।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
आषाढ़ पूर्णिमा, वि.सं. २०७६ मंगलवार
श्रीव्यासपूजा, गुरु पूर्णिमा
          भगवान्‌ सबके गुरु है
        

हम भगवान्‌के अंश हैं‒ ‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५/७); अतः हमारे गुरु, माता, पिता आदि सब वे ही हैं । वास्तवमें हमें गुरुसे सम्बन्ध नहीं जोड़ना है, प्रत्युत भगवान्‌से ही सम्बन्ध जोड़ना है । सच्चा गुरु वही होता है, जो भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ दे । भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़नेके लिये किसीकी सलाह लेनेकी जरुरत नहीं है । भगवान्‌के साथ जीवमात्रका स्वतन्त्र सम्बन्ध है । उसमें किसी दलालकी जरुरत नहीं है । हम पहले गुरु बनायेंगे, फिर गुरु हमारा सम्बन्ध भगवान्‌के साथ जोड़े तो भगवान्‌ हमारेसे एक पीढ़ी दूर हो गये ! हम पहलेसे ही सीधे भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़ लें तो बीचमें दलालकी जरूरत ही नहीं । मुक्ति हमारे न चाहनेपर भी जबर्दस्ती आयेगी‒

अति दुर्लभ  कैवल्य  परम  पद ।
संत पुरान निगम   आगम  बद ॥
राम भजत सोई मुकुति गोसाई ।
अनइच्छत     आवइ   बरिआईं ॥
                             (मानस, उत्तर ११९/२)

इसलिये भगवान्‌ गीतामें कहते हैं‒

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
                                                  (गीता ९/३४, १८/६५)

‘तू मेरा भक्त हो जा, मुझमें मनवाला हो जा, मेरा पूजन करनेवाला हो जा और मुझे नमस्कार कर ।’

सर्व धर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
                                                 (गीता १८/६६)

‘सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा ।’ भगवान्‌ गुरु न बनकर अपनी शरणमें आनेके लिये कहते हैं ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


  ‒ ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’ पुस्तकसे