आपकी कन्या अपनी अहंता बदल देती है, अपनेको
दूसरे घरकी बहू मान लेती है । क्या आपमें उस कन्या-जितनी सामर्थ्य भी नहीं है ?
जिस कन्याका आपने पालन-पोषण किया, बड़ी
धूमधामसे विवाह किया, उस कन्याके बदलनेपर (दूसरे घरको अपना
माननेपर) भी आप नाराज नहीं होते । ऐसे ही आप अपनेको भगवान्का और भगवान्को अपना
मान लें तो कोई नाराज नहीं होगा; क्योंकि यह सच्ची बात है । मीराबाईने
कहा—‘मेरे तो
गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई ।’ गिरधर गोपालके सिवाय
मेरा कोई नहीं है और मैं किसीकी नहीं हूँ । आप नौकरी करो तो आपकी योग्यताके अनुसार आपको तनख्वाह मिलेगी
। परन्तु आप घरमें माँके पास जाओ तो क्या माँ आपकी योग्यताके अनुसार रोटी देगी ।
आप काम करो तो भी रोटी देगी और काम न करो तो भी रोटी देगी । इस तरह भजन करनेसे ही भगवान्से
सम्बन्ध होगा, भजन न करनेसे सम्बन्ध नहीं होगा—यह बात
नहीं है । यदि आप भगवान्से अपनापन कर लेंगे कि हे नाथ ! मैं तो आपका ही बालक हूँ,
तो भगवान् सोचेंगे कि यह जैसा भी है, अपना ही
बालक है ! अतः भगवान्को आपका पालन करना ही पड़ेगा । इसलिये ‘मैं तो
आपका ही हूँ और आप ही मेरे हैं’—यह बड़ा सीधा रास्ता है । भगवान् कहते हैं कि यह जीव है तो मेरा ही अंश, पर
प्रकृतिमें स्थित शरीर, इन्द्रियों, मन,
बुद्धिको खींचता है, उनको अपना मानता है (गीता
१५/७) ! अरे किस धंधेमें लग गया ! है कहाँका और कहाँ लग गया ! संसारकी सेवा करो ।
अपने तन, मन, धन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार आदिसे
दूसरोंको सुख पहुँचाओ, पर उनको अपना मत मानो । यह अपनापन
टिकेगा नहीं । केवल सेवा करनेके लिये ही वे अपने हैं । संसारकी जिन चीजोंमें
अपनापन कर लेते हैं, वे ही हमें पराधीन बनाती हैं । वहम होता है
कि इतना परिवार मेरा, इतना धन मेरा, पर
वास्तवमें ये तेरे नहीं हैं, तू इनका हो गया, इनके पराधीन हो गया ! न तो ये हमारे साथ रहेंगे और न हम इनके साथ रहेंगे ।
इसलिये बड़े उत्साह और तत्परतासे इनकी सेवा करो तो दुनिया भी राजी हो जाय और भगवान्
भी राजी हो जायँ ! आप भी सदा आनन्दमें, मौजमें
रहें ! जब सेवा करनेवाला नहीं मिलता, तब सेवा चाहनेवाला
दुःखी रहता है । परन्तु सेवा करनेवाला सदा सुखी रहता है, आनन्दमें
रहता है । नारायण ! नारायण !!
नारायण !!! ‒ ‘भगवान्से
अपनापन’ पुस्तकसे |