मृत्यकालकी सब
सामग्री तैयार है, कफन भी तैयार है, नया नहीं बनाना पड़ेगा । उठानेवाले आदमी भी
तैयार है, नये नहीं जन्मेंगे । जलानेके लिये लकड़ी भी तैयार है, नये वृक्ष नहीं
लगाने पड़ेंगे । केवल श्वास बन्द होनेकी देर है । श्वास बन्द होते ही यह सब सामग्री
जुट जायगी । फिर निश्चिन्त कैसे बैठे हो ?
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चेत करो ! यह संसार सदा रहनेके लिये नहीं है । यहाँ केवल
मरने-ही-मरनेवाले रहते हैं । फिर पैर फैलाये कैसे बैठे हो ?
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विचार करो, क्या ये दिन सदा ऐसे ही रहेंगे ?
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मकान यहाँ बना रहे हो, सजावट यहाँ कर रहे हो, संग्रह यहाँ
कर रहे हो, पर खुद मौतकी तरफ भागे चले जा रहे हो ! जहाँ जाना जाना है, पहले उसको
ठीक करो !
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निश्चित समयपर चलनेवाली गाड़ीके लिये भी जब पहलेसे सावधानी
रहती है, फिर जिस मौतरूपी गाड़ीका कोई समय निश्चित नहीं, उसके लिये तो हरदम सावधानी
रहनी चाहिये ।
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‘करेंगे’‒यह निश्चित नहीं है, पर ‘मरेंगे’‒यह निश्चित है ।
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आप भगवान्को नहीं देखते, पर भगवान् आपको निरन्तर देख रहे
हैं ।
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आनेवाला जानेवाला होता है‒यह नियम है ।
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कालरूपी अग्निमें सब कुछ निरन्तर जल रहा है, फिर किसका
भरोसा करें ? किसकी इच्छा करें ?
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विचार करो कि अपना कौन है ? अगर अभी मौत आ जाय तो कोई हमारी
सहायता कर सकता है क्या ?
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जन्मदिन आनेपर बड़ा आनन्द मनाते हैं कि हम इतने वर्षके हो
गये ! वास्तवमें इतने वर्षके हो नहीं गये, प्रत्युत इतने वर्ष मर गये अर्थात्
हमारी उम्रमेंसे इतने वर्ष कम हो गये और मौत नजदीक आ गयी !
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बालक जन्मता है तो बड़ा होगा कि नहीं, पढ़ेगा कि नहीं, उसका
विवाह होगा कि नहीं, उसके बाल-बच्चे होंगे कि नहीं, उसके पास धन होगा कि नहीं
आदि सब बातोंमें सन्देह है, पर वह मरेगा कि
नहीं‒इसमें कोई सन्देह नहीं है !
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–‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे
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