।। श्रीहरिः ।।

                                                                 




           आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७७, रविवा
भगवान्‌से अपनापन



वास्तवमें समता ही तत्व है । गीतामें कहा हैइहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । (गीता ५/१९) अर्थात् जिनका मन समतामें स्थित है, उन्होंने इस जीवित अवस्थामें ही सम्पूर्ण संसारको जीत लिया है । तात्पर्य है कि जिनके हृदयमें समता है, उनके हृदयमें वस्तुओंके बनने-बिगड़नेपर, आने-जानेपर कोई विषमता नहीं होती, पक्षपात नहीं होता, राग-द्वेष नहीं होते, हर्ष-शोक नहीं होते । वस्तुओं और व्यक्तियोंके आने-जानेसे हमारेपर किञ्चिन्मात्र भी असर नहीं पड़े, तब तो हम संसारपर विजयी हो गये; परन्तु उनके आने-जानेका असर पड़ता है तो हम संसारसे पराजित हो गये, हार गये । संसार विजयी हो गया हमपर । हार किसीको भी अच्छी नहीं लगती, जीत सबको अच्छी लगती है । जिनका मन समतामें स्थित है, वे आज और अभी जीत सकते हैं, विजयी हो सकते हैं । गीता कहती हैनिर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ (५/१९) अर्थात् जिन महापुरुषोंका अन्तःकरण निर्दोष और सम हो गया, वे परमात्मामें ही स्थित हैं; क्योंकि सच्‍चिदानन्दघन परमात्मा निर्दोष और सम है । कितनी विलक्षण बात है !

परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना मनुष्यका खास ध्येय है । प्रत्येक भाई और बहन सब अवस्थाओंमें उस तत्वको प्राप्त कर सकते हैं; क्योंकि उस तत्वकी प्राप्तिके लिये ही यह मनुष्यशरीर मिला है । परन्तु हम नाशवान् चीजोंको अपनी मानकर फँस जाते हैं । ये चीजें पहले भी अपनी नहीं थीं और पीछे भी अपनी नहीं रहेंगीयह पक्‍की बात है । बीचमें उनको अपनी मानकर हम फँस जाते हैं । अगर हम उन चीजोंको अपनी न मानकर अच्छे-से-अच्छे, उत्तम-से-उत्तम व्यवहारमें लायें तो हम बन्धनमें नहीं पड़ेंगे । उन वस्तुओंमें हमारा अपनापन जितना-जितना छूटता चला जायगा, उतनी-उतनी हमारी मुक्ति होती चली जायगी ।

प्रभुके साथ हमारा अपनापन सदासे है और सदा रहेगा । केवल हम ही भगवान्‌से विमुख हुए हैं, भगवान् हमसे विमुख नहीं हुए । हम भगवान्‌के हैं और भगवान् हमारे हैं

अस अभिमान जाइ जनि भोरे ।

मैं  सेवक  रघुपति   पति  मोरे ॥

(मानस, अरण्य. ११/२१)

मीराबाई इतनी ऊँची हुई, इसका कारण उसका यह भाव था कि मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई ।केवल एक भगवान् ही मेरे हैं, दूसरा मेरा कोई नहीं है ।