(गत ब्लॉगसे आगेका)
सन्तानके लिये तो माता-पिता ईश्वरके समान हैं‒‘मातृदेवो भव,
पितृदेवो भव’
। यदि वे अपनी सन्तानका जन्मसे पहले ही नाश कर देंगे तो फिर
रक्षा कौन करेगा ?
साधुलोग चातुर्मासमें एक ही जगह इस कारण रहते हैं कि स्थावर
पेड़-पौधोंके अंकुर यात्रा करते समय पैरोंके नीचे आकर नष्ट न हो जायँ । जब स्थावर प्राणियोंकी
भी हिंसाका इतना पाप माना जाता है, फिर जो जंगम प्राणी हैं,
उनकी हिंसाका कितना पाप है ?
जंगम प्राणियोंमें भी मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है । उस मनुष्यकी गर्भमें
ही हत्या कर देना कितना महान् पाप है ? इससे बढ़कर दूसरा कोई पाप नहीं है !
गर्भमें आया जीव जन्म लेनेके बाद न जाने कितने अच्छे-अच्छे लौकिक
और पारमार्थिक काम करता, समाजकी और देशकी सेवा करता,
अनेक लोगोंकी सहायता करता,
सन्त-महात्मा बनकर अनेक लोगोंको सन्मार्गमें लगाता,
अपना तथा औरोंका कल्याण करता,
खेती करता, अनेक कारखाने खोलता आदि-आदि । परन्तु जन्म लेनेसे पहले ही उसकी
हत्या कर देना कितना महान् पाप है ! क्या हम जानते हैं कि
गर्भमें आया जीव कौन है ? कैसा है ? अगर
महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, स्वामी
विवेकानन्द आदिका जन्मसे पहले ही गर्भपात कर दिया गया होता तो देशकी कितनी क्षति हुई
होती !
जिसको जीवित नहीं कर सकते, उसको
मारनेका अधिकार कैसे हो सकता है ? जीवमात्रको जीनेका अधिकार है । उसको गर्भमें ही नष्ट
करके उसके अधिकारको छीनना महान् पाप है । मनुष्यको दूसरोंकी सेवा करने, उसको सुख पहुँचानेका अधिकार है,
किसीका नाश करनेका कभी अधिकार नहीं है । अगर गर्भपातकी प्रथा
चल पड़ेगी तो फिर मनुष्य राक्षसोंसे भी बहुत नीचे हो जायँगे ! रावण और हिरण्यकशिपुके राज्यमें भी गर्भपात-जैसा महापाप नहीं हुआ
।
शास्त्रोंमें जगह-जगह गर्भपातको महापाप माना गया है । पाराशरस्मृतिमें
तो इसको ब्रह्महत्यारूपी महापापसे भी दुगुना पाप बताया गया है‒
यत्यापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं गर्भपातने ।
प्रायश्रित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥
(४ । २०)
‘ब्रह्महत्यासे जो पाप लगता है, उससे दुगुना पाप गर्भपात करनेसे लगता है । इस गर्भपातरूपी महापापका कोई प्रायश्चित्त
भी नहीं है, इसमें तो उस स्त्रीका त्याग कर देनेका ही विधान
है ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘देशकी वर्तमान दशा तथा उसका परिणाम’ पुस्तकसे |