।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७३, मंगलवार
एकादशी-व्रत कल है
सर्वश्रेष्ठ हिन्दूधर्म और उसके ह्रासका कारण


(गत ब्लॉगसे आगेका)

कृत्रिम सन्तति-निरोधसे हानि

सब दृष्टियोंसे प्राणी-पदार्थोंके उत्पादन, वृद्धि और संरक्षणमें लाभ-ही-लाभ है और उनके ह्रास अथवा नाशमें हानि-ही-हानि है । किसी भी प्राणी और पदार्थका ह्रास अथवा नाश समष्टि शक्ति (ईश्वर अथवा प्रकृति) के अधीन है, व्यष्टि मनुष्यके अधीन नहीं है । ईश्वर अथवा प्रकृतिके विधानमें हस्तक्षेप करना मनुष्यकी अनधिकार चेष्टा है, जिसका परिणाम भयंकर विनाशकारी होगा ।

पालतू पशुओंमें कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, गधा, ऊँट और जंगली पशुओंमें सियार, लोमड़ी आदि असंख्य जातिके पशु हैं, जो परिवार-नियोजन नहीं करते । कुत्ते, बिल्ली, सूअर आदिके एक-एक बारमें अनेक बच्चे होते हैं । परन्तु  परिवार-नियोजन न करनेसे क्या उनकी संख्या बढ़ गयी ? क्या उन्होंने बहुत-सी जगह रोक ली ? फिर उनकी संख्याका नियन्त्रण कौन करता है ? जो उनकी संख्याका नियन्त्रण करता है, वही मनुष्योंकी संख्याका भी नियन्त्रण करता है ।

भोग-भोगनेसे और ऑपरेशनसे, कृत्रिम गर्भपातसे शरीर स्वाभाविक कमजोर होता है तथा आयुका ह्रास है । अतः जल्दी मरनेके दो रामबाण उपाय हैं‒भोग-भोगना और ऑपरेशन (नसबंदी आदि), गर्भपात करवाना । आश्चर्यकी बात है कि मरना तो चाहते नहीं, पर उद्योग मरनेका ही कर रहे हैं ! घरमें आग लगाकर हर्षित होते हैं कि अहा ! कितना बढ़िया प्रकाश रहा है कि हाथकी एक-एक रेखा साफ दीख रही ! जब परिणाम सामने आयेगा, तब होश होगा !

मनुष्यको अपना शरीर और रुपये‒दोनों बहुत प्यारे हैं और इनको वह बहुत महत्त्व देता है । गर्भपात करवानेसे शरीर भले ही कमजोर हो जाय और रुपये भले ही खर्च हो जाये फिर भी गर्भपातरूपी महान् करते हैं‒यह कितने पतनका चिह्न है ! मनुष्य रुपये पैदा करता है, रुपये मनुष्यको पैदा नहीं करते । उन रुपयोंको खर्च करके उनके उत्पादक (मनुष्य) का नाश कर देना कितनी बेसमझी है !

गर्भ-स्थापन कर सकनेके सिवाय कोई पुरुषत्व नहीं है और गर्भ-धारण कर सकनेके सिवाय कोई स्त्रीत्व तहीं है । पुरुषत्वके बिना पुरुष और स्त्रीत्वके बिना स्त्री निस्तत्त्व, निःसार है । पुरुष और स्त्रीमें जो तत्त्व, सार है, उसीको वर्तमानमें नष्ट कर रहे हैं ! अगर पुरुषमें (पुरुषत्व न रहे और स्त्रीमें स्त्रीत्व न रहे तो वे मात्र भोगी ही रहे, मनुष्य रहे ही नहीं । पुरुष भोगी बनकर लम्पट हो गया और स्त्री भोग्या बनकर वेश्या हो गयी ! पुरुष पिता न बनकर लम्पट बन जाय और स्त्री माता न बनकर वेश्या बन जाय‒इससे अधिक पतन और क्या हो सकता है ? मनुष्य यदि मनुष्यको पैदा न कर सके तो वह मनुष्य क्या रहा, एक नाटकीय जीव हो गया । उससे तो पशु अच्छे हैं, जो पशुओंको पैदा तो कर सकते हैं !
  
  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे