(गत ब्लॉगसे आगेका)
परमात्मा सबमें स्वतः-स्वाभाविक परिपूर्ण हैं । वे नित्य प्राप्त
हैं, स्वतः प्राप्त हैं, स्वाभाविक प्राप्त हैं । उनको प्राप्त करनेमें उद्योग, परिश्रम,
पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता । उद्योग
संसारकी वस्तु प्राप्त करनेमें करना पड़ता है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये उद्योग करना
पड़ेगा, परिश्रम करना पड़ेगा, कठिन
तपस्या करनी पड़ेगी, समय लगाना पड़ेगा, सिद्धि
करनी पड़ेगी, किसीसे पूछना पड़ेगा, पढ़ना
पड़ेगा‒इस तरहकी बहुत-सी बाधाएँ हमारी बनायी हुई हैं, जिनके कारण हम परमात्मप्राप्तिसे
वंचित रहते हैं । सांसारिक वस्तुकी
प्राप्तिमें तो भविष्य होता है, पर जो नित्यप्राप्त है,
स्वतः-स्वाभाविक है,
उसकी प्राप्तिमें भविष्य कैसे ?
जो प्राप्त नहीं है, उसको
प्राप्त मान लिया‒यही नित्यप्रासकी प्राप्तिमें बाधा है । यही नित्यप्राप्तके न दीखनेमें आवरण (परदा) है !
है सो सुन्दर है सदा, नहिं
सो सुन्दर नाहिं ।
नहिं सो परगट देखिये, है सो
दीखे नाहिं ॥
वास्तवमें ‘है’ नहीं ढकता, हमारी दृष्टि ही ढकी जाती है । ‘नहीं’ की सत्ताको लेकर ‘है’ को नहीं मानना ही आवरण है । ‘नहीं’ को नहीं माननेसे ‘है’ का अनुभव स्वतः होता है ।
जो निरन्तर जा रहा है,
उस ‘नहीं’ को देखनेसे ‘है’ में हमारी स्थिति स्वतः-सिद्ध होती है,
करनी नहीं पड़ती । नाशवान्को देखनेसे अविनाशीमें हमारी स्थिति
स्वतः-स्वाभाविक है । नाशवान्को हम नाशवान् जानते तो हैं, पर
इस जानकारीको हम महत्त्व नहीं देते । अब केवल इस जानकारीको महत्त्व देना है । जैसे, एक आदमी खड़ा है और उसके सामनेसे कई आदमी चले गये । किसीने पूछा
कि कितने आदमी चले गये तो उसने कहा कि एक-एक करके दस आदमी चले गये । इससे सिद्ध हुआ
कि ‘दस आदमी चले गये’‒ऐसा कहनेवाला नहीं गया,
वहीं खड़ा रहा । अगर वह भी चला जाता तो ‘दस आदमी चले गये‒ऐसा कौन कहता ?
ऐसे ही संसार प्रतिक्षण जा रहा है‒ऐसा जाननेवाला कहीं गया नहीं
। ‘नहीं’
का ज्ञान ‘है’ से
ही होता है । ‘नहीं’
से ‘नहीं’
का ज्ञान नहीं होता । अतः शरीर-संसार निरन्तर जा रहे हैं‒इस तरफ दृष्टि रहनेपर बिना
विचार किये स्वरूपमें स्थिति स्वतः है । इसमें श्रवण,
मनन, निदिध्यासन, समाधि आदिकी क्या जरूरत है ?
देश नहीं है, काल नहीं है वस्तु नहीं है,
व्यक्ति नहीं है, परिस्थिति नहीं है,
अवस्था नहीं है, घटना नहीं है, क्रिया नहीं है‒इधर दृष्टि होनेपर स्वतः समाधि है । तात्पर्य है कि अगर ‘है’ को
देखना हो तो ‘नहीं’
को देखो । ‘नहीं’ को
देखते-देखते ‘है’ में स्थिति स्वतः होती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संग मुक्ताहार’ पुस्तकसे
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