटा-बड़ा,
अच्छा-मन्दा सब तू-ही-तू है । अब हमें असली चीज मिल
गयी ! आज पता लग गया कि तू ही है, मैं हूँ ही नहीं ! न मैं है, न मेरा है ।
केवल तू है और तेरा है । अब आनन्द-ही-आनन्द है । पूर्ण आनन्द,
अपार आनन्द, सम आनन्द, शान्त आनन्द, घन आनन्द, अचल आनन्द, बाहर आनन्द, भीतर आनन्द, केवल आनन्द-ही-आनन्द !
नारायण ! नारायण ! नारायण !
नारायण ! |