(गत ब्लॉगसे आगेका)
दूसरी बात, आपने खालीपनकी सत्ता मानी है तो क्या सत्ता खाली होती है ? सत्ता भी खाली नहीं होती और ज्ञान भी खाली नहीं होता । सत्ता (सत्) और ज्ञान (चित्)‒दोनों परमात्माके स्वरूप हैं । अब परमात्मा है‒इसको माननेमें क्या बाधा लगी ? इसको आप रद्दी मत करो । इस तरफ आप खयाल नहीं करते, इतनी ही बाधा है । इसका अभाव थोड़े ही हुआ है ? इधर खयाल करना है‒इतना ही काम है आपका ।
परमात्मा ज्यों-का-त्यों है । उसको कोई बनाना नहीं है, पैदा करना नहीं है केवल उधर खयाल करना है कि वह है । उसका हमारे साथ नित्य-सम्बन्ध है, नित्ययोग है । संसारके वियोगका अनुभव होनेपर परमात्माके नित्ययोगका अनुभव हो जायगा । परमात्माका नित्ययोग मानो तो ‘योग’ हो जायगा और संसारका नित्यवियोग मानो तो ‘योग’ हो जायगा । बात एक ही ठहरेगी ! आप इसको महत्त्व नहीं दे रहे हैं । जो आने-जानेवाले हैं, उन रुपयों आदिको तो महत्व देते हो, पर रहनेवालेको महत्व नहीं देते । आने-जानेवालेको अस्वीकार करो और रहनेवालेको स्वीकार करो । अस्वीकार करनेका नाम भी ‘योग’ है और स्वीकार करनेका नाम भी‘योग’ है ।
जो चीज आदि और अन्तमें नहीं होती, वह बीचमें भी नहीं होती‒यह सिद्धान्त है । जैसे, स्वप्न आया तो उससे पहले स्वप्न नहीं था, बादमें भी स्वप्न नहीं रहा; अत: स्वप्नके समय भी ‘नहीं’ ही मुख्य था, स्वप्न मुख्य नहीं था । इसलिये ‘नहीं’ निरन्तर रहा । इसी तरह संसार पहले नहीं था, पीछे नहीं रहेगा और वर्तमानमें भी निरन्तर ‘नहीं’ में ही जा रहा है; अत: इसमें ‘नहीं’ ही मुख्य है । इसमें बाधा क्या लगी ?
श्रोता‒‘नहीं’ की ममता-आसक्ति नहीं मिटती !
स्वामीजी‒ममता-आसक्ति रहें चाहे न रहें, परमात्मा तो रहेगा ही । ममता, आसक्ति, कामना आदि तो आने-जानेवाले हैं और वह रहनेवाला है । रहनेवालेकी तरफ दृष्टि रखो । जो आता है और मिटता है उसकी तरफ दृष्टि मत रखो, उसको महत्व मत दो । जो आता है, जाता है; बनता है,बिगड़ता है; पैदा होता है, मिटता है, उसका क्या महत्त्व है ?परमात्मा न आता है, न जाता है, न बनता है, न बिगड़ता है,न पैदा होता है न मिटता है, इसलिये वह ‘है’ । आसक्ति हो जाय तो होने दो, कामना हो जाय तो होने दो, उसकी परवाह मत करो । ‘है’ को दृढ़ रखो । आसक्ति हो जाय तो उसमें भी वह है । कामना हो जाय तो उसमें भी वह है । कुछ भी हो जाय वह तो ज्यों-का-त्यों ही है । उस ‘है’ की तरफ विशेष ध्यान होगा तो ये ममता, आसक्ति, काम, क्रोध आदि सब मिट जायेंगे, रहेंगे नहीं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे
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