।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल एकादशी, वि.सं.-२०८०, शनिवार

मेरे तो गिरधर गोपाल



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केवल एक भगवान्‌ मेरे हैं‒इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है । इसलिये भगवान्‌को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्‍न रहो । न जीनेकी इच्छा हो, न मरनेकी इच्छा हो । न जानेकी इच्छा हो, न रहनेकी इच्छा हो । एक भगवान्‌से मतलब हो । एक भगवान्‌के सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं । अनन्त ब्रह्माण्डोंमें केश-जितनी अथवा तिनके-जितनी चीज भी अपनी नहीं है । हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा कुछ था ही नहीं, हमारा कुछ होगा ही नहीं, हमारा कुछ हो सकता ही नहीं । इसलिये एक भगवान्‌को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे । भगवान्‌के सिवाय किसीसे स्वप्‍नमें भी मतलब नहीं । किसीकी गुलामी करनेकी जरूरत नहीं । हमें किसीसे क्या लेना है और क्या देना है ! हमारे जो सम्बन्धी हैं, उनका कितने दिनका साथ है ! ‘सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन धाम’ ! स्वप्‍न तो याद रहता है, पर उनकी याद भी नहीं रहेगी । जैसे स्वप्‍नको नापसन्द कर देते हो तो उसको भूल जाते हो, ऐसे ही संसारको नापसन्द कर दो तो उसको भूल जाओगे । संसारमें यह आदमी ठीक है, यह बेठीक है; ऐसा हो जाय, ऐसा नहीं हो‒यह केवल मोह है । मोह सम्पूर्ण व्याधियोंका मूल है‒‘मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला’ (मानस, उत्तर १२१ । १५) । ठीक हो या बेठीक, हमें क्या मतलब ? दूसरे ही हमारी गरज करेंगे, हमें किसीकी क्या गरज ? संसारके आदमियोंसे हमें क्या मतलब ? बस, एक ही बात याद रखो‒‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ ।

प्यास लगे तो पानी पी लिया, भूख लगे तो रोटी खा ली, ठण्ड लगे तो कपड़ा ओढ़ लिया, नहीं मिले तो नहीं सही ! शरीर जाय तो अच्छी बात, रहे तो अच्छी बात, अपना कोई मतलब नहीं । न शरीरके रहनेसे कोई मतलब, न शरीर जानेसे कोई मतलब । हमारा मतलब केवल भगवान्‌से है । केवल भगवान् हमारे हैं, हम भगवान्‌के हैं‒ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ, आनन्दमें हो जाओ, नाच उठो कि आज हमें पता चल गया, आज तो मौज हो गयी ! अब हम किसीकी गुलामी नहीं करेंगे ।

ऊपर-नीचे, बाहर-भीतर सब जगह एक परमात्मा ही हैं‒

बहिरन्तश्‍च भूतानामचरं चरमेव च ।

(गीता १३ । १५)

यच्‍च किञ्‍चिज्जगत्यस्मिन्दृश्यते श्रूयऽतेपि वा ।

अन्तर्बहिश्‍च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः ॥

(महानारायणोपनिषद् ११ । ६)

वह परमात्मा नजदीक-से-नजदीक है, दूर-से-दूर है, बाहर-से-बाहर है, भीतर-से-भीतर है । एक परमात्मा-ही-परमात्मा है और वह अपना है‒ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ । कोई आये तो परमात्मा है, कोई जाय तो परमात्मा है । कोई प्रेम करे तो परमात्मा है, कोई वैर करे तो परमात्मा है । कोई कुछ करे, परमात्मा-ही-परमात्मा है । उस परमात्माको पुकारो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं ।’ आपका जन्म सफल हो जायगा ! यह कितनी बढ़िया बात है ! कितनी ऊँची बात है ! कितनी सच्‍ची बात है ! कितनी निर्मल बात है ! कोई क्या करता है, यह आप मत देखो । हमें उससे क्या मतलब है ?

