।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ कृष्ण सप्तमी, वि.सं. २०७६ सोमवार
   अभिमान सबको दुःख देता है
        

अभिमानको कैसे छोड़ा जाय ? इसपर विवेचन करनेपर विचार आया कि मनुष्य दूसरोंके साथ अपना मिलान न करे, तो अभिमानसे छूट सकता है । जहाँ कहीं दूसरेको साथमें मिलाकर देखा कि अभिमान पैदा हुआ । अभिमान सम्पूर्ण पापोंकी जड़ है । एक अभिमान और एक कामना‒ये दो दोष ऐसे हैं कि इनके होनेपर फिर पीछे कोई दोष बाकी नहीं रहता । न कोई दोष बाकी रहता है, न कोई पाप बाकी रहता है और न संसारभरकी कोई पतनकारक चीज ही बाकी रहती है । मैंने खूब विचार करके देखा है कि समस्त दुःख, सन्ताप, जलन, आफत, रोना, कराहना, नरक, कैदखाना आदि जो कुछ है, सब अभिमान और कामना‒इन दोसे ही होते हैं ।

जबतक अभिमान रहता है, तबतक स्वभाव बिगड़ा हुआ रहता है, सुधरता नहीं है । तो क्या करें ? कि केवल अपनी तरफ देखें, दूसरोंकी तरफ देखें ही नहीं । दूसरा अच्छा करता है या मन्दा करता है, उसपर दृष्टि डाले ही नहीं । दृष्टि डालोगे तो अभिमान पैदा हो ही जायगा ।

तेरे  भावे कछु  करो,  भलो  बुरो संसार ।
‘नारायण’ तू बैठिके, अपनो भवन बुहार ॥

जो अपनेको गुणवान् मानता है, वह दूसरोंको दुःख देता है । ध्यान दें । वह ऐसे कि जिसके पास वे गुण नहीं हैं, वे उसे चुभेंगे । और आप गुणवान् नहीं हैं, दोषी हैं तो दूसरेको दोष चुभेंगे, और अपनेको तो चुभेंगे ही । तो दूसरोंको दुःखसे बचाना और स्वयं अभिमानसे बचना‒यह एक ही बात है । किसी भी बातका अभिमान होगा तो उससे दूसरेको दुःख होगा ही । एक पारमार्थिक सुख ही ऐसा है कि उसमें मस्त रहनेसे अपनेको भी सुख होगा और दूसरोंको भी सुख होगा । नहीं तो संसारका कोई सुख ऐसा नहीं, जो किसीका दुःख न हो । इसलिये सुखका भोगी दूसरोंको दुःख देनेवाला, दूसरोंका हिंसक ही होता है ।