।। श्रीहरिः ।।

                                                                                             


आजकी शुभ तिथि–
     आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७८ गुरुवार

                 तू-ही-तू

(६)

अपरा, परा और परमात्मा‒इन तीनोंमें अपरा और परा तो जाननेके विषय है, पर परमात्मा जाननेका विषय नहीं है, पर परमात्मा माननेका विषय हैं । उनको माना ही जा सकता है, जाना नहीं जा सकता । रचना अपने रचयिताको कैसे जान सकती है ? कार्य अपने कारणको कैसे जान सकता है ? इसलिये गीतामें भगवान्‌ने कहा है‒

वेदाहं  समतीतानि    वर्तमानानि   चार्जुन ।

भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥

(७/२६)

‘हे अर्जुन ! जो प्राणी भूतकालमें हो चुके हैं तथा जो वर्तमानमें हैं और जो भविष्यमें होंगे, उन सब प्राणियोंको तो मैं जानता हूँ, पर मुझे कोई भी नहीं जानता ।’

न मे विदुः सुरगणाः   प्रभवं न महर्षयः ।

अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः ॥

(१०/२)

‘मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि; क्योंकि मैं सब प्रकारसे देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ ।’

जैसे अपने माता-पिताको हम जान नहीं सकते, प्रत्युत मान ही सकते हैं; क्योंकि जन्म लेते समय हमने उनको देखा ही नहीं; देखना सम्भव ही नहीं । ऐसे ही परमात्माको भी हम जान नहीं सकते, प्रत्युत मान ही सकते हैं । माताकी अपेक्षा भी पिताको जानना सर्वथा असम्भव है; क्योंकि मातासे जन्म लेते समय तो हमारा शरीर बन चुका था, पर पितासे जन्म लेते समय हमारी (शरीरकी) सत्ता ही नहीं थी ! भगवान्‌ सम्पूर्ण जगत्‌के पिता हैं‒‘अहं बीजप्रदः पिता’ (गीता १४/१४), ‘पिताहमस्य जगतः’ (गीता ९/१७), पितासि लोकस्य चराचरस्य’ (गीता ११/४३), ‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५/७)इसलिये परमात्माको माना ही जा सकता है । उनको जानना सर्वथा असम्भव है । जैसे, माता-पिताको माने बिना हम रह सकते ही नहीं । अगर हम अपनी (शरीरकी) सत्ता मानते हैं तो माता-पिताकी सत्ता माननी ही पड़ेगी । ऐसे ही परमात्माको माने बिना हम रह सकते ही नहीं । अगर हम अपनी सत्ता (होनापन) मानते हैं तो परमात्माकी सत्ता माननी ही पड़ेगी । कारणके बिना कार्य कहाँसे आये ? जैसे ‘हम नहीं है’‒इस तरह अपने होनेपनका कोई निषेध या खण्डन नहीं कर सकता, ऐसे ही ‘परमात्मा नहीं हैं’‒इस तरह परमात्माके होनेपनका भी कोई निषेध या खण्डन नहीं कर सकता ।

सब कुछ भगवान्‌ ही हैं‒यह मान ही सकते हैं, जान नहीं सकते; क्योंकि यह समझके अन्तर्गत नहीं आता, प्रत्युत समझ (बुद्धि) इसके अन्तर्गत आती है ।