तेरे भावै कछु  करौ,   भलो  बुरो   संसार ।

‘नारायन’ तू बैठि  के, अपनौ भवन बुहार ॥

हमारा मतलब केवल भगवान्‌से है । हम अच्छे हैं तो उनके हैं, बुरे हैं तो उनके हैं‒

                    जौ हम भले बुरे तौ तेरे ।

तुम्हैं हमारी लाज-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे ॥

(सुरविनय २३६)

संसारमें तो एक तिनका भी हमारा नहीं रहेगा, नहीं रहेगा, नहीं रहेगा । अपना है ही नहीं तो कैसे रहेगा ? संसारका प्रतिक्षण आपसे वियोग हो रहा है । जन्म लेनेके बाद जितने वर्ष बीत गये, उतने वर्ष तो आप मर ही गये और बाकी जो दिन बचे हैं वे भी जानेवाले हैं । एक भगवान्‌के सिवाय अपना कुछ नहीं है । इसलिये भगवान्‌को पुकारो कि हे प्रभो ! हे मेरे प्रभो ! मेरा कोई नहीं है, केवल आप ही मेरे हो, और कोई मेरा नहीं है । फिर मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा ! मेरे तो भगवान्‌ हैं‒इस बातको लेकर नाचने लग जाओ, कूदने लग जाओ कि आज हमारा काम हो गया ! सब कुछ भगवान्‌के चरणोंमें अर्पण कर दो । स्वप्‍नमें भी किसीकी गुलामी मत करो । हृदयसे गुलामी निकाल दो । नाचने लग जाओ कि बस, आज तो हम निहाल हो गये ! कोई पूछे कि अरे ! क्या मिल गया ? तो कहो कि जो मिलना चाहिये था, वह मिल गया ! वह परमात्मा स्वतः सबको मिला हुआ है, सबके भीतर विराजमान है । वह हमारा अपना है । और किसीसे हमें कोई गरज नहीं, किसीकी आवश्यकता नहीं, किसीकी परवाह नहीं । कोई राजी रहे तो मौज, नाराज हो जाय तो मौज ! हम किसीको दुःख नहीं देते, किसीके विरुद्ध कुछ करते नहीं, स्वप्‍नमें भी किसीका अहित नहीं चाहते, फिर कोई राजी रहे या नाराज, यह उसकी मरजी । हमारा किसीसे कोई मतलब नहीं ।

भगवान्‌ मेरे हैं‒इसके समान कोई बात है नहीं, होगी नहीं, हो सकती नहीं । इस बातका हमें पता लग गया तो अब मौज हो गयी ! इतने दिन दूसरोंकी गुलामी करके मुफ्तमें दुःख पाया । अब हम सबको प्रणाम करते हैं ! सभी श्रेष्‍ठ हैं, पर हमें उनसे मतलब नहीं । हमें केवल भगवान्‌से ही मतलब है । परन्तु भगवान्‌से भी हमें कुछ लेना नहीं है, कोई गरज नहीं करनी है ।

ढूँढ़ा सब जहाँ में,   पाया पता तेरा नहीं ।

जब पता तेरा लगा, अब पता मेरा नहीं ॥

वास्तवमें मैं है ही नहीं, केवल तू-ही-तू है । छोटा-बड़ा, अच्छा-मन्दा सब तू-ही-तू है । अब हमें असली चीज मिल गयी ! आज पता लग गया कि तू ही है, मैं हूँ ही नहीं ! न मैं है, न मेरा है । केवल तू है और तेरा है । अब आनन्द-ही-आनन्द है । पूर्ण आनन्द, अपार आनन्द, सम आनन्द, शान्त आनन्द, घन आनन्द, अचल आनन्द, बाहर आनन्द, भीतर आनन्द, केवल आनन्द-ही-आनन्द !

नारायण !   नारायण !   नारायण !   नारायण !